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मिस्टर इंडिया योगी की शक्ति कथा

07:38 AM Jun 16, 2024 IST

आज देश-दुनिया दसवें योग महोत्सव की तैयारी में डूबी है, लेकिन तीन दशक पू्र्व एक योगी की पहल पर केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से 1990 में पहली बार संगठित रूप से अंतर्राष्ट्रीय योग महोत्सव शुरू हुआ था। इस योगी के जीवन के इतने आयाम हैं कि समेटना मुश्किल है। विधिवत शिक्षक, प्रिंसीपल की भूमिकाओं के साथ शाकाहारी होते हुए भी भारत में बॉडी बिल्डिंग की तमाम राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीती। यह जानते हुए कि शरीर सौष्ठव का जुनून ढलती उम्र के साथ शरीर को रोगों का घर बना देता है, वे पूर्णत: योगधारा में लौटे। ‘भारत योग ’ अभियान के तहत योग की पवित्रता के लिये समर्पित पद्मश्री स्वामी डॉ. भारत भूषण से योग की असीमित शक्ति पर हुई लंबी बातचीत के चुनिंदा अंश।

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अरुण नैथानी
योगमय जीवन की शुरुआत अचानक नहीं हुई। वैसे शरीर के प्रति विशेष जागरूकता का भाव बचपन से था। कभी इस जीवन में पूर्व जन्म की साधना के चलते भी योग घटित होता है। जैसे व्यक्ति पढ़ाई करता है, किसी झंझावात के कारण पढ़ाई छूट जाती है। प्राय: पढ़ाई के विषय भूल जाता है, लेकिन दुबारा पन्ने पलटेगा तो समझ जायेगा। जैसे पढ़ाई में नये सिरे से शुरुआत में पिछली बात याद आती है, वैसे ही वर्तमान जन्म को पूर्व जन्म से जुड़ने में समय नहीं लगा। बचपन में योग व्यायाम शुरू किया। एक बार योग की क्लास चल रही थी। कोई पांच साल का था। योग शिक्षक ने भागदौड़ करते देखा। उन्होंने साधकों से कहा कि योगी का शरीर ऐसा होना चाहिए। उन्होंने प्यार से बुलाया, कहा- ठंड का मौसम है तुम योग किया करो, खासकर भस्त्रिका प्राणायाम। मैंने कहा कि नहीं कर सकता क्योंकि घर में गाय दूध नहीं दे रही है। उन्होंने भी सोचा कि घर में गाय से योग का क्या रिश्ता? बाद में पिताजी ने कहीं पढ़ा कि भस्त्रिका करने वाले को गाय के दूध का सेवन करना चाहिए क्योंकि यह बीमारी पैदा करने वाला प्राणायाम है। ये बात मैंने कहीं नहीं पढ़ी थी। दरअसल, पुरानी चीजें याद आने लगी थीं। अभी भी रैंकिंग की श्रेणी में लोग मुझे गुरु मान लेते हैं। मुझे शास्त्रीय ज्ञान हासिल करने का मौका नहीं मिला। लेकिन योग एमए का पाठ्यक्रम मेरे हाथ से ही बना। विश्वविद्यालय ने डी. लिट. भी दे दिया।

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हर क्षेत्र में योग की शक्ति
दरअसल, मानव जीवन में बदलाव के लिये योग की शक्ति असीमित है। मैंने यही सिद्ध करने के लिये जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में लगातार काम किया। लोग पूछते हैं कि आप फोर्सेज में रहे, कभी अंग्रेजी तो कभी संस्कृत के टीचर रहे व प्रिंसीपल बने। एक्टिंग व मॉडलिंग की। मिस्टर इंडिया रहे। कोई पूछे कि योगी होते हुए भटकते क्यों रहे? दरअसल मैंने यही एस्टेब्लिश करने का प्रयास किया कि योग से कुछ भी अछूता नहीं है। ध्यान ने मेरा चरित्रवान शिक्षक बनने का मार्ग बनाया। बाजोरिया कालेज में पढ़ा और उसमें प्राचार्य बना। इसी कालेज से मैंने वर्ष 1964-67 में हाई स्कूल किया। यह महत्वपूर्ण है कि जिस स्कूल में पढ़ा, वहीं प्राचार्य हुआ।


