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प्रदेश कांग्रेस के 3 महारथियों के सामने 5 सीटों का सवाल

10:36 AM Sep 15, 2024 IST

जसमेर मलिक/हप्र
जींद, 14 सितंबर
कांग्रेस के तीन महारथियों के सामने प्रदेश की राजनीतिक राजधानी जींद की 5 सीटों पर जीत हासिल करने की बड़ी चुनौती है। साल 2005 में कांग्रेस ने जिले की पांच सीटों में से 4 पर जीत हासिल की थी। अब साल 2024 के विधानसभा चुनाव में तीनों महारथी कितना सफल होते हैं, इसका पता 8 अक्तूबर को चुनावी नतीजे आने पर मालूम होगा।
पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला के कंधों पर इसकी जिम्मेदारी है। इनमें पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा का जींद जिले के साथ खून का रिश्ता है। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा का ननिहाल जींद जिले के डूमरखा कलां गांव में है। भूपेंद्र हुड्डा और उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा जींद में हर मौके पर यह कहते हैं कि जींद से उनका खून का रिश्ता है। उचाना कलां से कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह का नामांकन पत्र दाखिल करवाने पहुंचे पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा ने अपनी इस बात को जनता के बीच एक बार फिर दोहराया है। कांग्रेस के दूसरे महारथी पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह हैं, जिन्होंने 1972 से 2014 तक लगभग 42 साल तक कांग्रेस की राजनीति की। वह प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। 2014 में वे भाजपा में चले गए थे, मगर अब कांग्रेस में हैं।
प्रदेश कांग्रेस के तीसरे महारथी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला हैं। रणदीप सुरजेवाला भले ही 2009 और 2014 में कैथल से कांग्रेस के विधायक बने, लेकिन उनका पैतृक गांव सुरजाखेड़ा नरवाना में है। रणदीप सुरजेवाला 1996 और 2005 में नरवाना से विधायक बने थे। बीरेंद्र सिंह और रणदीप सुरजेवाला का जींद से माटी का रिश्ता है।
प्रदेश कांग्रेस के इन 3 बड़े महारथियों के सामने जींद जिले में आगामी विधानसभा चुनाव में सवाल महत्व 5 विधानसभा सीटों का है। कांग्रेस पार्टी ने नरवाना से रणदीप सुरजेवाला के नजदीकी सतबीर दबलैन को प्रत्याशी बनाया है, तो उचाना कलां से बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह चुनावी दंगल में हैं।
जींद से कांग्रेस पार्टी ने पूर्व मंत्री मांगेराम गुप्ता के बेटे महावीर गुप्ता को मैदान में उतारा है। जुलाना से महिला पहलवान विनेश फोगाट कांग्रेस प्रत्याशी हैं। सफीदों से कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व विधायक सुभाष गांगोली हैं, जिन्होंने 2019 में सफीदों से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ते हुए भाजपा के बचन सिंह आर्य को पराजित किया था। प्रदेश कांग्रेस के इन 3 महारथियों के सामने अब जींद जिले की पांचों सीटों को कांग्रेस की झोली में डालने का बहुत बड़ा सवाल खड़ा है।
पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा और उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा जींद में अपनी हर राजनीतिक सभा में जींद के लोगों से इस बार जींद जिले की पांचों सीट कांग्रेस की झोली में डालने की अपील करते आ रहे हैं। इसे अब हकीकत में बदलने की बड़ी चुनौती पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा और कांग्रेस के दो अन्य महारथियों के सामने है।

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साल 2014 में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला

हरियाणा की राजनीति को दिशा देने वाले जींद जिले में कांग्रेस पार्टी का पिछले तीन विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन बेहद दयनीय रहा है। 2009 और 2014 में कांग्रेस पार्टी जींद जिले में अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। 2019 में कांग्रेस पार्टी को केवल सफीदों विधानसभा सीट पर जीत मिली थी, और उसमें भी कांग्रेस की कम तथा पार्टी प्रत्याशी सुभाष गांगोली की समाज सेवक की ज्यादा भूमिका रही थी। पिछले विधानसभा चुनाव में जींद जिले में कांग्रेस की हालत कितनी खराब थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उचाना कलां से कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के रिश्तेदार बलराम कटवाल तथा जींद में पूर्व मंत्री बृजमोहन सिंगला के बेटे कांग्रेस प्रत्याशी अंशुल सिंगला और जुलाना से कांग्रेस प्रत्याशी धर्मेंद्र ढुल अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे। इस बार कांग्रेस के इन तीनों महारथियों पर पार्टी को पिछले तीन विधानसभा चुनावों के दयनीय प्रदर्शन से उबार कर 2005 के शानदार प्रदर्शन को दोहराने की बड़ी चुनौती है। 2005 में कांग्रेस पार्टी ने जींद जिले की 5 में से 4 विधानसभा सीटों पर शानदार जीत हासिल की थी। इनमें नरवाना से रणदीप सुरजेवाला, उचाना कलां से बीरेंद्र सिंह, जींद से मांगेराम गुप्ता और जुलाना से आईजी शेर सिंह कांग्रेस टिकट पर विधायक बने थे। सफीदों विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी कर्मवीर सैनी की हार हुई थी, और निर्दलीय बच्चन सिंह आर्य विधानसभा में पहुंचे थे, जिन्होंने बाद में कांग्रेस को समर्थन दिया था। पिछले चुनाव में कांग्रेस के सामने चुनौती जजपा और भाजपा थी। इस बार कांग्रेस के सामने, बीजेपी, इनेलो-बसपा और जजपा गठबंधन की चुनौती है।

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