रामरति का सुख
डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
रेलवे की पटरी के किनारे बनी झोपड़पट्टी में एक टूटी-सी झोपड़ी में रहने वाली गरीब रामरति आज जाने क्यों, भगवान की मूर्ति के सामने खड़ी होकर, दोनों हाथों को जोड़े, भगवान का धन्यवाद कर रही है। आज गरीब रामरति बेहद खुश है। भला खुश हो भी क्यों नहीं? आज जीवन में पहली बार उसके पति और बच्चों को सिर्फ भरपेट ही नहीं, बल्कि बेहद स्वादिष्ट और ताज़ा भोजन जो खाने को मिला है।
रामरति इस झोपड़ी में अपने बेरोजगार, नशेड़ी पति के साथ अपनी दोनों बेटियों और इकलौते बेटे को बहुत खुश होकर खाना खाते देख रही थी, तो उसे विश्वास हो गया था कि देवी मइया उस पर मेहरबान हो गई हैं। कहां रोज़ अमीरों द्वारा छोड़ी गई जूठन होटल से लाकर रामरति इन सबको खिलाती रही और कहां आज उसी होटल के मालिक ने सबके खाने के लिए गर्मा-गर्म और ताज़ा खाना रामरति को दिया है। ऐसे में, सबको भरपेट खाना खिलाने के बाद रामरति खुद को दुनिया की सबसे भाग्यवान औरत मानकर अपनी देवी मइया का शुक्रिया अदा कर रही थी।
रामरति तो पैदा ही गरीब मां की कोख से हुई थी और रोज़ शराब के नशे में धुत्त होकर पिता द्वारा अपनी मां को पिटते देखकर, यही मान लिया था कि भगवान ने इस दुनिया में औरत को पैदा ही शायद इसलिए किया है कि वह दिन भर मेहनत-मजदूरी करती रहे और अपने पति की इच्छा के अनुसार पिटती रहे और बच्चे जनती रहे।
आज बेचारी रामरति का दुर्भाग्य अचानक ही इतने बड़े सौभाग्य में बदल गया। वह बेचारी तो बस इतना ही जानती है कि रोज़ शहर के नामी-गिरामी होटल में बर्तन मांजने वाली रामरति को आज होटल के सबसे बड़े रसोइए ने खुद आकर कहा था कि ‘चलो, तुम्हें होटल के मालिक और मैनेजर साहब ने तुरंत बुलाया है।’ एकबारगी तो रामरति कांप ही गई थी। बेहद डरी हुई सी रामरति जब मालिक के केबिन में पहुंची, तो पहली बार उसने सूटेड-बूटेड मालिक और होटल के मैनेजर साहब को देखा।
होटल मालिक की तरफ देखते हुए, होटल के मैनेजर साहब ने रामरति से कहा, ‘देखो, रामरति! तुम तो बहुत ही बढ़िया चने और सरसों का साग और मक्का की करारी रोटियां बनाना जानती हो इसलिए हमने फैसला किया है कि अब से तुम हमारे होटल में बर्तन नहीं मांजोगी बल्कि रोज़ आकर सरसों का साग और मक्का की रोटियां बनाया करोगी।’
