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आसान नहीं हैट्रिक की राह, भाजपा-कांग्रेस में कांटे का मुकाबला

11:14 AM May 14, 2024 IST
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
अम्बाला, 13 मई
अम्बाला यानी गेट-वे ऑफ हरियाणा। यही प्रदेश का अकेला ऐसा संसदीय क्षेत्र है, जिसकी सीमाएं एकाध नहीं, बल्कि चार राज्यों से सटी हैं। पंजाब, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश की सीमाओं तक फैले इस संसदीय क्षेत्र में सतारूढ़ भाजपा जीत की हैट्रिक के लिए चुनावी रण में डटी है। परिस्थितियों के के चलते प्रत्याशी बेशक बदला गया है, लेकिन टिकट परिवार में ही है।
2014 और 2019 यानी लगातार दो बार अम्बाला से सांसद बने पूर्व केंद्रीय मंत्री रतनलाल कटारिया के निधन के बाद भाजपा ने इस बार उनकी पत्नी बंतो कटारिया को चुनावी रण में उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने युवा चेहरे और मुलाना से विधायक वरुण चौधरी को टिकट दिया है। वरुण के चुनावी मैदान में आने से चुनावी मुकाबला कांटे का बन गया है। अम्बाला संसदीय क्षेत्र का सरकार में भी सबसे अधिक साझा है।

नारायणगढ़ शहर स्थित नेताजी सुभाष चंद्र चौक।

तीन जिलों तक फैले इस संसदीय क्षेत्र से न केवल मुख्यमंत्री नायब सैनी आते हैं, बल्कि स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता भी पंचकूला से विधायक हैं। जगाधरी विधायक कंवर पाल गुर्जर सरकार में कृषि मंत्री हैं और अम्बाला सिटी विधायक असीम गोयल परिवहन तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं। पूर्व गृह व स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज अम्बाला कैंट से विधायक हैं। यमुनानगर से घनश्याम दास अरोड़ा भी भाजपा के विधायक हैं।
यानी अम्बाला संसदीय क्षेत्र के 9 हलकों में से 5 में भाजपा का कब्जा है। वहीं, चार हलकों में कांग्रेस विधायक हैं। नारायणगढ़ से शैली चौधरी, सढ़ौरा से रेणु बाला, कालका से प्रदीप चौधरी और मुलाना से खुद कांग्रेस प्रत्याशी वरुण चौधरी विधायक हैं। इस संसदीय क्षेत्र में सीएम नायब सैनी की साख भी दांव पर है। वहीं, भाजपा दिग्गजों अनिल विज, कंवरपाल गुर्जर, ज्ञानचंद गुप्ता और असीम गोयल की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
बेशक, दस साल की सरकार की एंटी-इन्कमबेंसी भी कई जगहों पर देखने को मिल रही है, लेकिन मनोहर सरकार के करीब सवा नौ वर्षों के कार्यकाल में लगी नौकरियां एंटी-इन्कमबेंसी की ढाल बनती नजर आ रही हैं। गांवों में गरीब परिवारों के युवाओं को बिना सिफारिश के नौकरी मिलने का मुद्दा चर्चाओं में है। गरीब परिवारों को हर महीने मुफ्त में राशन मिलने का मामला भी लोगों के बीच चर्चाओं में है। दूसरी ओर, किसान आंदोलन के असर से भी इस संसदीय क्षेत्र पार्लियामेंट को अछूता नहीं माना जा सकता।

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बड़ागढ़ गांव में पृथ्वी राज चौहान की प्रतिमा।

