अवगुंठित भावों का तिरोहण ही मुक्ति मार्ग
प्रगति गुप्ता
प्रेमाकर्षण में बंधा व्यक्ति छोटी-छोटी अपेक्षाएं बांध लेता है। प्रेम में बंधी स्त्री रिश्ते में स्पष्टता चाहती है, मगर पुरुष मुश्किल से मन खोलता है। उम्र के एक विशेष पड़ाव पर स्त्री प्रेमिल संबंध पर टिकना चाहती है, मगर पुरुष के लिए दैहिक सुख भी मुख्य होता है। वह कहता है :-
‘कालिंदी, जीवन में जितनी कम अपेक्षा रखेंगे, उतनी ही निराशा कम होगी। यह एक जनरल बात कह रहा हूं। इस कहानी को अधूरी रहने दो, ताकि अनेक मोड़ मुड़ने की संभावनाएं बनी रहें। ...जीवन में साथ के अलावा जो मिलेगा, वो बोनस होगा।’
पतंगबाजी या नृत्य जैसी कलाएं व्यक्ति को जीवन के उन गूढ़ अर्थों से परिचय करवाती है, कहानी ‘पतंग’ में कई प्रेरक पंक्तियां हैं जैसे ‘कागज का टुकड़ा जब बुलंदियों के आसमान को छूता है, तब आसमान की अन्य पतंगें उसे रोकती हैं, काटती हैं। पतंग चारों ओर से समस्याओं से घिर जाती है।’
डॉ. कुमुद रामानंद के कथा संग्रह की कहानी ‘समर्पण’ प्रेमी जोड़े की जीवन यात्रा है। ‘माई’ एक पढ़ी-लिखी स्वाभिमानी अविवाहित स्त्री की कहानी है, जिसके विचार भाई से टकराते हैं।
संकलन में परिवर्तन, अस्तित्व और खलनायक कहानियों के विषय अवसाद से जुड़े हैं। परिवर्तन कहानी में मित्र द्वारा मित्र को खुशियों की तरफ लौटा कर लाना है। खलनायक कहानी की प्रस्तुति अलग है। ‘अस्तित्व’ अपनों द्वारा प्रताड़ित स्त्री की पीड़ा है।
लेखिका डॉ. कुमुद रामानंद की अधिकांश कहानियों में तिरोहित शब्द के अर्थ मुखर होते हैं। आपने भूमिका में भी लिखा है कि मानव-मन की कंदराओं में जन्म के पहले से ही अनेक भाव अवगुंठित होते हैं; छिपे होते हैं। ...इनका तिरोहण ही मुक्ति का मार्ग है।
सभी कहानियों में प्रेम और सकारात्मकता है। भाषा सरल और प्रभावी है।