रामरति ने खुश होकर जैसे ही हामी भरी, वैसे ही मालिक ने अपने बटुए से सौ-सौ रुपये के पांच नोट निकाल कर रामरति को देते हुए कहा, ‘ये मैनेजर साहब तुम्हें तुम्हारा काम समझा देंगे। तुम अब हमारी रसोई में ही काम किया करोगी।’और तभी, मैनेजर साहब ने होटल के सब से बड़े रसोइए की ओर देखते हुए कहा, ‘मिस्टर इस्माइल! रामरति को आज घर के लिए ताज़ा और काफी खाना पैक करवा कर दे देना और पूरा काम भी ठीक से समझा देना।’ रामरति को लग रहा था कि वह खुली आंखों कोई सपना देख रही है। उसने खुश होकर अपने मालिक और मैनेजर के चरण छुए और गर्मा-गर्म खाना लेकर झोपड़ी में आई थी। उसके पति और बच्चों ने जीवन में पहली बार ऐसा खाना देखा था और भर पेट खाया था। अपने पूरे परिवार के साथ ही आज तो रामरति ने भी पहली बार बढ़िया दाल मक्खनी, पालक-पनीर, मलाई कोफ्ते, बढ़िया पुलाव, ताज़ी रोटियां और सूखे मेवे डालकर बनाई खीर खूब स्वाद ले लेकर खाई। आज रामरति के चेहरे पर अठखेलियां करती हुई खुशी उसकी टूटी-फूटी सी झोपड़ी के छप्पर में हो गए बड़े से छेद से छनकर आती हुई रोशनी में साफ-साफ दिखलाई दे रही थी।
दरअसल, रामरति के इस अप्रत्याशित भाग्योदय के पीछे एक ऐसी घटना है, जो घटित न हुई होती, तो रामरति को आज मिली हुई खुशी कभी नसीब ही नहीं हुई होती। पिछले सप्ताह अचानक केंद्र सरकार से आए एक फरमान के कारण ही राज्य की सरकार ने यह फैसला लिया था कि इस शहर में ‘पर्यावरण सुधार’ पर एक राज्यस्तरीय सेमिनार करवाई जाएगा। अब यों तो इस शहर में कई बड़े-बड़े और नामी होटल हैं, लेकिन पर्यावरण सुधार पर आयोजित की जाने वाले सेमिनार में राज्य के मुख्यमंत्री के साथ ही पर्यावरण संरक्षण मंत्री को भी जिलाधिकारी ने निमंत्रित कर लिया तो फिर होटल भी तो उनकी पसंद का ही होना जरूरी था न? प्रशासन का पूरा ध्यान राज्य के धाकड़ मंत्री ‘पर्यावरण संरक्षण’ मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री रामलाल जी को ही प्रसन्न करने में लगना स्वाभाविक-सा हो गया था। जब कमिश्नर साहब और जिलाधिकारी ने मंत्री जी को बताया कि माननीय मुख्यमंत्री जी ने तो सेमिनार में आने से मना कर दिया है, तो मंत्री जी ने अपने मुंह के पान को गाल की तरफ सरकाते हुए पीए से कहा, ‘हमारी बात तुरंत सीएम साहब से कराओ।’
पीए ने पल भर में बताया कि सीएम साहब ‘लाइन’ पर हैं, तो पीए से फोन लेकर मंत्री जी बोले, ‘जयहिंद, सीएम साहब! आप अगर इस महत्वपूर्ण सेमिनार का उद्घाटन नहीं करेंगे, तो आपकी ‘विकास पुरुष’ वाली छवि को तो बट्टा ही लग जाएगा।’ उधर से सीएम साहब कुछ बोले होंगे, जिसके उत्तर में मंत्री रामलाल जी ने बड़ी जबरदस्त चापलूसी करते हुए फरमाया, ‘अब हमारा फैसला जरा ध्यान से सुन लीजिए सीएम साहब! ये जो रामलाल है न हुज़ूर! यह तो अपने आप में एक फ्यूज़ बल्ब है आपकी रोशनी से ही हमारी चमक बनी हुई है। जान लीजिए कि सेमिनार का भव्य उद्घाटन तो आपके कर-कमलों से ही होगा सीएम साहब... वर्ना... भाड़ में जाए सेमिनार।’