पिछले दिनों राजपूत समाज की पंचायतों ने जरूर भाजपा की मुश्किलें बढ़ाई हुई हैं। हालांकि, भाजपा द्वारा अपने इस कोर वोट बैंक को मनाने की कोशिशें की जा रही हैं। गुटबाजी और आपसी खींचतान की शिकार रही कांग्रेस के अंतर्कलह का भाजपा को फायदा मिलने की उम्मीद भाजपाइयों द्वारा लगाई जा रही थी, लेकिन ग्राउंड पर कांग्रेस के नेता जिस तरह से काम करने में जुटे हैं, उससे इस बात की संभावना कम दिखती है कि भितरघात होगा।
बड़ागढ़ गांव बेरोजगारी से त्रस्त : अम्बाला संसदीय क्षेत्र के राजपूत बहुल इस गांव के मिजाज बदले-बदले नजर आए। मोहित कुमार, पवन, मनजीत सिंह व राम सिंह का कहना है कि पिछले चौदह-पंद्रह वर्षों से उनके काम में एक भी युवा को सरकारी नौकरी नहीं मिली। मोहित कुमार का कहना है कि वे चार बार सेना में भर्ती की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उनका चयन नहीं हो पाया। मजदूरी करके युवा अपने परिवारों का पेट पाल रहे हैं। करीब 2000 मतदाताओं वाले इस गांव में राजपूत पंचायत का भी असर देखने को मिला।
भाजपा को पंचकूला से बड़ी उम्मीदें
राजधानी चंडीगढ़ से सटे पंचकूला जिले से भाजपा को बड़ी उम्मीदें हैं। बेशक इस जिले में दो विधानसभा हलके- पंचकूला और कालका हैं, लेकिन शहरी सीट होने की वजह से भाजपा को यहां से बड़ी लीड मिलने की संभावना है। पंचकूला से भाजपा के ज्ञानचंद गुप्ता और कालका से कांग्रेस के प्रदीप चौधरी विधायक हैं। पंचकूला के अलावा कालका के गांवों में भाजपा को अधिक पसीना बहाना पड़ रहा है। वहीं, शहरी वोटर भाजपा के प्रति सॉफ्ट दिखते हैं।
अम्बाला में फिफ्टी-फिफ्टी
अम्बाला जिले के चार हलकों- अम्बाला सिटी, अम्बाला कैंट, मुलाना व नारायणगढ़ में वर्तमान में दोनों पार्टियां फिफ्टी-फिफ्टी हैं। यानी दोनों के दो-दो विधायक हैं। अम्बाला सिटी में असीम गोयल, अम्बाला कैंट में अनिल विज तथा नारायणगढ़ में कांग्रेस की शैली चौधरी व मुलाना में वरुण चौधरी विधायक हैं। 2014 में नायब सैनी नारायणगढ़ से विधायक थे और मनोहर सरकार में राज्य मंत्री थे। पूर्व मंत्री चौ़ निर्मल सिंह की कांग्रेस में वापसी के बाद अम्बाला सिटी के अलावा इस जिले में कांग्रेस को बड़ा बल मिला है। ऐसे में नारायणगढ़, मुलाना व अम्बाला सिटी में कांटे का मुकाबला देखने को मिल रहा है। अम्बाला कैंट में भी चुनावी जंग हर दिन दिलचस्प होती जा रही है।

