वैक्सीन के बावजूद सामूहिक इम्यूनिटी का प्रश्न
भारत में मई के महीने में कोविड-19 की दूसरी लहर ने चरम पर पहुंचकर कोहराम मचाया था, उसके अवसान पर केसों की गिनती कम होने लगी है। धीरे-धीरे पाबंदियों में कमी की जा रही है, हालांकि वैज्ञानिक तीसरी लहर की चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन ज्यादातर लोग कोविड-रोधी आचार-व्यवहार संहिता को नज़रअंदाज कर रहे हैं। पर्यटन में उछाल आया है। हम उत्सव सीजन की ओर बढ़ रहे हैं और दशहरा और दिवाली जैसे त्योहारों में ढिलाई बरतने से इनके सुपर-स्प्रैडर बनने की प्रबल संभावना है। जिन राज्यों में चुनाव होने हैं वहां आने वाले महीनों में राजनीतिक गतिविधियों में उफान आना तय है। यह सब मिलकर केसों में वृद्धि का बायस बनेंगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किसी संक्रमण के प्रति सामूहिक रोगप्रतिरोधक क्षमता (हर्ड इम्युनिटी) तब बनती है जब अधिकांश लोगों को वैक्सीन लग जाए या फिर संक्रमण से प्रभावित होकर खुद ठीक चुके हों। आईसीएमआर का चौथा सीरो सर्वे, जो जून के आखिरी सप्ताह में देश के 70 जिलों में हुआ था, पाया गया है कि टीका न लगवाने वाले वर्ग में 62 फीसदी में कोविड-19 प्रतिरोधक एंडीबॉडी बनी है, जिन्हें एक टीका लगा उनमें 81 प्रतिशत तो दोनों टीके वालों में दर 90 फीसदी पाई गई। मध्यप्रदेश 79 प्रतिशत सीरोप्रिवेलैंस के साथ सबसे ऊपर है, इसके बाद राजस्थान, बिहार आते हैं तो 44.4 फीसदी के साथ केरल सबसे नीचे है। इस सर्वे में आम लोगों के शरीर में कोविड रोधी एंटीबॉडीज़ का पता लगाया गया था।
मोटे तौर पर इससे आभास होता है कि भारत सामूहिक रोगप्रतिरोधक क्षमता पाने की ओर बढ़ रहा है। हालांकि यह सर्वे देश के कुल जिलों के 10 प्रतिशत से भी कम में और केवल 30000 लोगों पर हुआ है। चूंकि विभिन्न राज्य कोविड की तीव्रता अलग-अलग मात्रा में अब भी झेल रहे हैं, इसलिए यह डाटा राज्य से राज्य के बीच अलहदा निष्कर्ष वाला है। यहां तक कि सूबों में वैक्सीन लगाने की दर में भी काफी अंतर है। सितम्बर के शुरू तक देश में 18 साल से ऊपर आबादी के लगभग आधे हिस्से को एक या दो टीके लग चुके हैं, हिमाचल प्रदेश में यह दर 96 प्रतिशत है तो बिहार-यूपी में केवल 36 प्रतिशत।
पहले यह माना जाता था कि कोविड-19 के खिलाफ सामूहिक रोगप्रतिरोधक क्षमता तब बनेगी जब 70 फीसदी लोग संक्रमण के बाद खुद ठीक हो जाएं या फिर वैक्सीन लगे। अब इस सीमा रेखा को बढ़ाकर 85 फीसदी किया गया है, फिर भी, कुछ विशेषज्ञों को संशय है कि क्या ऐसा होने पर भी ध्येय का अंतिम बिंदु प्राप्त हो सकेगा। कोविड महामारी में डेल्टा जैसे नित नए रूपांतर धरने वाले वायरस से समस्या में जटिलता पैदा होती है, जिससे टीके लगने के बावजूद रोग प्रतिरोधकता अप्रभावी रह रही है। इसके अलावा शरीर में बनी एंटीबॉडीज़ से पैदा हुई सुरक्षा की दीर्घता भी अनिश्चित है। कुछ देशों ने घटती प्रतिरोधकता के मद्देनजर बूस्टर टीके लगाने शुरू भी कर दिए हैं।
इस्राइल अपनी 12 साल से ऊपर वाली कुल जनसंख्या के 78 प्रतिशत लोगों को दोनों टीके लगाकर दुनियाभर में अव्वल स्थान पर रहा था। इसलिए लगभग 60 प्रतिशत आबादी पूरी तरह वैक्सीन युक्त है। लेकिन इसके बावजूद वहां तीसरी लहर रोकने में मदद न मिली। आज की तारीख में रोजाना संक्रमण दर में इस्राइल की गिनती चोटी के देशों में है, प्रत्येक 150 लोगों के पीछे 1 व्यक्ति संक्रमित है। इसी तरह का मामला अमेरिका का है जहां रोजाना 50000 नए मामले आ रहे हैं जबकि आधी से ज्यादा आबादी को दोनों टीके लग चुके हैं और 61 फीसदी को एक।
