आत्मीय संवाद की सुगंध
सुरेखा शर्मा
पुस्तक : अंधेरे से उजाले की ओर लेखक : डॉ. हरीशचंद्र झन्डई प्रकाशन : बोधि प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 152 मूल्य : रु. 250.
कवि के रूप में डॉ. हरीशचंद्र झन्डई का नाम खूब जाना-पहचाना है। ‘अंधेरे से उजाले की ओर’ सद्य: प्रकाशित काव्य संग्रह। संग्रह की कविताएं आज की सच्चाई से रूबरू करवाती हैं।
डाॅ. झन्डई जिन्होंने समाज के हर वर्ग की कठिनाइयों को समझा और अपनी कविताओं का विषय बनाया। संग्रह में छोटी-बड़ी 98 कविताएं हैं। हर कविता कवि की भावनात्मक, वैयक्तिक चेतना से संबंध रखती है। आज के बदलते दौर में जिस तरह की आपाधापी, मारकाट के बीच हम जीवन जी रहे हैं, उन भावनाओं को कवि ने संग्रह के शीर्षक कविता अंधेरे से उजाले की ओर में अभिव्यक्ति दी है। कविताएं ज़िन्दगी के विभिन्न बिंदुओं को बड़े सकारात्मक ढंग से सोचने की प्रेरणा देती हैं। कभी समाधान के साथ उपस्थित होती हैं तो कभी प्रश्न बनकर पाठक वर्ग को चिंतन-मनन करने को विवश करती हैं। ‘दर्द’ कविता की पंक्तियां देखिए :-
‘कहां से आ गई मलिनता/ खिलखिला रहे थे फूल/ महक थी दूर तक/ फैली थी खुशबू। मुरझा गये/ होने लगे पीले पत्ते।
संग्रह की कविताएं पढ़कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उनके पास अनुभवों का विस्तृत भंडार है। कविताओं में व्याकुलता और अकुलाहट की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। कवि ने अपने परिवेश और परिस्थितियों का जैसा अनुभव और चिन्तन किया उसे ही अपनी रचनाओं में समेट दिया। कवि ने आज की वास्तविकता को अर्थात् जीवन की क्रूरताओं, समस्याओं में जीवन जीने को विवश, संत्रास, कुंठा, शोषण, राजनीतिक भ्रष्टाचार, नैराश्य और जीवन के प्रति घोर उदासीनता व आक्रोश को वाणी दी है। कुछ कविताओं में जीवन मूल्यों के तीव्रता से हो रहे क्षरण की चिंता कवि के मन में स्पष्ट दिखाई देती है। संग्रह की कविताएं बिना किसी लाग-लपेट के सरल शब्दों में हैं जो पाठक के मन को छू जाती है।
इन कविताओं में आत्मीय संवाद की सुगंध है जो पाठकों को सराबोर करती हैं।