और, आखिर में, राज्य के मुख्यमंत्री जी ने ‘पर्यावरण सुधार संगोष्ठी’ के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में पधारने की स्वीकृति दे दी। अब पूरा रौब जमाते हुए मंत्री जी ने फरमाया, ‘अरे, कमिश्नर बाबू! सीएम साहब हमारा वज़न अच्छी तरह जानते हैं, हम कहें और सीएम साहब मना कर दें, यह कभी हो सकता है क्या?’ कमिश्नर और डीएम टकटकी लगाए मंत्री जी की बात सुन रहे थे और ‘जी, सर! जी, सर’ उनके मुंह से निकल रहा था। तभी मंत्री जी बोले, ‘सीएम साहब की खातिरदारी जमकर होनी चाहिए। कोई कोर-कसर उनके स्वागत में न रहे।’ मंत्री रामलाल जब कभी इस शहर में आते हैं, तब प्रशासन उनके ठहरने-भोजन आदि की व्यवस्थाएं शहर के नामी ‘सनराइज’ होटल में ही करता आया है। अब उनका निर्देश मिला तो सेमिनार के साथ-साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री जी के ठहरने की व्यवस्था भी इसी होटल में की गई।
स्वयं मंत्रीजी कमिश्नर और जिलाधिकारी के साथ होटल ‘सनराइज’ पहुंचे और मुख्यमंत्री जी के दौरे की तैयारियों में जी-जान से जुट गए। कमिश्नर साहब को निर्देश देते हुए मंत्री जी ने कहा, ‘देखिए, कमिश्नर बाबू! एक-एक इंतज़ाम आप खुद देखें, ताकि मुख्यमंत्री जी यहां से पूरी तरह गद्-गद होकर ही जाएं। यह हमारी इज्ज़त का मामला है।’
कमिश्नर साहब का उत्तर था, ‘आप बेफिक्र रहिएगा सर। मैं और हमारे ये बेहद चुस्त डीएम साहब सारी व्यवस्थाओं को खुद देख रहे हैं आईजी और यहां के पुलिस कप्तान भी बस पहुंचने ही वाले हैं। कमिश्नर साहब ने मंत्री जी से आज्ञा मांगी, तो डीएम साहब ने एसडीएम और डीएसपी को बुलाकर कहा, ‘मुख्यमंत्री जी के प्रोग्राम का फैक्स आते ही मुझे तुरंत बताएं और हां, जरा होटल ‘सनराइज’ के मैनेजर को तुरंत यहां बुलवाकर मेरी बात कराइए।’
एसडीएम ने तुरंत होटल के मैनेजर को बुलवाया और डीएम साहब को सूचित किया कि सीएम साहब के प्रोग्राम का फैक्स भी मिल गया है। माननीय मुख्यमंत्री जी सेमिनार का उद्घाटन करने के बाद दोपहर का भोजन यहीं करेंगे और कुछ देर यहीं विश्राम करके लौटेंगे। इस बीच होटल ‘सनराइज’ के मैनेजर आ चुके थे। उन्हें देखकर डीएम साहब बोले, ‘देखिए मैनेजर साहब! आपके होटल में राज्य के मुख्यमंत्री पधार रहे हैं। यह आपके होटल की प्रतिष्ठा के लिए बहुत बड़ी बात है। अब आपको सीएम साहब के लंच और विश्राम की यादगार व्यवस्था करनी है।’
