The Rock Garden Chandigarh- पत्थरों में धड़कता 'नेक' दिल
Rock Garden Chandigarh_ कौन कहता है कि पत्थर बोलते नहीं हैं। जिस शहर को कभी पत्थरों का शहर कहा जाता था, उस शहर में अगर पत्थर भी बोलने लगें तो उस कलादृष्टि के पारखी को नमन करना बनता है। जिन चीजों को हम बेकार व कबाड़ समझ कर फेंक दिया करते हैं, उनमें खूबसूरती तलाश कर जीवंत करने ( A man made museum) का हुनर सिर्फ और सिर्फ नेकचंद सैनी को ही हासिल था।
उनकी 100वीं जयंती पर ( 100th birth anniversary ) चंडीगढ़ प्रशासन यहां रॉक गार्डन में एक सप्ताह तक चलने वाले खास कार्यक्रम आयोजित करवा रहा है। रॉक गार्डन की शुरुआत, इसके तीनों चरणों और नेकचंद के सामने आयी चुनौतियों से रूबरू करवा रही हैं कविता राज।
कविता राज
'बहुत ही आसान है, जमीन पर घर बना लेना,
दिल में जगह बनाने के लिए जिंदगी गुजर जाती है’।
वह एक ऐसा ही शख्स रहा, जिसने अपनी जिंदगी के हसीं 18 साल एक ऐसा ‘घर-संसार’ बनाने में दे दिए, जो सपनों के साकार होने जैसा ही है।
हम एक ऐसे ही ‘नेक’ दिल और जिंदादिल की बात कर रहे हैं, जिसने सोसायटी को वह दे दिया, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। और वह भी बहुत ही गुपचुप तरीके से – बिना किसी को कुछ बताए। कहने और सुनने में बेशक, यह बात अजीब सी लगे, लेकिन इस इंसान ने पत्थरों में भी जान फूंक दी।
मशहूर पंजाबी कवि शिवकुमार बटालवी के शब्दों में तो चंडीगढ़ को ‘पत्थरों का शहर’ (Pattharon Ka Shaher) कहा जाता है, लेकिन नेकचंद सैनी ने पत्थरों को ऐसा तराशा कि वे बातें करते नजर आते हैं।
The Rock Garden Chandigarh-यहां बोलते हैं पत्थर भी
पद्मश्री नेकचंद सैनी ने अपनी कलाकारी से यह साबित कर दिया कि वे शिवकुमार बटालवी के इस जुमले से इत्तेफाक नहीं रखते थे। तभी तो पत्थरों के शहर में एक अलग दुनिया की रचना कर डाली और पत्थरों को जुबां दे दी। आप बिल्कुल सही समझ रहे हैं। हम दो राज्यों – पंजाब व हरियाणा की संयुक्त राजधानी चंडीगढ़ में स्थित रॉक गार्डन की ही बात कर रहे हैं।
‘रॉक’ अंग्रेजी का शब्द है और इसका मतलब पत्थर है। पत्थरों की जुबां नहीं होती, लेकिन अपनी तपस्या से नेकचंद सैनी ने पत्थरों को भी बोलने पर मजबूर कर दिया। रॉक गार्डन में सजी इन अनोखी कलाकृतियों को देखकर लगता है कि इनमें आज भी नेकचंद का दिल धड़क रहा है। ठीक वैसे ही जैसे ताजमहल में मुमताज के लिये मानो आज भी शाहजहां का दिल धड़कता है। रॉक गार्डन के रॉक्स में 'नेक'दिल सांस लेता है।
कारीगर का कल्पना लोक है The Rock Garden Chandigarh
कलाकार की कल्पना (Artist's Imagination) की कोई सीमा नहीं होती और कल्पना और कौशल के बिना कोई रचना संपूर्ण नहीं हो सकती। वहीं अपनी कल्पनाओं को मूर्त रूप देने के लिये कलाकार जब अपने कौशल से कृतियों को आकार देता है तो वह एक नयी दुनिया रचकर अमिट छाप छोड़ देता है।
सपनों की दुनिया
नेकचंद सैनी ने भी चंडीगढ़ में रॉक गार्डन बनाकर संपूर्ण कला की परिभाषा गढ़ दी और अपने सपनों की दुनिया साकार कर ली। नेकचंद ने पीडब्ल्यूडी विभाग में बतौर रोड इंस्पेक्टर रहते हुए (simultaneously) 1957 में रॉक गार्डन पर काम शुरू किया। लगभग 40 एकड़ में फैला रॉक गार्डन पूर्णत: औद्योगिक एवं घरेलू कबाड़ तथा फेंक दिए गए सामान से बनाया गया है। गार्डन नवीकृत सिरेमिक से बनाई गई कलाकृतियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
The Rock Garden Chandigarh
लोग हमेशा नहीं रहते, हमेशा तो बस यादें रहती हैं!
