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गुनगुने अहसासों की बाकी कसक

10:44 AM Sep 03, 2023 IST

पुस्तक समीक्षा

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अजय सिंह राणा

पुस्तक : गुनगुनी धूप में कविता कवि : बलबीर सिंह वर्मा वागीश प्रकाशक : आनंद कला मंच, भिवानी पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 250.

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‘गुनगुनी धूप में कविता’ लघु काव्य- संग्रह कवि बलबीर सिंह वर्मा द्वारा रचित है। जैसे कि क़िताब के शीर्षक से ही महसूस होता है इस संग्रह में कविताओं की तपिश सर्दी की गुनगुनी धूप जैसी है जो हमें एक हल्की-सी तपिश जरूर पहुंचाती हैं।
इस कविता-संग्रह में कवि ने ग्रामीण परिवेश, नैतिक मूल्य, जीवन की क्षणभंगुरता, किसान, मजदूर, नारी, प्रकृति आदि अनेक विषयों पर अपनी कलम चलाई लेकिन 101 कविताओं में वह पुनरावृत्ति से नहीं बच सके। एक-एक विषय पर कई-कई कविताएं बोझिल हो जाती हैं और पाठक का शब्दों से संबंध टूटने लगता है। मां शारदे को समर्पित पहली कविता से इस संग्रह की शुरुआत होती है लेकिन इस संग्रह की अधिकांश कविताएं सामान्य भाषा में लिखी गई हैं जो साहित्यिक दृष्टि से इतना ज्यादा प्रभावित नहीं करती। लेकिन कवि की समाज में फैले विभिन्न विषयों के प्रति संवेदनशीलता इन कविताओं में प्रदर्शित होती है जो सुखद है।
समाज में नैतिक मूल्यों के होते पतन को लेकर उनकी व्याकुलता भी उनके शब्दों में दिखाई देती हैं लेकिन वह चोट नहीं कर पाती, जिसकी जरूरत साहित्य में होती है। असल में यहां कलम की धार गहरी होती तो भाव अभिव्यक्ति मुखर हो पाती। अब चाहे वह गांव के किसान की बात कर रहे हों या बेटी-बेटा की समानता की बात।
प्रस्तुत काव्य-संग्रह में मनोभावों का चित्रण तो है लेकिन साहित्य की दृष्टि से इन कविताओं में मार्मिकता और साहित्यिकता सीधे-सपाट शब्दों के चलते मुखरित नहीं हो पायी।
नदी, ऋतुराज किस्मत, जुगनू जैसी चंद कविताएं प्रभावित करती हैं। बाकी कविताएं भी इस तरह का प्रभाव छोड़तीं तो बेहतर होता। वहीं बलबीर जी ने एक कविताओं में जो लघु कविताओं को लिखने का प्रयास किया है, वह ठीक-ठाक है।

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