सुलगते फ्रांस में समानता-बंधुत्व के प्रश्न
सवाल यह है कि प्रधानमंत्री मोदी 14 जुलाई को बैस्टिल दिवस समारोह में पेरिस जा पाते हैं या नहीं? फ्रांस हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ की चपेट में है। फ्रांस में 14 जुलाई को राष्ट्रीय समारोह होता है। मध्ययुगीन क़िला बैस्टिल कभी क्रूरता का प्रतीक रहा था, जिसे 1417 में जेल के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा था। बोरबॉन शासकों के समय राजनीतिक कैदियों को वहां रखा जाता था। बोरबॉन राजाओं का कालखंड, 1589 से 1793 और 1814 से 1830 रहा है। पेरिस के पूरब में अवस्थित प्राचीन ‘बैस्टिल’ का क़िला बोरबॉन के कठोर शासन का प्रतीक था, जिसे जनता ने नेस्तनाबूद कर दिया था। तो क्या आज का फ्रांस मध्ययुगीन बोरबॉन शासकों की तरह है?
14 जुलाई को 1789 वो तारीख़ी दिन है, जब फ्रंास की जनता दमनकारी सत्ता के विरुद्ध सड़कों पर उतर आई थी। हथियारों और गोला-बारूद से भरे बैस्टिल जेल पर विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया, वहां बंद सात क़ैदियों को रिहा कराया। क़िलेनुमा बैस्टिल जेल को विद्रोहियों ने बारूद से उड़ा दिया, उसकी एक-एक ईंट यादगार के रूप में पब्लिक उठा ले गई। फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत और क्रूर शासन के अंत का प्रतीक बन गया बैस्टिल क़िला। लिबर्टी, इक्वलिटी, फ्रेटरनिटी (स्वतंत्रता-समानता और बंधुत्व) फ्रांसीसी क्रांति के गर्भ से निकले शब्द थे, जिसे 1958 के संविधान में हीरे की तरह जड़ा गया था। बैस्टिल जेल वाली जगह पर स्मृति स्तंभ की स्थापना की गई, जिसके गिर्द फव्वारे बनाये गये। आप पेरिस जाएं, तो ये स्तंभ और फव्वारे माज़ी की याद दिलायेंगे।
मानकर चलिये कि बैस्टिल डे समारोह पर पानी फिर चुका है। मुख्य समारोह के केवल नौ दिन रह गये हैं। मालूम नहीं, 14 जुलाई को क्या होगा? भारतीय विदेश मंत्रालय भी इस विषय पर कुछ पूर्वानुमान लगाने से परहेज कर रहा है। लेकिन 14 जुलाई के समारोह में जो तैयारियां भारत की ओर से थीं, उसमें तीन राफेल युद्धक विमानों को वहां उड़ान भरने के वास्ते भेजा जाना है। फ्रांस से रणनीतिक साझेदारी का यह 25वां साल है। इसे और तारीख़ी बनाने के लिए, भारतीय वायुसेना के जांबाज कलाबाजियां दिखाने के लिए तैयार बैठे हैं। मुख्य अतिथि के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी की शिरक़त के बाद के कार्यक्रमों में भारत-फ्रांस के बीच भविष्य की रणनीतिक साझेदारी तय होनी है। पेरिस स्थित भारतीय दूतावास ने जानकारी दी कि प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, अकादमिक, सुरक्षा, उद्योग व आर्थिक सहकार सुनिश्चित किये जाएंगे।
मंगलवार, 27 जून को पेरिस के उपनगर नांतेर में जो कुछ हुआ, गनीमत है कि संसद में उसकी लीपापोती नहीं हुई। फ्रांस की नेशनल असेंबली में पुलिस की गोली से मारे जाने वाले नाहेल के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए एक मिनट का मौन रखा गया था। पेरिस के उपनगर नांतेरे में 17 साल के किशोर नाहेल को ट्रैफिक पुलिस ने जिस बर्बरता से गोली मारी थी, उसे सही ठहराते हुए राष्ट्रपति मैक्रों ने जो दो बयान दिये थे, उसने जनाक्रोश की आग में घी का काम किया था। 27 जून, 2023 की इस घटना के अगले दिन राष्ट्रपति इमानुअल मैक्रों दो बातें बोल गये। पहला, ‘ट्रैफिक पुलिस ने जो किया, सही किया।’ दूसरा, ‘कुछ लोग किशोर नाहेल की मौत को आंदोलन का अस्त्र बना रहे हैं, इसे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।’ नाहेल की हत्या के विरोध में 1350 गाड़ियां स्वाहा हो गईं, 240 इमारतें आग के हवाले कर दी गईं, आगजनी, लूटपाट की 2560 घटनाएं रविवार तक दर्ज़ हो चुकी थीं। तीन हज़ार से अधिक लोग उत्पात के आरोप में गिरफ्तार हैं। पेरिस, लीले, ल्यों, मर्सिले, श्ट्राशबुर्ग, ग्रीनोबेल हिंसा की चपेट में हैं।