तो कोशिश यही करना कि यादें हमेशा हसीन रहें!!
शायद, यही सोच नेकचंद सैनी की भी रही होगी। तभी तो उन्होंने टूटी चूड़ियों को चुन-चुन कर ऐसी कलाकृतियां बनाई, जिनसे न केवल चंडीगढ़, बल्कि खुद नेकचंद को देश-दुनिया में नयी पहचान मिली। बेशक, वह आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें और प्रयास आज भी जिंदा हैं।
मनाई जा रही सौवीं जयंती
15 दिसंबर, 1924 को अविभाजित भारत में पंजाब के शंकरगढ़ नामक कस्बे में जन्मे नेकचंद सैनी की 100वीं जयंती मनाई जा रही है। 1947 में देश के बंटवारे के बाद नेकचंद सैनी पंजाब के गुरदासपुर आ गये। 1951 में उन्हें राज्य सरकार में रोड इंस्पेक्टर की नौकरी मिल गई। इस बीच वह हरियाणा के करनाल गये। पानीपत में रहे और फरीदाबाद में भी काम किया। कुछ समय बाद उनका तबादला चंडीगढ़ हो गया। इसे नियति ही कहेंगे कि न नेकचंद चंडीगढ़ आते और न रॉक गार्डन बनता।
1950-60 के दशक में बनाई चंडीगढ़ की पहली सड़क
1950 से 1960 के दशक में चंडीगढ़ में उन्हें सबसे पहले सुखना रोड का जिम्मा मिला। प्रेस बिल्डिंग वाली सेक्टर-17 और 18 की डिवाइडिंग रोड बनाई। फिर हाईकोर्ट वाली सड़क बनाने का और फिर यहीं से शुरू हुआ उनके सपनों की दुनिया का सफर। 12 जून, 2015 को 90 साल की उम्र में यह महान रचनाकार इस सृष्टि से विदा हो गया और अपने पीछे छोड़ गया एक अविस्मरणीय अहसास, जो सदियों तक लोगों को अपनी अनूठी कलाकृतियों से अचंभित करता रहेगा।
कबाड़ से करिश्मा - The Rock Garden Chandigarh
1956 में शहर से दूर जंगल में कबाड़ इकट्ठा कर नेक चंद ने अकेले ही इस गार्डन का निर्माण शुरू कर दिया। उस समय इस 'खूबसूरत शहर' का डिजाइन फ्रांस के वास्तुकार ली-कॉर्बूजिये तैयार कर रहे थे। जैसे-जैसे शहर बसता गया, नेकचंद का जुनून बढ़ता गया। वे हर दिन साइकिल पर पत्थरों की तलाश में निकलते। शिवालिक की पहाड़ियों में सकेतड़ी, नेपली और कसौली से वह अलग-अलग साइज के पत्थर चुन कर लाते। फिर इन पत्थरों को अलग-अलग रूप देते। किसी पत्थर को मुंह तो किसी को सूंड बना देते, लेकिन सबको उनके मूल रूप में ही रखा जाता। नेकचंद ने सबसे पहले एक झोपड़ी बनाई, जो आज भी इस रॉक गार्डन के पत्थरों के बीच गुफानुमा आकार में नज़र आती है।
आसान नहीं थी डगर
नेकचंद हर दिन (for this purpose) जंगल में जाकर नदियों से पत्थर लाते, उन्हें तराशते और कल्पनाओं पर आधारित नगरी को मूर्त रूप देने में जुट जाते। रात के अंधेरे में पुराने टायर जलाकर उसकी रौशनी में अपने काम को अंजाम देते। आज जहां रॉक गार्डन है, वह फॉरेस्ट विभाग की जमीन थी और पास ही पीडब्ल्यूडी का स्टोर होता था। नेक चंद के पास स्टोर का जिम्मा था। वह शाम को यहां से लौटते तो साइकिल पर कबाड़ से भरे बैग टंगे रहते।
मेले से लाते थे टूटी चूड़ियां
माता मनसा देवी मंदिर के मेले और सेक्टर-15 की चूड़ियों की दुकानों से टूटी चूड़ियां लेकर आते थे। उनका निजी जीवन कम संघर्ष भरा नहीं था। जिस वक्त नेकचंद कचरे से करिश्मे को अंजाम देने में जुटे थे, उनका ढाई साल का बेटा बीमार पड़ गया और उसने दम तोड़ दिया।
1975 में The Rock Garden Chandigarh को मिली प्रशासन की मंज़ूरी