बॉडी बिल्डिंग की शुरूआत
मैंने शरीर सौष्ठव को लेकर अध्ययन किया। मैंने बाणभट्ट की कादम्बरी पढ़ी। कथा थी चंद्रापीड कथा। महानायक था चंद्रापीड। वह दस लोगों द्वारा उठाये जाने वाले लोहे को लेकर व्यायाम करता था। वो तेजस्वी था। शरीर को घटाना-बढ़ाना तब दुनिया नहीं जानती थी। सही मायने में बॉडी बिल्डिंग भारत की देन है। पौराणिक ग्रंथों में हनुमान शरीर को घटा-बढ़ा सकते थे। कैलास पर्वत को उठाने का रावण का प्रसंग सर्वविदित है। तब मैंने बॉडी बिल्डिंग का प्रयोग अपने शरीर पर करने का मन बनाया। यानी योगिक तरीके से बॉडी बिल्डिंग। वर्ष 1974 तक सहारनपुर में कोई जिम नहीं था। यहां पहला जिम मोक्षायतन का स्वास्थ्य मंदिर बना। जब अभ्यास किया व टाइटल जीते, उस समय तक जिम नहीं था सहारनपुर में। मेरे मिस्टर देहली बनने के बाद जिम बना। अपने बनाये वजन, योगाभ्यास, प्राणायाम, जिमनास्टिक एक्सरसाइज, मलखम्ब, पैरलल बार, होरिजॉन्टल बार व रॉड से अभ्यास किया।

उपलब्धि क्रम

दरअसल, इस बीच मुझे एक गाइड मिले प्रो.के.के. भल्ला। उनका बॉडी बिल्डिंग पर काम था मगर उन्हें इसमें योग की भूमिका पर जानकारी नहीं थी। बॉडी बिल्डिंग से उनकी रीढ़ डैमेज हो गई थी। उन्हें मेरी तलाश थी। मैं उनसे योग की ताकत साझा करता और वे बॉडी ब्लिडिंग की जानकारी साझा करते। मैंने उनसे बॉडी बिल्डिंग की गहराई को सीखा। मैंने जर्मनी के सैंडो मूलर की शरीर सौष्ठव की तकनीक सीखी। वे 19वीं सदी में दुनिया के सबसे ताकतवर आदमी थे। जो सैंडो बनियान चर्चित हुआ वह उनके नाम पर चलता था। उनकी एक्सरसाइज तकनीक सीखी। डंबल की तकनीक द्वारा ताकत हासिल की। जिसके जरिये मसल्स शेप चेंज करता था। मैं हर बार क्षणिक-क्षणिक परिवर्तन शरीर में करता। लोग कहते थे ये नवीनता कैसे? अगली बार दूसरी तरह से। ये कैसे मसल्स बदल लेता है? सेंडर्स एजुकेशन का मुझे फायदा हुआ। शरीर सौष्ठव की लगन सत्तर के दशक में शुरू हुई। वर्ष 1970 में पहली बार इस रास्ते पर चल सका। ये लगातार दस साल चला। मिस्टर यूनिवर्सिटी, मिस्टर उत्तर प्रदेश, आयरन मैन ऑफ उत्तर प्रदेश, मिस्टर हिमालय, मिस्टर हरियाणा, मोस्ट मस्क्यूलर मैन ऑफ पंजाब, अखिल भारतीय स्पर्धा में मिस्टर दिल्ली, भारत मांसपेशी श्री, प्रतापश्री, अर्जुनश्री। इसी कड़ी में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘मिस्टर हिमालय’ का सम्मान वर्ष 1978 में शिमला में दिया।


