मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

आस्था का रास्ता और वक्त का वास्ता

06:19 AM Jul 06, 2023 IST

शमीम शर्मा

Advertisement

एक शोकसभा में प्रवचन के दौरान पंडित जी ने पूछा कि वे लोग हाथ खड़ा करें जो दो टाइम रोज़ाना मंदिर जाते हैं। मैंने पूरे पंडाल में गर्दन झुकाकर देखा कि एक भी हाथ खड़ा नहीं हुआ। इसके बाद पंडित ने सवाल को ढीला करते हुए कहा कि वे लोग हाथ खड़ा करें जो रोजाना एक बार मंदिर जाते हैं। इस बार भी सभा में एक भी हाथ ऊपर नहीं उठा। इसके बाद पंडितजी की टिप्पणी चौंकाने वाली थी। उन्होंने कहा, जब तुम लोगों ने मंदिर में जाना ही नहीं है तो सरकार क्यों करोड़ों फूंक रही है। हमने मंदिरों को घूमने का स्थल बना दिया है। कभी-कभार किसी त्योहार या किसी खास अवसर पर लोग मंदिर जाते हैं और मंदिरों को देखकर लौट आते हैं। जबकि मंदिर तो पूजन-वंदन का स्थल है। हम एक वर्ग विशेष के हर शुक्रवार की गतिविधि की तो चर्चा करते हैं पर स्वयं से यह नहीं पूछते कि हमने पूजा-अर्चना क्यों छोड़ दी?
मुझे याद आती हैं मेरी दादी-नानी जो प्रायः रोजाना नियम से मंदिर जाया करतीं, फिर देखा कि मां कभी-कभार मंदिर जाती थीं और उसके बाद मैंने स्वयं को कभी मंदिरों में खड़े नहीं देखा। और अगली पीढ़ी की तो राम जाने।
चाहे कोई कितना ही चिल्लाये कि हिन्दू कट्टर हैं, कट्टर हैं पर यह बात मेरे गले नहीं उतरती। मेरे ख्याल में हर जगह कट्टरता है सिवाय हिंदू धर्म के। कहीं आप बिना सिर ढके हरगिज़ नहीं जा सकते। अन्य धार्मिक स्थलों में जाने के भी नियम हैं। पर मैंने भव्य समारोहों में देवी-देवताओं के समक्ष बड़े-बड़ों को जूते पहन दीप प्रज्वलित करते देखा है। शिक्षण संस्थानों में तो सरस्वती के सामने जूते पहने-पहने माला पहनाना या दीया जलाना आम बात है। कोई टोक दे तो जूते जरूर उतर जाते हैं।
पूजन-अर्चन से दूर होते जाना सिर्फ हिंदू धर्म में ही संभव है। रोचक तथ्य यह है कि हिंदू धर्म का सबसे ज्यादा विरोध हिंदू ही करते हैं। धर्म के वास्ते सब लड़ने-मरने को तैयार हैं पर धर्म के रास्ते पर चलने को कोई राजी नहीं है। हिन्दू धर्म की सर्वोच्च विशेषता यह कि इसमें गायन भी है, नृत्य भी है और तालियां बजा-बजा कर झूमने की मस्ती भी है जो शायद और किसी धर्म में नहीं है।
000
एक बर की बात है अक नत्थू के पड़ोस म्हां भगवान दास का घर था। भगवान दास की छोरी का नाम था- भक्ति। जद नत्थू बारवीं मैं फेल हो गया तो उसकी मां रामप्यारी समझाते होये बोल्ली- बेट्टा! किमें भगवान की भक्ति मैं ध्यान लगाया कर, फेर पास हो ज्यैगा। नत्थू बोल्या- मैं तो भक्ति मैं खूब ध्यान लगाऊं हूं पर भगवान ए नीं मानता।

Advertisement
Advertisement
Tags :
आस्थारास्तावास्ता