अधिकारियों को इसकी भनक 1975 में लगी। नियमों के खिलाफ मानते हुए ( Against The Rules) इसे गिराने की तैयारी की जाने लगी तो लोग नेकचंद के समर्थन में आ गए। फिर लेंडस्केप एडवाइजरी कमेटी ने अनुमति दे दी। उस समय चीफ एडमिनिस्ट्रेटर डॉ़ एमएस रंधावा ने इसे रॉक गार्डन का नाम दिया। 1976 में इसका उद्घाटन हुआ। तब इसका एक चरण पूरा हुआ था। इसके बाद नेकचंद ने बाकी चरणों को पूरा किया। नेकचंद सैनी ने 1993 और 1995 के बीच केरल के पलक्कड़ जिले में डेढ़ एकड़ का एक छोटा रॉक गार्डन भी बनाया।
'किंगडम ऑफ गॉड्स एंड गॉडेसिज'
महान रचनाकार थे नेकचंद (in due time)। उनका कोई सानी नहीं था तभी तो उन्होंने इस विशाल मूर्तिकला उद्यान में विशाल किलों और देवी-देवताओं के अलावा जानवरों और बंदरों की अनोखी काल्पनिक लोक दुनिया बसा ली। इसके हर एक हिस्से की अलग कहानी है। इसमें प्राकृतिक सुंदरता बिखेरते झरने हैं, झिलमिलाते पूल इसकी शोभा को चार चांद लगाते हैं।
'बेस्ट ऑउट ऑफ द वेस्ट' -The Rock Garden Chandigarh
'बेस्ट ऑउट ऑफ द वेस्ट' (Best Out of the West) से बने छोटे आकार के दरवाजे दर्शाते हैं कि आप देवलोक में हैं। यहां आपको देवताओं के दरबार में झुककर चलना है, ठीक किसी मंदिर के द्वार की तरह। ऊंची दीवारें और तंग गलियां, यहां सजे कुछ छोटे-बड़े आकार के घड़े हैं। जिनसे अलग तरह की ध्वनि निकलती है, उन्हें उनके मूर्त रूप में सजाया गया है। चीनी मिट्टी और कबाड़ यानी वेस्ट मटीरियल से बनी सजावटी चीजें, और छोटे-छोटे तराशे गये पत्थरों से बने हुए परदे बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
बोटिंग का श्रेय भी नेकचंद को
सुखना लेक पर बोटिंग शुरू करने का श्रेय भी नेकचंद को जाता है। इसके पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है। झील के पार एक महात्मा उन दिनों साधना में लीन रहते। उन्हें झील के इस पार आने में खासी परेशानी होती। इसके लिये लंबा सफर तय करके आते थे। उनकी परेशानी कम करने के लिये नेकचंद ने खाली ड्रमों पर कीकर के लट्ठे बांधकर नाव बनाकर सुखना में उतार दी थी। बाद में इस तरह की नाव पर विवाद भी हुआ। हालांकि बाद में सिटको ने सुखना का रखरखाव शुरू किया।
कुदरत से नाता और सकारात्मक सोच
झील के मुहाने पर (on the lake shore) सैकड़ों साल पुराने पीपल के पेड़ का गवाह, सुखना जाने वाला हर शख्स बनता है। जैसे-जैसे शहर बसा, कई पेड़ आरियों की भेंट चढ़ गये। कुदरत से रचनाकार का इतना गहरा नाता था कि पीपल के इस पेड़ को बचाने के लिये नेकचंद ने बड़ी जद्दोजहद की और उनकी ही तरकीब से इसे सहेज लिया।
यह पीपल का पेड़ ( (equally important) आज भी अपनी जड़ों में विरासत समेटे खड़ा है। नेकचंद के पुराने मित्रों में शुमार रहे अम्बा दत्त तिवारी बताया करते थे कि नेकचंद बहुत पॉजिटिव अप्रोच के इंसान थे। 1971 में जब चंडीगढ़ में फ्यूल का संकट आया तो उन्होंने नेकचंद से संपर्क किया। फिर नेकचंद ने मिट्टी से बने कोयले की मदद से उन्हें और उनके बहुत सारे जान-पहचान के लोगों को मदद पहुंचाई।
The Rock Garden Chandigarh : क्या कहते हैं बेटे अनुज सैनी
नेकचंद के पुत्र अनुज सैनी बताते हैं ( According to Anuj Saini) कि अगर उन्हें कैंसर न होता तो शायद वे आज भी साथ होते। वे लंबे समय तक स्वस्थ और जिंदादिल रहे। गार्डन के रखरखाव का जिम्मा देख रहे अनुज का कहना है कि उन्हें सोसायटी और प्रशासन का पूरा सहयोग मिला है। एक हफ्ते तक नेकचंद का जन्मदिवस मनाया जा रहा है। इसी सिलसिले में सात दिन रंगारंग कार्यक्रम चलेंगे। अनुज कहते हैं कि नेकचंद का मकसद था कि हर वेस्ट चीज को इस्तेमाल में लाया जाये। देखरेख की जाये। नेकचंद जो धरोहर तैयार करके गये उसे बचाना हमारा मकसद है और उसके लिये वे प्रसायरत हैं।