बॉडी बिल्डिंग से संन्यास
यह बॉडी बिल्डिंग जीवन धारा कैसे बदली? इस सवाल पर वे कहते हैं कि दरअसल, बॉडी बिल्डिंग में मुझे कमी दिखायी देती थी। पशु जो पाली देह की कहावत। हम शरीर बनाने में लगे रहते हैं, सप्लीमेंट लेते हैं। कंपीटीशन जीतकर धरती पर बोझ बन जाते हैं। भूतपूर्व होने पर समाज में कोई योगदान नहीं रहता। शरीर के स्वाभाविक प्राकृतिक विकास के विरुद्ध कार्य करने से शरीर में रोग लग जाते हैं। शरीर में ऑस्टोपोरोसिस जैसी बीमारियां लग जाती हैं। आजकल अकसर खबरें आती हैं कि फलां युवा जिम करते-करते मर गया। जिम रात-दिन का धंधा बना हुआ है। रात को ऑक्सीजन कम हो जाती है। हम रात को मैक्सिमम ऑक्सीजन के इंटेक वाला अभ्यास करते हैं। आपने देखा होगा कि जितने बॉडी बिल्डर होते हैं उनके चेहरे निस्तेज होते हैं। शरीर की सारी ऊर्जा लिंब्स में चली आती है। क्या कोई बॉडी बिल्डर स्कॉलर बना है? दरअसल, बॉडी बिल्डिंग का कोई भी योगदान हमारी गर्दन से ऊपर के हिस्से के लिये नहीं होता। खोपड़ी की जो ऊर्जा होती है, उसका परिभ्रमण शरीर के अन्य भागों की मांसपेशियों की तरफ होता है। इसको मैं पसंद नहीं करता था। फिर योग जीवन की पूर्णकालिक योग पूंजी है।


योग से जन्म-जन्मांतर का रिश्ता
दूरदर्शन ने मेरे काम पर दो डॉक्यूमेंट्री बनायी। एक मेरी योग सहज साधना पर और दूसरी मोक्षायतन पर। अमेरिका के लैरिड मैटलिंग ने बनायी। आस्ट्रेलिया ब्रॉडकास्टिंग कंपनी यानी एबीसी ने भी बनायी। सबका प्रश्न यही कि बॉडी बिल्डिंग से योग में कैसे लौटे? योग मुझे विरासत में मिला। इसने मेरी दोनों धाराएं प्रभावित की। योग से मेरा शिक्षण प्रभावित नहीं हुआ बल्कि शिक्षण का दायरा बढ़ा। पहले एक सब्जेक्ट अंग्रेजी का टीचर था। फिर मेरा विषय संस्कृत हो गया। उन दिनों योग का ग्लोबल फेस नहीं था। योग की घटना विश्व स्तर पर नहीं थी। योग के प्रचारक तो थे। मसलन योगानंद जी, योगी महेश, स्वामी राम विदेशों में काम कर रहे थे, लेकिन योजनाबद्ध नहीं था। मेरे प्रयास से वर्ष 1990 में विश्व योग दिवस मनाना शुरू हुआ।
पौरुष की रक्षा कैसी होगी
दरअसल, पौरुष रक्षा का संबंध सिर्फ योग से है, और किसी चीज से नहीं। इस समय जिम वाली जो भी पद्धतियां हैं, उसमें यौन रक्षा से संबंधित कोई शिक्षा नहीं। ये भी मोक्षायतन ने शुरुआत की। मेरे आश्रम में बिना लंगोट के व्यायाम की इजाजत नहीं है। सौ फीसदी सच है कि ब्रह्मचर्य से शक्ति व सौंदर्य बढ़ता है व मेधा बढ़ती है। युवा जमकर फूड सप्लीमेंट लेते हैं। खूब खाओ और सोओ खूब। इससे आगे बढ़कर भोग नेचुरल चीज है... पश्चिमी दर्शन का अनुकरण उत्तेजना हुई तो इच्छापूर्ति कर लें। लेकिन हमारा अपना स्वास्थ्य विज्ञान है। आहार से रस, रक्त, अस्थि ,मज्जा, वीर्य, ओजस फिर तेजस बनता है। ओज जीवन का उत्साह है। तेजस दिव्य मंडल का तेज है। भले ही सौंदर्य कॉस्टमेटिक से बना लें, लेकिन ओजस व तेजस भीतर ब्रह्मचर्य से ही बनता है। ब्रह्मचर्य स्त्री-पुरुष दोनों के लिए जरूरी है ।