लेकिन संसद में गृहमंत्री जेराल्ड दरमेंदा ने जो वीडियो फुटेज दिखाये, वो सबको हतप्रभ कर गया। दो ट्रैफिक पुलिस वाले 17 साल के किशोर नाहेल को यातायात उल्लंघन की वजह से निशाने पर ले चुके थे। एक पुलिस वाले ने कहा, ‘मार इसको।’ पिस्तौल ताने दूसरे ने कहा, ‘इसकी खोपड़ी में दागता हूं गोली।’ संसद में जिसने भी फुटेज देखा हतप्रभ रह गया। उससे पहले शासन में बैठे लोग यही कहानी दोहराये जा रहे थे कि पुलिस ने आत्मरक्षार्थ उस उद्दंड टीनएज नाहेल पर गोली चलाई थी। यह हैरतअंगेज है कि नाहेल को जहां गोली मारी गई, उस सड़क का नाम ‘नेलसन मंडेला प्लेस’ है।
जिस फ्रेंच पुलिस वाले ने उत्तर अफ्रीक़ी मूल के मुस्लिम किशोर ‘नाहेल एम’ को गोली मारी है, वह फिलहाल सलाखों के पीछे है। मगर, उसे निपटाने के लिए धुर दक्षिणपंथी नेता मारीन रे-पेन के पूर्व सलाहकार ज्यों मसीहा ने ‘गो फंड मी’ अभियान के तहत पैसे जुटाना शुरू किया। इस क्राउड फंडिंग में सोमवार शाम तक 11 लाख डॉलर आ चुके थे। इसके विरोध में सेंटरिस्ट लेफ्ट राजनीति करने वालों को तन के खड़ा होने का अवसर मिल गया है। राष्ट्रपति मैक्रों ने एक ट्वीट में लिखा, ‘ज्यों मसीहा दंगों का जेनरेटर है। उसके द्वारा जुटाये पैसों से अंगारों को और भड़काया जाएगा।’
इतना तो कुबूल करना होगा कि फ्रांस में ट्रैफिक पुलिस, क़ानून का दुरुपयोग करती रही है। उसका मन पहले से बढ़ा हुआ है। वर्ष 2023 की यह दूसरी घटना है, जब सड़क यातायात नियमों के उल्लंघन में गोली मारी गई। 2022 में ऐसी 138 घटनाएं दर्ज़ की गई थीं, जिसमें 13 लोग मारे गये। सवाल यह है कि क्या फ्रांस की ट्रैफिक पुलिस उस देश की अदालत से ऊपर है, जिसे मौत के घाट उतारने का अधिकार मिला हुआ है? फ्रेंच पुलिस की कार्रवाइयों पर ग़ौर करें, तो लगता है कि उसके निशाने पर उत्तर अफ्रीक़ी देशों से आये लोग अधिक हैं। उन्हें कीड़े-मकौड़े समझना क्या ‘स्वतंत्रता-समानता और बंधुत्व’ के संवैधानिक संकल्प का मज़ाक नहीं है?
फ्रांस में अराजकता की स्थिति दोनों तरफ से पैदा की हुई लगती है। देश में 50 लाख से अधिक मुस्लिम आबादी को लगता है कि उनके साथ न्याय नहीं हो रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म के तमाम पोस्ट इस आक्रोश की अभिव्यक्ति करते रहते हैं। मुद्दा बुर्के पर पाबंदी का हो, अथवा शार्ली आब्दो में मुहम्मद साहब के कार्टून छापने का, उबाल बहुत जल्द आता है, और वह बेकाबू हो जाता है। उत्पात से 2005 में आपातकाल लगा, और 13 नवंबर, 2015 को 130 लोगों की गोली मारकर हत्या के बाद भी लगाया गया था। तब आपातस्थिति पांच बार बढ़ाई गई। जुलाई, 2016 में नीस की बैस्टिले खाड़ी में 86 लोग मारे गये थे। चुनांचे, 2017 तक आपात स्थिति बनी रही, जिसे 1 नवंबर, 2017 को मैक्रों ने हटाया था। मैक्रों इस समय दुविधा की स्थिति का सामना कर रहे हैं। शायद, प्रधानमंत्री मोदी उन्हें मरहम लगायें।
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।