पैण्डुलम
सुकेश साहनी
बेटे का सहमा चेहरा, पत्नी की तनी हुई भृकुटि और मां की स्वेटर बुनती तेज अंगुलियां... घर में घुसते ही उसे तनाव भरे वातावरण को सूंघने में देर न लगी। वह कुर्सी पर ढेर हो गया। दफ्तर में ट्रेसिंग टेबल पर लगातार खड़े-खड़े नक्शे तैयार करने की वजह से उसकी कमर और टांगें बुरी तरह दुख रही थीं।
पत्नी ने चाय का प्याला लाकर उसके सामने रखा और फिर एकाएक राजू को उसकी किसी नन्ही शरारत पर जोर से तमाचा जड़ दिया। चाय के पहले घूंट से ही उसका मुंह कसैला हो गया। राजू सिसक रहा था। उसके तन-बदन में आग लग गई। गुस्सा मां पर और पीट दिया इस नन्ही जान को...। उसकी इच्छा हुई चाय का कप जमीन पर दे मारे और सरोज को खूब फटकारे, पर अपने पिछले अनुभवों के बारे में सोचकर उसने खुद को नियंत्रित किया और चाय का कप उठाकर बरामदे में आ गया।
सरोज को कितना समझाया है उसने, ‘मां के जीवन के दिन ही कितने बचे हैं... तुम ही एडजस्ट कर लो। बाबूजी की मृत्यु के बाद मां बेहद अकेली और असुरक्षित महसूस करती है... चिढ़चिढ़ी भी हो गई है, अगर कुछ कह दे तो तुम बर्दाश्त कर लिया करो।’
‘इस घर में कोई काम ढंग से होता है।’ मां की चिढ़चिढ़ाती आवाज उसके कानों में पड़ी।
घड़ी की सुई के आगे दौड़ती हुई सरोज पर कोड़े बरसाना कहां की अक्लमंदी है। पूरे घर को सरोज ने कितनी अच्छी तरह से संभाला हुआ है। एक बार दबी जुबान से यह बात उसने मां को समझानी चाही थी तो मां ने रो-रोकर बुरा हाल कर लिया था। उसे बहुत तकलीफ हुई थी। जब से होश संभाला, मां को कष्ट झेलते ही देखा है। बाबूजी की लंबी बीमारी के कारण कैसी-कैसी परेशानियों का सामना करना पड़ा है मां को। बाबूजी की मृत्यु के बाद दूसरों के कपड़े सिल-सिलकर पढ़ाया है उसे। तब वह अक्सर सोचा करता था कि नौकरी लगने के बाद मां को कोई कष्ट नहीं होने देगा... दुनिया का हर सुख लाकर मां के कदमों में डाल देगा।
बरामदे में पड़ोस के खेलते बच्चों के शोर से उसका ध्यान भंग हुआ। ‘श्यामू ने दीपू से चिल्लाकर कहा, ‘स्टैच्यू!’ दीपू जिस मुद्रा में था, उसी में मूर्तिवत् खड़ा हो गया।
वह फुर्ती से कमरे में लौटा, सबकी नजर बचाकर दवाइयों वाले डिब्बे से नींद की एक टैबलेट निकाली, बची हुई चाय के साथ उसे निगल गया और फिर ऊंची आवाज में बोला, ‘आज ऑफिस में बहुत काम था, थक गया हूं। भूख बिल्कुल नहीं लग रही... अगर आंख लग जाए तो खाने के लिए मुझे न उठाया जाए।’
वह थका-थका सा बिस्तर पर लेट गया और फिर असहाय-सा दीवार घड़ी के पैंडुलम की ओर देखने लगा, जो नपी-तुली जगह में टिक-टिक की आवाज के साथ इधर-उधर झूल रहा था।