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पर्यटकों को सम्मोहित करती है पहाड़ों की रानी

07:01 AM May 17, 2024 IST

अमिताभ स.
दिल्ली वाले क्या, हर प्रकृति प्रेमी के दिल से जुड़ा है मसूरी। इधर लू के थपड़े शुरू हुए, उधर उत्तर भारत के मैदानी इलाक़ों के लोग ठंडी-ठंडी मसूरी में उमड़ने लगते हैं। यह उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के करीब है। मसूरी का सैर-सपाटा दो दिन के शॉर्ट छुट्टियों के लिए भी काफी है। यहां टहलते-घूमते कई जानकार चेहरे नज़र आते हैं। यूं भी, इसे ‘क्वीन ऑफ हिल स्टेशंस’ यानी पर्वतों की रानी कहा जाता है। टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी रास्तों से गुजर कर, हिमालय की गोद में, दून घाटी के बीच बसे मसूरी पहुंचते हैं। इसके ऊंचे-ऊंचे पहाड़ देवदार, चीड़, बाज और ओक के पेड़ों से घिरे हैं।
इतिहास बताता है कि मसूरी को हिंदुस्तानियों से पहचान कराने का श्रेय अंग्रेज केप्टन यंग को जाता है। शिकार के सिलसिले में, सन‌् 1825 में केप्टन यंग पहली दफा मसूरी पहुंचे। धीरे-धीरे यंग लेंडर नाम का इलाका गौरों का फ़ौजी ठिकाना बन गया। सन‌् 1829 में यहां पहली पक्की इमारत बनी। फिर सालों बाद 1884 में, लॉर्ड डच ने मसूरी को हिल स्टेशन के तौर पर विकसित किया। तब देहरादून से मसूरी पैदल ही आते-जाते थे। सन‌् 1920 आते-आते पहली कार देहरादून से मसूरी पहुंची और 1956 में बसों की आवाजाही भी रफ़्तार पकड़ने लगी। तब से मसूरी आने वालों का हुजूम बढ़ता गया।

माल रोड का क्रेज
मसूरी की माल रोड पर टहलना एक क्रेज है। मसूरी की सारी मस्ती दो किलोमीटर लम्बी माल रोड पर ही सिमटी है। पूरब में कुलरी बाजार या कहें पिक्चर पैलेस से माल रोड का एक छोर शुरू होता है और पश्चिम में लाइब्रेरी बाजार या गांधी चौक तक जाता है। पिक्चर पैलेस देश के शुरुआती सिनेमाघरों में से एक है। 1912 में चालू हुआ, जब मसूरी में बिजली आई ही थी। आज मॉडर्न अवतार में यह 5डी सिनेमा हॉल है। अब इसमें थियेटर भी है। पिक्चर पैलेस की पिछली सड़क पर मसूरी का सबसे पुराना लढौर बाजार है। उधर लाइब्रेरी बाजार की साइड साइकिल रिक्शे भी चलते हैं। ढाई दशक पहले तक, माल रोड पर आदमी द्वारा खींचे जाने वाले बाबा अदाम के जमाने के रिक्शे चला करते थे।
मसूरी में पैदल चलने वाले ज्यादा लुत्फ उठाते हैं। और फिर, पहाड़ों पर पैदल चलने से स्फूर्ति और तंदुरुस्ती का अहसास जागता है। पैदल चलने वालों के लिए तो जन्नत है कैमल बैक रोड। करीब ढाई किलोमीटर लम्बी सड़क कुलरी बाजार को लाइब्रेरी रोड से जोड़ती है। माल रोड की रौनकों के मुकाबले कैमल बैक रोड जरा वीरान रहती है। एक तरफ आसमान छूते पहाड़ और दूसरी तरफ हरी-भरी गहरी घाटी दिलकश नजारा पेश करती है। सड़क को कैमल बैक कहा जाता है क्योंकि तोप टिब्बा पर एक पहाड़ी पर कुदरतन बैठे हुए ऊंट की आकृति बनी है।
बादलों में चलना

कभी-कभार तो माल रोड और कैमल बैक रोड पर वॉक करते-करते बादल भी साथ-साथ चलते हैं। हालांकि लाइब्रेरी चौक से करीब 7 किलोमीटर ऊपर चढ़ाई पर सैरगाह है- क्लाउड एंड। यानी जहां बादलों का अंत होता है। समुद्र तल से 7064 फुट की ऊंचाई पर है। बीचोंबीच एक बंगला है, जो बीते बीसेक सालों से रिजोर्ट में तब्दील किया गया है। साफ मौसम में, हिमालय के शिखरों पर ढकी सफेद-मखमली बर्फ दिखाई देती है। बोनोग मांउटेन क्वाएल सेंचुरी बगल में ही है।
असल में, क्लाउड एंड रिजोर्ट 1838 में बना ब्रिटिश मेजर स्वीटहाम का बंगला है। बताते हैं कि क्लाउड एंड मसूरी की चार सबसे पुरानी इमारतों में एक है। क्लाउड एंड के पीछे ‘ईको प्वाइंट’ है। खासियत है कि यहां चिल्लाने पर, आवाज़ जंगल में दूर-दूर तक गूंज उठती है। साथ ही, पगडंडी के सहारे नीचे एक गांव है-दूधली। वहां बहते पानी का चश्मा आकर्षित करता है। क्लाउड एंड के सामने शिखर पर ज्वाला देवी का प्राचीन मन्दिर है। पहाड़ और जंगल से गुजर कर मन्दिर पैदल ही चलते हैं- सवा घंटे में। यहां-वहां अखरोट के पेड़ देख-देख मन खुश हो उठता है।
खासमखास स्ट्रीट फूड भी