गृहस्थ और ब्रह्मचर्य
सही मायनों में व्यक्ति को ब्रह्मचर्य के बाद ही गृहस्थी में प्रवेश का हक है। दरअसल, जो स्पोर्ट्स शिक्षक खेल की स्किल के आधार पर शिक्षक बन जाते हैं, वे भी ब्रह्मचर्य को प्राथमिकता नहीं देते। यह नहीं सोचते कि खेल की जो ऊर्जा है उसको कैसे बढ़ाएं। दरअसल, छात्रों को ब्रह्मचर्य व चरित्र की शिक्षा नहीं दी जाती। दूसरे शब्दों में कहें तो खेलों के शिक्षक छात्रों को डंडे से हांकने वाले होते हैं। टीचरों का खानपान भी तामसिक हो जाता है। यही वजह है कि खेल शिविरों में लगातार यौन विद्रूपताओं की खबरें आती रहती हैं। दरअसल, ब्रह्मचर्य छात्रों व खिलाड़ियों के कैरियर का हिस्सा होना चाहिए। जीवन में ब्रह्मचर्य पालन जरूरी है। पहले छात्रों से पूछते थे-‘कस्ते ब्रह्मचारी’- फिर छात्र कहते थे –‘मैं फलां गुरू का ब्रह्मचारी हूं।’ ब्रह्मचर्य की पालना के बाद ही गृह्स्थी का हक होता है। दरअसल, आज हमारे ‘एथिक्स ऑफ लाइफ’ खत्म हो गए हैं। कहां तो भारतीय समाज में पच्चीस साल तक ब्रह्मचर्य के संयम का पालन होता था। आज दलील दी जा रही ‘लिव इन रिलेशन की’। ‘लिव इन रिलेशन’ ने ब्रह्मचर्य को खोया और गृहस्थी को भी खोया। हमने बहुमूल्य वीर्य-शक्ति को खोया। हमें सिर्फ भोग की शक्ति का पता है। अनियमित खानपान व अनियमित दिनचर्या है। उससे ज्यादा घातक रेडिएशन कंप्यूटर का है। जिस गोद में बच्चे होने चाहिए उस पर लेपटॉप आ गए। जैसे ऊपर की जेब में मोबाइल से हार्ट अटैक का खतरा होता है। वैसे ही लेपटॉप हमारे शुक्राणुओं को मारता है।
वैसे पश्चिमी मूल्यों व बाजार का अंधानुकरण भी घातक है। बच्चे को डाइपर पहनाकर हम स्पर्म को बचपन से मारना शुरू कर देते हैं। ये बच्चे की भलाई के लिये नहीं, अपनी सुविधा के लिये पहनाया गया है। भारत में पहले लंगोट पहनने का तरीका ऐसा था कि उससे प्रजनन अंग बाहर रहे। उससे बच्चे की विष्ठा रुकती थी, प्रजनन अंगों पर कुप्रभाव नहीं होता था। बच्चे करीब दस साल की उम्र तक आजाद घूमते थे। दरअसल, कुदरत ने प्रजनन अंगों को बाहर इस लिये रखा है कि वहां कम तापमान में अधिक अच्छे शुक्राणु बनें। उसका तापमान बाकी शरीर से तीन डिग्री कम रहता है । इस तरह आधुनिकता ने बचपन से ब्रह्मचर्य हनन की शुरुआत कर दी। बच्चों को सेक्स के प्रति कॉन्शस बिना बात बना दिया। इसी तरह गर्म जीन्स का उपयोग भी कालांतर नुकसानदेह है। दरअसल, ब्रह्मचर्य विकसित होने का समय स्पर्म पलने का समय है। पौरुष बढ़ने का समय है। ताकि स्वस्थ संतति पैदा हो सके। हमने उसको ब्लॉक कर दिया।
गृहस्थी में संयम