मंगलौर गांव स्थित प्राचीन शिव मंदिर।

यमुनानगर की तीन सीटों पर नजर
यमुनानगर जिले के चार हलकों में से तीन- जगाधरी, सढ़ौरा और यमुनानगर हैं। रादौर हलका कुरुक्षेत्र संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है। जगाधरी में कृषि मंत्री कंवरपाल गुर्जर और यमुनानगर में घनश्याम दास अरोड़ा भाजपा विधायक हैं। सढ़ौरा से कांग्रेस की रेणु बाला विधायक हैं। कृषि मंत्री जेपी दलाल, स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता, परिवहन मंत्री असीम गोयल व पूर्व गृह मंत्री अनिज विज के अलावा खुद नायब सैनी भी अम्बाला में प्रचार करने में जुटे हैं। हालांकि, विज ने फिलहाल खुद को अम्बाला कैंट तक ही सीमित किया हुआ है।
नौकरियाें का है कई गांवों में रुक्का
मनोहर सरकार द्वारा लगाई गई नौकरियाें का अम्बाला के कई गांवों व शहरों में रुक्का है। गढ़ी कोटाहा गांव के विनोद कुमार व सरदारा राम ने कहा- गरीब परिवारों के बच्चों की बिना सिफारिश व पैसों के नौकरियां लगी हैं। उनका कहना है कि मोदी सरकार द्वारा गरीब परिवारों को हर महीने मुफ्त राशन दिया जा रहा है। अब कोई भी गरीब भूखा नहीं रहता। लगभग तीन हजार मतदाताओं वाले इस गांव में अभी तक प्रचार के लिए किसी पार्टी के नेता नहीं पहुंचे हैं लेकिन गांव में चुनाव को लेकर चर्चाएं जरूर हैं। रोड पर कपड़े बेचने का काम करने वाले राहुल ने कहा- गांवों में चुनाव का कोई रौला-रुक्का तो नहीं है। उनका कहना है कि इनकम तो नहीं बढ़ी, लेकिन महंगाई जरूर बढ़ गई है।
बड़ी बस्सी में कांट्रेक्ट पर लगी नौकरियां
नारायणढ़ हलके के गांव बड़ी बस्सी के युवाओं- जीत सिंह, संजीव कुमार, रोहित का कहना है कि कृषि, पशुपालन और मजदूरी से ही परिवारों का पालन हो रहा है। हालांकि, गांव के कई युवाओं को डीसी रेट यानी कांट्रेक्ट पर नौकरियां मिली हैं। सरकारी नौकरियां गांव में कम लगी हैं। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में बिजली-पानी की कोई समस्या नहीं है। सैनी बहुल इस गांव में नायब सैनी के मुख्यमंत्री बनने का प्रभाव साफ देखने को मिल रहा है।
77 साल पहले बसे थे ये गांव
मंगलौर, खेड़की, मानकपुर, जंगू माजरा आदि ऐसे गांव हैं, जो एक ही बेल्ट में बसे हैं। विभाजन यानी 1947 से पहले ये गांव मुस्लिम बहुल थे। पार्टिशन के बाद पाकिस्तान से आए पंजाबी समुदाय के लोगों को यहां बसाया गया। इन गांवों में सबसे अधिक आबादी भी पंजाबी बिरादरी की है। रमेश कुमार, रमेश लाल व जसपाल का कहना है कि हमारे बुजुर्गों ने कड़ी मेहनत की। गांव कृषि पर आधारित है। गांव के कई युवाओं को सरकारी नौकरी भी मिली है। इन गांवों में भाजपा का प्रभाव देखने को मिला। उनका कहना है कि पढ़ाई करने वाले युवाओं को आसानी से नौकरी मिल रही है। यह बड़ा बदलाव उन्होंने कई वर्षों के बाद देखा है। ग्रामीण इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि विभाजन के बाद जब उन्हें यहां बसाया गया तो उस समय कांग्रेस ने उनकी काफी मदद की थी।
पिछले तीन चुनावों के नतीजे
2009
इन चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर कुमारी सैलजा ने लगातार दूसरी बार चुनाव जीता था। सैलजा ने 3 लाख 22 हजार 258 वोट लेकर भाजपा के रतनलाल कटारिया को 14570 मतों से हराया था। कटारिया को 3 लाख 7 हजार 688 वोट मिले थे।
2014
भाजपा के टिकट पर रतनलाल कटारिया ने कांग्रेस के राजकुमार वाल्मीकि को 3 लाख 40 हजार 74 मतों से शिकस्त दी। कटारिया को 6 लाख 12 हजार 121 मत हासिल हुए थे। वाल्मीकि को महज 2 लाख 72 हजार 47 वोट हासिल हुए थे।
2019
इस बार भाजपा के रतनलाल कटारिया ने कांग्रेस उम्मीदवार कुमारी सैलजा को 3 लाख 42 हजार 345 मतों के अंतर से हराया। कटारिया को 7 लाख 46 हजार 508 मत हासिल हुए, जबकि सैलजा को 4 लाख 4 हजार 163 वोट मिले थे।

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