For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

गीता के उपदेशों में समाहित है समानता और शांति का मार्ग : बंडारू दत्तात्रेय

07:14 AM Dec 26, 2024 IST
गीता के उपदेशों में समाहित है समानता और शांति का मार्ग   बंडारू दत्तात्रेय
Advertisement

कुरुक्षेत्र, 25 दिसंबर (हप्र)
पवित्र ग्रंथ गीता के उपदेश सभी प्राणियों की एकता, नि:स्वार्थ भाव और भलाई के प्रति समर्पण के साथ कर्तव्यों का पालन करने का संदेश देते हैं। इस पवित्र ग्रंथ गीता के उपदेशों में समानता और शांति का मार्ग समाहित है। इन उपदेशों को आज पूरी मानव जाति को धारण करने की जरूरत है। ये विचार हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने बुधवार को पंजाबी धर्मशाला कुरुक्षेत्र के सभागार में विश्वविख्यात संत अवधूत गणपति सच्चिदानंद स्वामी द्वारा आयोजित सम्पूर्ण श्रीमद् भगवद् गीता पारायण यज्ञ के शुभारंभ अवसर पर बोलते हुए व्यक्त किए। इससे पहले राज्यपाल ने दीपशिखा प्रज्वलित करके विधिवत रूप से सम्पूर्ण श्रीमद् भगवद् गीता पारायण महायज्ञ का शुभारंभ किया।
अहम पहलू यह है कि कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर शायद पहला अवसर है कि करीब 50 देशों से आये अप्रवासी भारतीयों ने श्रीमद् भगवद् गीता के संपूर्ण 700 श्लोकों का समवेत स्वर में पाठ किया। राज्यपाल ने सभी श्रद्धालुओं को बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर कुछ दिन पहले ही अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का आयोजन किया गया। इस महोत्सव में वैश्विक गीता पाठ के श्लोकों का उच्चारण देश ही नहीं विदेशों में भी किया गया। इससे पूरे विश्व में उपदेशों के माध्यम से शांति का संदेश गया।
उन्होंने कहा कि विश्वविख्यात संत अवधूत गणपति सच्चिदानंद स्वामी जी पवित्र ग्रंथ गीता के उपदेशों को एक मिशन के रूप में लेकर पूरी मानवता जाति तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। गीता पारायण यज्ञ का नेतृत्व विश्वविख्यात संत अवधूत गणपति सच्चिदानंद स्वामी ने किया। मैसूर स्थित अवधूत दत्त पीठम के पीठाधीश्वर गणपति सच्चिदानंद के विश्वभर के पचास से अधिक देशों में फैले हुए भक्तों ने पहली बार भारत आकर कुरुक्षेत्र की पवित्र और दिव्य धरा पर श्रीमद् भगवद् गीता के श्लोकों का पाठ किया है। स्वामी जी का जन्म साल 1942 में दक्षिण भारत में हुआ था। स्वामी जी ने दत्तात्रेय संप्रदाय में दीक्षा लेकर सालों तक तपस्या की और अवधूत की स्थिति को प्राप्त हुए। अवधूत बनने के बाद स्वामी जी ने मैसूर कर्नाटक में अपने आश्रम की स्थापना की।

Advertisement

Advertisement
Advertisement