गृहस्थी का आधार भी ब्रह्मचर्य ही माना जाता है। ब्रह्मचर्यपूर्वक ही गृहस्थी की तैयारी की जाती है। संयम से ही भोग गृहस्थ का दायित्व है। पितृ ऋण से उऋण होने का अवसर है। लेकिन अब तो गृहस्थ से पहले प्री वैडिंग का फैशन है। संबंधों का ट्रायल करेंगे। सूट करेगा तो शादी करेंगे, नहीं तो कोई और। संयम से गृहस्थ में जाना अच्छी संतान के लिये जरूरी है। दरअसल, कॉरपोरेट कल्चर में नौकरी की स्थितियों ने गृहस्थी को बुरी तरह प्रभावित किया है। सुबह आठ बजे टिफिन लेकर मेट्रो पकड़ने वाला पति रात बारह बजे घर लौटता है। न तो पति पत्नी को समय दे पाता है और न पत्नी पति को। फिर दफ्तर में अघोषित संबंध बनने की परिस्थितियां बनती हैं। सामाजिक स्तर पर अनैतिक रिश्ते लगातार बन रहे। यौन इच्छाओं का विस्फोट नजर आता है। जीवन मूल्यों की गिरावट है। गृहस्थ के लिए दो बातें जरूरी हैं- एक तो भोग सिर्फ संतान के लिये। भोजन को चालीस दिन लगते हैं वीर्य बनने में। चालीस दिन का संयम उसकी ऊर्जा व शुक्राणुओं को समृद्ध करने के लिये जरूरी है। लेकिन आज कोई बात ही नहीं करता ब्रह्मचर्य की।
बच्चों को कैसे मिलें संयम के संस्कार
विडंबना है, जीवन के संस्कार माता-पिता व शिक्षक द्वारा देने के बजाय उसे आज मोबाइल ज्ञान दे रहा है। मोबाइल के जरिये आने वाली अपसंस्कृति का मुकाबला कैसे करें। निश्चित रूप से इसे शिक्षा का हिस्सा बनाना होगा। विडंबना यह कि जो ऐसी संस्कारी शिक्षा देते थे, वे शिक्षक बनने बंद हो गए। ट्यूशन ने बच्चों की सामाजिकता, स्वास्थ्यवर्धन व खेलों में भागीदारी को खत्म किया है। सही मायनों में नई शिक्षा नीति के बजाय जीवन पद्धति की बात करनी चाहिए। योग में भी जीवन संवारने के अवसर हैं। बच्चे अगर ठीक से पढ़ना शुरू कर दें तो भी बहुत कुछ हो जाएगा। नई शिक्षा नीति, शिक्षा की पद्धति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। हम पाठ्यक्रम में योग शिक्षा की बात करते हैं। लेकिन योग स्टडी का पीरियड मध्यांतर में खाना खाने के बाद होता है। इंटरवल के बाद भरे पेट योगाभ्यास नहीं होना चाहिए। दरअसल, यह पहला पीरियड होना चाहिए। योग शिक्षकों को स्कूल ऑवर थ्योरी के लिये रखने चाहिए। सुबह-शाम को योगासन और प्राणायाम की क्लास लगनी चाहिए।
स्थिति चिंताजनक
दरअसल, स्कूल गोइंग छात्रों के लिये प्राइवेट ट्यूशन्स बंद होनी चाहिए। ताकि वह समाज में परिवार के साथ जी सके। उन्हें दिनचर्या बनाने के लिये अधिक समय मिले। दूसरी बात यह कि कंप्यूटर से जो टीन ऐज बच्चों की जरूरत है वही चीज दी जानी चाहिए। उसको डिफाइन करना चाहिए। दुर्भाग्य की बात है कि उनको सब कुछ परोसा जा रहा है। जो सारा का सारा गिरावट का रास्ता है। जो विकृत यौन जीवन पर आधारित है। पश्चिमी तर्ज पर जस्ट फॉर फन। उसमें कुछ भी कर लें। महानगरों में यौनविकृति की काली छाया है।

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