For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

सेवाव्रती का धर्म

06:34 AM Aug 09, 2024 IST
सेवाव्रती का धर्म

स्वामी केशवानंद जिन्होंने शिक्षा का व्यापक प्रचार किया। वे राज्यसभा के सदस्य थे। एक बार की बात है कि उनके एक सहयोगी ने देखा कि वे हाथ पर दो-तीन सूखी रोटियां रखे दाल से खा रहे हैं। रोटियां सूखी व ठंडी थीं। उन्हें वे जल्दी-जल्दी चबाकर गले के नीचे उतार रहे थे। सहयोगी ने इसका कारण पूछा तो बोले, ‘मुझे कई जगह जाना है और शाम को गाड़ी पकड़नी है, इसलिए तंदूर से यहीं दो रोटियां मंगवा ली हैं।’ ‘इस आयु में आपको ऐसा भोजन नहीं करना चाहिए। कुछ नहीं तो घी, मक्खन व फल तो लिया करें।’ सहयोगी बोला। इस पर वे मुस्कुराते हुए बोले, ‘ठीक तो है, पर जब इन्हीं बातों की चिंता करनी थी, तो संन्यासी बनकर कुछ सेवा करने का व्रत ही क्यों लेता? व्यक्तिगत सुखों की चिंता न करना सेवा-व्रती का आदर्श है।’

Advertisement

प्रस्तुति : मुकेश ऋषि

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×