40 एकड़ में फैला नेकचंद का 'कला संसार'-The Rock Garden Chandigarh
नेकचंद का यह 'कला संसार'(as can be seen) 40 एकड़ में फैला है। यहां वाटरफॉल, पूल और घुमावदार रास्ते सहित 14 लुभावने चैंबर हैं। 1997 में इसकी देखरेख के लिये नेक चंद फाउंडेशन का गठन किया गया। स्थापत्य शैली में निर्मित इस गार्डन की देखरेख अब यही फाउंडेशन कर रहा है। इससे प्रेरित होकर अमेरिका के वाशिंगटन, स्पेन, जर्मनी, पेरिस और इंग्लैंड में भी मिनी रॉक गार्डन बनाए गए। रॉक गार्डन के निर्माण के लिए नेकचंद को 1984 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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तीन चरणों में तैयार हुआ है The Rock Garden Chandigarh
तीन चरणों में हुआ तैयार सुखना झील के मुहाने पर बसे रॉक गार्डन को अगर कलाकृति के नजरिये से देखेंगे तो यह एक महलनुमा आकार में दिखता है। किसी भव्य पुराने किले के होने का अहसास कराता है। अब सवाल यह है कि आखिर इसे किले की शक्ल क्यों दी गई। नेकचंद के पुत्र अनुज सैनी और उनके पुराने दोस्त हर्ष बताते हैं कि इस गार्डन को बसाने के पीछे का कॉन्सेप्ट ‘राज दरबार’ था। नेकचंद ने अपनी कल्पनाओं को तीन चरणों में यहां उतारा है।
The Rock Garden Chandigarh- फेज वन में बना है राजदरबार
गार्डन के अंदर प्रवेश करते ही (As soon as) फेज-1 में सबसे पहले नज़र आता है - राज दरबार। इसकी रचना उन्होंने सबसे छुपकर की थी। राज दरबार में मौजूद (as can be seen) आम जनता और दरबारियों के अलावा हाथी-घोड़े और अन्य जीव जंतु हैं। उनके रंग-बिरंगे पहनावे (their colorful outfits) और आकार उनके बीच में स्त्री-पुरुष के अलावा उनके छोटे-बड़े या असमान होने का आईना है। नेकचंद की कल्पना में सजे इस राज दरबार में बैठकर राजा जो कठपुतली शो देखता है, उसी को दर्शाने की कोशिश में बना है डॉल म्यूजियम।
फेज-2 में बसता है संगीत दरबार
रॉक गार्डन के फेज-2 में ( Phase 2 of Rock Garden) सजता है संगीत दरबार। पत्थरों से बने बेहद खूबसूरत और तराशे हुए इन वाद्य यंत्रों के सजे इस संगीत दरबार की हर एक कलाकृति को खुद नेकचंद ने अपने हाथों से तराशा था। गार्डन की रचना के बाद यहां जब शाम को यह संगीत दरबार सजता और फिर कलाकार अपने वाद्य यंत्र एक जगह रखकर जाते। इस जगह पर पद्मश्री नेकचंद का शाम का कीमती समय बीतता था। फेज-2 में ही 40 साल पुराना वह ट्रक भी खड़ा है, जिसमें नेकचंद कबाड़ ढूंढ़ने के लिए जाते थे। इसमें एक कुआं है। झरना, छोटा सा थियेटर, बगीचा, पथ व प्रांगण बने हैं। करीब 5,000 छोटी-बड़ी कलाकृतियां हैं , जो कंक्रीट पर मिट्टी का लेप चढ़ाकर बनाई गई हैं।
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The Rock Garden Chandigarh के फेज 3 में बना है चौगान
तीसरे फेज में बसा है चौगान। जहां तीज के झूले हैं। यह कांसेप्ट था रानियों और महिलाओं के त्योहार मनाने के लिए। महल की रानियों के लिये बने ताल हैं, जिनमें वे सखियों के साथ पानी में अठखेलियां करती हैं। हर साल तीज के मौके पर यहां झूलों को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है। महिलाएं इस दिन यहां आती हैं और झूलों का आनंद लेती हैं।