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संकल्प के सवाल

07:43 AM Apr 16, 2024 IST
संकल्प के सवाल
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कांग्रेस द्वारा चुनावी घोषणा पत्र जारी करने के बाद अब सत्तारूढ़ भाजपा ने भी अपना संकल्प पत्र जारी किया है। पार्टी ने वंचित समाज को केंद्र में रखकर डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती को अपने संकल्प पत्र को जारी करने के दिन के रूप में चुना। संदेश देने का प्रयास किया कि उसे देश के वंचित समाज के अहसासों की फिक्र है। दो कार्यकालों की रीति-नीतियों के अनुरूप अंदाजा लगाना कठिन न था कि भाजपा के घोषणापत्र का खाका क्या होगा। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि पार्टी प्रधानमंत्री की छवि और पिछले कार्यकाल की उपलब्धियों को लेकर चुनावी मैदान में है। इस घोषणापत्र में नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर और विकसित भारत के संकल्प की बानगी नजर आती है। ऐसे वक्त में जब पिछले कार्यकालों में भाजपा अपने दो मुख्य मुद्दों अनुच्छेद 370 हटाने व राममंदिर बनाने के वायदे को पूरा कर चुकी है तो जाहिर है नागरिक संहिता का मुद्दा उसकी प्राथमिकता में होना ही था। जो, इस घोषणा पत्र में विशेष रूप से उल्लेखित है। इसके अलावा भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में एक देश एक चुनाव, गरीबों को पांच साल तक मुफ्त राशन, सत्तर साल से अधिक उम्र के लोगों को मुफ्त इलाज की सुविधा, तीन करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाना, पेपर लीक रोकने के लिए कड़ा कानून लाना, तीन करोड़ गरीबों को घर उपलब्ध कराना, बीस लाख तक का मुद्रा लोन उपलब्ध कराना, किसान निधि को जारी रखना आदि के वायदे किए हैं। यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि भाजपा ने 2019 के घोषणापत्र में भी यूसीसी, साठ साल से अधिक के दुकानदारों व किसानों को पेंशन, एक राष्ट्र, एक चुनाव जैसे वायदे किये थे। हालांकि, ऐसी तमाम योजनाओं को लेकर ‘मोदी की गारंटी’ का दावा पार्टी की तरफ से किया जाता रहा है। ये आने वाला वक्त बताएगा कि पार्टी किस हद तक अपने वायदों को हकीकत में बदल पाने में सक्षम होती है। जो उसे मिले जनादेश के आकार पर भी निर्भर करेगा।
बहरहाल, अब किसी दल का संकल्प पत्र हो या न्याय पत्र, इसमें किये गये वायदों की तार्किकता पर विचार किया जाना जरूरी है। हाल के वर्षों में राजनीतिक दलों ने वायदों के रूप में जितने जुमले उछाले हैं, उनसे जनता का लगातार मोहभंग होता रहा है। इसमें दो राय नहीं कि हमारे संसाधन सीमित हैं। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था की सीमाओं के मद्देनजर ही राजनीतिक दलों को अपने वायदों को घोषणापत्र के रूप में सामने रखना चाहिए। देश की तरक्की मुफ्त की रेवड़ियां बांटने से नहीं हो सकती। हमारी नीतियां देश में उत्पादकता बढ़ाने वाली होनी चाहिए। हम कमजोर वर्गों का ध्यान रखें और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने को प्राथमिकता बनायें। सभी राजनीतिक दलों को देश की मुख्य समस्याओं बेरोजगारी, अशिक्षा, महंगाई दूर करने तथा स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर बनाने पर जोर देना चाहिए। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि बड़े सामाजिक वर्ग के लिये लायी जाने वाली बीमा योजना से लक्षित समाज के बजाय बीमा कंपनियां मालामाल होती रही हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में निजी चिकित्सालयों के लिये ये बीमा योजनाएं कामधेनु बन रही हैं। सभी राजनीतिक दलों को देश के प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों से लेकर प्राथमिक स्कूलों तक को सशक्त करने का प्रयास करना चाहिए। भारत विविधता की संस्कृति का देश है। सामाजिक समरसता के लिये जरूरी है कि जाति, धर्म व क्षेत्र से परे विकास के लक्ष्य तैयार किये जाएं। राजनीतिक दलों को इस युवाओं के देश के लिये ऐसी क्रांतिकारी योजनाएं लाने की जरूरत है जो हर हाथ को काम दे सके। आखिर क्यों हमारी युवा पीढ़ी में विदेश भागने की होड़ लगी है। हम उन्हें देश में अनुकूल शिक्षा व बेहतर रोजगार की स्थितियां उपलब्ध कराएं ताकि उन्हें एजेंटों के माध्यम से लुटने-पिटने को मजबूर न होना पड़े। पर्यावरण का संकट हमारे देश के सामने लगातार चुनौती पैदा कर रहा है। जहरीली हवाएं जानलेवा साबित हो रही हैं। बेहतर हो कि राजनीतिक दल आम आदमी से जुड़े मुद्दों को अपने न्याय व संकल्प पत्रों में केंद्र में रखें।

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