मसूरी के जाने-माने सैर स्पॉट्स में कैम्पटी फॉल्स शामिल है। लाइब्रेरी चौक से 15 किलोमीटर दूर चकरौता मोटर मार्ग पर कैम्पटी फ़ॉल पहाड़ों से बहती दूधिया नदी लगती है। ऊपर सड़क पर बने पुल पर खड़े तो कर, कैम्पटी फॉल्स के नीचे देखने से, गहराई का अंदाजा लगता है। सीढ़ियां उतर कर, ठंडी-ठंडी धरा तले नहाना निराला मज़ा है। एक और आकर्षण है कम्पनी बाग। कम्पनी बाग लाइब्रेरी चौक से सीधे चढ़ाई पर है। और तो और, माल रोड पर रोप-वे ट्रॉली के जरिए 400 मीटर ऊंचाई पर गन हिल पहुंचते हैं। यहां से बदरीनाथ, केदारनाथ और शिमला की पहाड़ियों तक दिखाई देती हैं। लाल टिब्बा, लेक मिस्ट, भट्टा फ़ॉल्स, यमुना पुल, नाग टिब्बा, काठगोदाम टिब्बा वगैरह कुछ और निराले स्पॉट्स हैं।
अंग्रेजी के मशहूर लेखक रस्किन बांड कई दशकों से मसूरी के लढौर इलाके में रह रहे हैं। हफ़्ते में एक शाम वह कैम्ब्रिज बुक स्टोर में आ कर अपने किताब प्रेमियों से मिलते हैं। अभिनेता टॉम आल्टर और विक्टर बैनजी भी सालों-साल से मसूरी में ही रहते रहे हैं।
मसूरी के स्ट्रीट फूड का मजा कम नहीं है। कोयले की आंच पर ताजा भुने भुट्टे माल रोड पर जगह-जगह मिलते हैं। लोगबाग खाते-खाते सैर करते हैं। ‘चिक-चॉकलेट’ के टूटी- फ्रूटी आइसक्रीम, ‘इंदर बंगाली स्वीट शॉप’ की रसमलाई, ‘ग्रीन’ रेस्टोरेंट के तन्दूरी स्टफ्ड परांठे और ‘लवली ऑमलेट सेंटर’ के अंडे ही अंडे शायद किसी और शहर में खाने को न मिलें। सन‌् 1949 से चालू ‘नीलम’ रेस्टोरेंट पनीर और चिकन डिशेज के लिए मशहूर है।
प्रकृति प्रेमियों के लिए धनोल्टी की सैर अनुभव है। मसूरी से धनोल्टी की 24 किलोमीटर सड़क दूरी करीब डेढ़ घंटे में तय होती है। सारे रास्ते हिमालय के लुभावने सीन मजा बढ़ा देते हैं। दोनों ओर चीड़ और देवदार के ऊंचे-ऊंचे घने पेड़ों की खूबसूरती हर दिल को भाती है। सेबों के बाग तो और भी सुभानअल्लाह हैं।
सैर सारा साल

* दिल्ली से सबसे नजदीक हिल स्टेशन मसूरी है। दिल्ली से मसूरी केवल 290 किलोमीटर दूर है। शताब्दी ट्रेन से 6 घंटे में दिल्ली से देहरादून पहुंचते है। आगे सड़क से मसूरी एक घंटा लगता है।
* शताब्दी ट्रेन रोज दिल्ली-देहरादून आती-जाती है। उड़ान और रोड से भी दिल्ली से देहरादून आ-जा सकते हैं।
* सारा साल ही मसूरी जा सकते हैं। हालांकि मौसम का मिजाज बदलता रहता है। अप्रैल से जुलाई तक पर्यटन का पीक सीजन होता है। फिर जुलाई आखिर से सितंबर तक मॉनसून की बारिशें होती हैं। इस दौरान, बादल सड़कों और घरों के भीतर भी तैरते रहते हैं। आगे नवंबर से मार्च तक कड़ाके की ठंड पड़ती है। हर 4-5 साल बाद, सर्दियों में बर्फ भी पड़ती है।
* वहां हर बजट के होटल हैं। अब तो शेवॉय जैसे कई शानदार पंच तारा होटल भी चालू हैं।
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