दरकते रिश्तों की टीस
प्रगति गुप्ता
भूमंडलीकरण और बाजारवाद ने जिन विषमताओं को जन्म दिया है, आए दिन परिवार और समाज में ऐसी घटनाएं देखने को मिल जाती हैं, जो एक लेखक मन को उद्वेलित कर लिखने को मजबूर कर देती हैं। ऐसे में एक लेखक से भी उम्मीद की जाती है कि वह समाज के विभिन्न पक्षों के असल चित्रों को अपने सृजन के माध्यम से उकेरे।
अनंत शर्मा ‘अनंत’ जी के 15 कहानियों के संग्रह ‘घर-घर की कहानी’ में समसामयिक विषयों को चुनकर उनका कहानीकरण किया गया है। शीर्षक कहानी हो या आक्रोश कहानी, वह धन की वजह से आपसी रिश्तों में उपजे ईर्ष्या और द्वेष चित्रित करती है, जिनकी वजह से रिश्ते बिगड़ जाते हैं। वहीं दूसरी ओर ‘मां की खुशबू’, ‘समय बहता ही रहता है’, आपसी रिश्तों की कीमत से जुड़ी कहानियां हैं।
कहानियां मकड़जाल, दिल-दिमाग और रमेशनगर, आत्मा की आवाज, जूता, कुचला हुआ आदमी विभिन्न समस्याओं जैसे ईमानदार व्यक्ति की पीड़ा, किराएदारों द्वारा मालिक की प्रताड़ना, कोचिंग के नाम पर शोषण, राजनीति, उथली व्यवस्था के प्रति आक्रोश, विभिन्न महकमों के भ्रष्टाचार, पुलिस तंत्र की कारगुजारी और नौकरशाही का चित्रण है।
एक अर्दली की आत्मकथा, कामरेड और जूता जैसी कहानियों में व्यंग्य देखे जा सकते हैं। एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो कहानी की नायिका एक शक्ति के रूप में गुंडों के दुस्साहस को तोड़ती है। कहानियों में गुम होते भावों और संवेदनाओं के प्रति चिंता है। कहानियों की भाषा सरल और सहज है। सभी कहानियों का सार इन पंक्तियों में कहा जा सकता है—‘मैं आत्मा हूं आप सभी आत्मा हैं। शरीर छोटा बड़ा हो सकता है, परंतु आत्मा एक है, आत्मा का स्वभाव शांत-चित्त है, नफरत तो शांत चित्त में है ही नहीं।’
पुस्तक : घर-घर की कहानी लेखक : अनंत शर्मा 'अनंत' प्रकाशक : आधारशिला पब्लिशिंग हाउस, चंडीगढ़ पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 300.