मैनेजर साहब मुस्कुराते हुए बोले, आप पूरी तरह निश्चिंत रहें, सर! आपको रत्ती भर शिकायत नहीं होगी। बस, आप एक छोटी सी मेहरबानी हम पर कर दें।’ डीएम साहब तुरंत बोले, ‘हां, हां मैनेजर साहब, फरमाइए?’ थोड़ा झिझकते हुए मैनेजर ने कहा, ‘हमें ऑनरेबल सीएम साहब के खाने में उनकी किसी खास पसंद ‘डिश’ का पता चल जाए, तो हम वही ‘डिश’ खास तौर पर बनवा लेंगे।’ डीएम साहब मैनेजर का कंधा थपथपा कर बोले, ‘रियली, वेरी स्मार्ट! वेरी गुड सजैसेशन मिस्टर! मैं आज ही सीएम सचिवालय से सीएम साहब की मनपसंद ‘डिश’ के बारे में फोन पर जानकारी ले लेता हूं।’ शाम को डीएम साहब का फोन आया, तो डीएम साहब बोले, ‘ध्यान से सुनिए मैनेजर साहब! हमारे मुख्यमंत्री जी उस दिन दोपहर के खाने में बढ़िया चने और सरसों का साग खाएंगे, मक्का की करारी-करारी रोटियों के साथ और इस के साथ शुद्ध देसी घी और बढ़िया छौंके हुए मट्ठे के साथ बिना मसाले वाले गुड़ का इंतज़ाम भी जरूर रखिएगा।’ मैनेजर ने बड़ी ही विनम्रता का साथ उत्तर दिया, ‘ओ के, डीएम सर! सब हो जाएगा।’
और, फोन रखते ही मैनेजर ने होटल के चीफ शेफ इस्माइल को बुलाया और उसके आते ही कुछ चिंतित से स्वर में बोला, ‘इस्माइल! यार, हमारे मुख्यमंत्री को ‘लंच’ में चने-सरसों का साग, मक्का की करारी रोटियां, मक्खन वाला ताज़ा मट्ठा और बिना मसाले वाला गुड़! क्या ये सब खिला पाओगे?’ चीफ शेफ कुछ देर तो सोचता रहा और फिर परेशानी के स्वर में बोला, ‘ओह नो सर! मैं तो लाजवाब ‘नॉनवेज’ लंच की तैयारी कर रहा हूं यह क्या हो गया है! सर! मैंने तो आज तक कभी ये ‘डिश’ बनाई ही नहीं! बेहद परेशान मैनेजर के मुंह से निकला, ‘फिर अब हम करें क्या? तुम नहीं जानते मिस्टर इस्माइल! ये पसंद इस प्रदेश के चीफ मिनिस्टर की है। हमें अपने होटल की शान कायम रखने के लिए ये सारी चीजें तैयार करानी ही पड़ेंगी वर्ना... जान लो कि तुम्हारे साथ मेरी नौकरी भी गई।’
थोड़ी चुप्पी के बाद इस्माइल बोला, ‘ठीक है सर! अब होटल की, आपकी और अपनी भी इज्ज़त तो बचानी ही है। मैं कुछ न कुछ करता हूं। डोंट यू वरी, सर। मैं मैनेज कर लूंगा।’ लंबे अनुभव की डोर पकड़ कर, चीफ शेफ होटल के पीछे बर्तन मांजने और धोने वाली औरतों के बीच पहुंचा और सबको अपने पास बुलाकर बोला, ‘अरे! क्या तुम में कोई है, जो चने और सरसों का साग बनाने के साथ मक्का की करारी और पतली रोटियां बनाना जानती है?’ बात सुनकर वे औरतें टुकुर-टुकुर एक-दूसरे का मुंह ताकने लगीं। तभी पसीने से तर-बतर, अपनी धोती के पल्लू से मुंह पौंछते हुए रामरति आगे निकल कर विनम्रता से बोली, ‘जी, साहेब! मैं सरसों का साग और मक्का की पतली-पतली रोटी बनाना जानती हूं, कितनी ही बार अपने गांव में बनाकर सबको खिलाया है।’