इस्राइल की रोजाना संक्रमण दर पिछले कुछ हफ्तों में लगभग दुगुनी हो चुकी है और जुलाई के मध्य रही संख्या से 10 गुणा ज्यादा है। हालिया डाटा बताता है कि गैर-टीका वर्ग में 60 साल से ऊपर वालों में कोविड की अवस्था गंभीर होने की दर दोनों टीके लगवाने वालों से 9 गुणा अधिक है। चिंताजनक यह है इस्राइल के अस्पतालों में गंभीर रूप धरने वाले कोविड मामलों की मौजूदा संख्या में आधे वह हैं जिन्हें टीका लगवाए कम से कम पांच महीने बीत चुके थे। जिनकी हालत गंभीर हुई है, उनमें अधिकांश 60 साल से ऊपर वाले वह हैं जिन्हें अन्य बीमारियां पहले से हैं। जिन्होंने टीका नहीं लगवाया और स्थिति गंभीर हुई है, उनमें ज्यादातर युवा और स्वस्थ लोग हैं। इससे सवाल पैदा होता है कि पूरी वैक्सीन लगवाने के बावजूद वास्तविक असर-काल है कितना।
इसलिए चकमा देकर वायरस बाकी आबादी न फैलने पाए, इस्राइल ने उन लोगों को तीसरी टीका लगाना शुरू कर दिया है जिन्हें पहले दो टीके लग चुके है। 10 लाख से ज्यादा लोगों को फाइज़र वैक्सीन का बूस्टर टीका लग भी चुका है। पहले यह उनको लगाया जाएगा जिन्हें दूसरा टीका लगवाए कम से कम पांच महीने हो चुके हैं।
इसी तरह अमेरिका ने भी सितम्बर के पहले हफ्ते से उनका बूस्टर टीकाकरण करने की घोषणा की है, जिन्हें दूसरा टीका लगवाए 8 महीने हो चुके हैं। यूके समेत अन्य कई यूरोपियन देशों ने भी अपने लोगों को बूस्टर टीका लगवाने की बात कही है। भारत में भी विशेषज्ञ सरकार को सलाह दे रहे हैं कि एंटीबॉडीज़ का स्तर बनाए रखने को तीसरा टीका लगाने पर गंभीरता से विचार किया जाए। पीजीआई में टीकों से पाई सुरक्षा की अवधि पर अध्ययन जारी है।
हाल ही में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के तहत बनाई गई एक कमेटी ने कोविड की आसन्न तीसरी लहर को लेकर चेताया है, जिसका उभार अगले दो महीनों के दौरान बन सकता है। यह वक्त रहते बच्चों के लिए स्वास्थ्य तंत्र को और सुदृढ़ करने के लिए एक चेतावनी है, क्योंकि कहा जा रहा है इस बार बच्चे भी बराबर संख्या में प्रभावित होंगे। इस रिपोर्ट में उन बच्चों को प्राथमिकता से टीका लगाने की सलाह दी गई है जिन्हें पहले से कोई अन्य बीमारी है। इसमें बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टरों और यथेष्ट स्वास्थ्य तंत्र में कमी को भी रेखांकित किया गया है।
तथापि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तीसरी लहर तभी असरकारक होगी यदि वायरस नया रूप धरकर अधिक मारक बने। जैसे-जैसे रोजाना सक्रिय मामलों में कमी हो रही है और वायरस के अपने वजूद के लिए रूपांतर करने को नए शरीरों का मिलना मुश्किल बना दिया जाए, इससे तीसरी लहर को रोका जा सकता है। तीसरी लहर को आसन्न बताने वालों की चेतावनी लोगों में पूरी वैक्सीन उपरांत अथवा प्राकृतिक रूप से संक्रमित होकर खुद ठीक होने वालों में प्रतिरोधक क्षमता में ह्रास पर आधारित है, और तथ्य यह है कि सबको दो टीके लगाने वाले ध्येय से हम अभी भी कोसों दूर हैं। स्थिति की गंभीरता में इजाफे के पीछे पहले टीके के बाद दूसरी खुराक को नजरअंदाज़ करने वाले भी हैं। ऐसे लोगों की गिनती 1.6 करोड़ है जिन्हें 4 महीने पहले कोविशील्ड की पहली खुराक लगी थी लेकिन दूसरा टीका नहीं लगवाया। इसमें बुजुर्ग, अस्पताल कर्मी और अग्रिम पंक्ति के कोरोना-योद्धा शामिल हैं, जिन्हें बल्कि ज्यादा खतरा है। यह आंकड़ा अधूरा है क्योंकि इसमें कोवैक्सीन वालों को नहीं गिना गया है। अमेरिका में मामलों में आए उछाल के पीछे एक बड़ा कारण लोगों में दूसरा टीका लगवाने में झिझक भी है या जिन्होंने एक भी खुराक नहीं लगवाई।
हमारे यहां पिछले कुछ हफ्तों में कोविड के घटते मामलों का मतलब ढिलाई की छूट नहीं होना चाहिए। अगले कुछ महीने बहुत महत्वपूर्ण हैं। अगली राह सबका टीकाकरण और कोविड प्रतिरोधक आचार-व्यवहार संहिता का पालन करने पर जोर देने वाली हो।
लेखक पीजीआईएमईआर,
चंडीगढ़ के निदेशक और सह-लेखक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग में प्रोफेसर हैं।