बेहद उत्साहित होकर इस्माइल बोला, ‘शाबाश, रामरति! हाथ-पैर धोकर जरा जल्दी से मेरे कमरे में आओ।’ जैसे ही रामरति आई, इस्माइल ने उसे कुर्सी पर बिठाते हुए कहा, ‘हां, क्या नाम है तुम्हारा? ओह, हां, देखो रामरति! कल तुम्हें हमारे होटल के आदमी के साथ जाकर बाजार से सारा जरूरी सामान लाना होगा और बस, परसों सुबह-सुबह होटल आकर तुम्हें सरसों और चने के साथ मक्का की रोटियां बनानी होंगी। और हां, कल तुम होटल के बर्तन मांजने का काम मत करना।’ बेहद खुश हो कर रामरति ने हामी भर दी। और, आखिर वह दिन आ ही गया, जब राज्य स्तरीय ‘पर्यावरण सुधार सेमिनार’ के उद्घाटन के लिए मुख्यमंत्री जी अपने धाकड़ मंत्री रामलाल जी के साथ पधारे। सेमिनार के उद्घाटन के बाद मीडिया के लोगों से मुखातिब होकर मुख्यमंत्री जी ने दिल खोलकर राज्य के विकास और पर्यावरण में सुधार की महत्ाा पर खूब बातें कहीं, जमकर फ़ोटो खींचे गए और मंत्री रामलाल जी की धाक जम गई। मुख्यमंत्री जी प्रदेश के पर्यावरण संरक्षण मंत्री रामलाल जी का हाथ थामे हुए ‘लंच’ के लिए होटल के शानदार ‘डाइनिंग हॉल’ में पहुंचे। एक बड़ी-सी डाइनिंग टेबिल पर मुख्यमंत्री जी की ‘खास पसंद’ के रूप में चने और सरसों का देसी घी में छौंका गया साग, बड़ी सुंदर सिकी हुई पतली-पतली मक्का की रोटियों के साथ सजाकर रखा गया था और पास ही ताज़ा छाछ, मक्खन और बिना मसाले का गुड़ भी रखा हुआ था।
मुख्यमंत्री जी के प्यार भरे, विशेष आग्रह पर मंत्री रामलाल जी भी ‘लंच’ के लिए बैठ गए। भर पेट भोजन कर लेने के बाद, बेहद गद्-गद होकर मुख्यमंत्री जी बोले, ‘भाई रामलाल जी! आपने तो आज सचमुच कमाल ही कर दिया है। सच कहता हूं कि ऐसा स्वादिष्ट और लाजवाब सरसों का साग और ऐसी करारी-करारी मक्का की रोटियां तो हमने वर्षों बाद खाई हैं। थोड़ी देर रुककर रामलाल जी के कंधे पर हाथ रखते हुए मुख्यमंत्री जी बोले, ‘सुनो जी, ये लाजवाब साग और मक्का की रोटी खाने तो हमें जल्दी ही फिर यहां आना पड़ेगा। अरे, भाई! किसने बनाया है आज का खाना? तनिक उस जादूगर को बुलवाइए तो सही? हमें तो आज सच में अपना गांव याद आ गया है।’
और तभी, होटल के मैनेजर और चीफ शेफ को साथ लेकर मालिक राजदान साहब आगे आकर बोले, ‘मान्यवर मुख्यमंत्री जी! ये हमारे मैनेजर और चीफ श्ोफ इस्माइल साहब का कमाल है।’ तभी गद्-गद होकर मुख्यमंत्री जी ने जेब से अपना बटुवा निकाल कर पांच-पांच सौ के कई नोट चीफ शेफ इस्माइल को पकड़ा दिए। इस्माइल ने ज्यों ही नोट लिए, तो मुख्यमंत्री जी खुश होकर बोले, ‘भई वाह! आज तो सचमुच मज़ा आ गया। इसे अपना इनाम समझिए बहुत जल्दी ही हम और ये रामलालजी यही सब खाने के लिए फिर आएंगे।’
और, बेचारी रामरति! वह तो इस सारे राग-रंग से पूरी तरह दूर थी, कोसों दूर। वह तो बस इतना ही जानती थी कि होटल के मालिक ने उसे सौ-सौ रुपये के पांच नोट देकर कहा है कि रामरति अब झूठे बर्तन नहीं मांजा करेगी, बल्कि अब होटल की खास ‘डिश’ यानी ‘सरसों का साग और मक्का की रोटी’ बनाया करेगी। पता नहीं, मुख्यमंत्री जी कब फिर आ जाएं?