जीवन की कसक और गहन अनुभूतियां
सुरेखा शर्मा
कवयित्री कुसुम यादव के काव्य संग्रह ‘क्या लिखूं क्या रहने दूं’ में छोटी-बड़ी 112 कविताओं ने स्थान लिया है। कवयित्री ने कोरोना काल में अपने अनुभवों से सृजित अनुभूतियों को सरल व सहज शब्दों में कविताओं की एक माला में पिरोकर पाठकों के समक्ष रखा है। काव्य संग्रह विविध विषयों को समेटे हुए है। अपने शीर्षक ‘खिलौना’ को सार्थक करती हुई रचना की एक बानगी देखिए :-
जोड़े थे पत्ते दौलत के, चली हवा तो झोंका ले गया
भरे ज़ख्म ऐसा ज़ख्म , मुझे इक मौका दे गया।
कभी समय के चक्र में फंसे जीवन की अभिव्यक्ति है तो कहीं संकल्प के साथ नये जीवन का उद्घोष। कहीं मन के उद्गार प्रकट किए हैं तो कहीं शिव स्तुति।
संग्रह की पहली कविता ‘हौसलों में जान रख’ प्रेरक होने के साथ-साथ कवयित्री की सकारात्मक सोच का परिचय देती हैं, बानगी देखिए :-
‘हौसलों में जान रख/ ऐसे अपना मान रख। डर स्वयं से दूर रखने/ हिम्मत अपने पास रख।’
मां की सीख जीवन की अमूल्य धरोहर होती है। उसी के आधार पर हम जीवन की सभी विषमताओं पर जीत हासिल कर लेते हैं। ‘मां’ कविता में तभी तो कवयित्री लिखती हैं :-
मां, एक अनोखा एहसास/ जिसे बयां नहीं कर सकती हूं।
मां एक वृहद् प्रस्ताव ऐसा/ जिसका उपसंहार नहीं लिख सकती हूं।’
कहीं-कहीं कविताओं में असहजता व हताशा के साथ-साथ निराशा भी व्यक्त है, लेकिन कवयित्री ने निराशा में भी आशा को खोज निकाला है, कविता ‘मेरे भारत तुम किस दौर से गुजर रहे हो’ की पंक्तियां देखिए :-
‘मैं न थी कभी भी कम और न आगे रहूंगी मैं। बहुत सह लिया मैंने/ अब और न सहूंगी मैं। सीता, सावित्री, पद्मिनी /मैं तो मीराबाई हूं। उर्मिला, अहिल्या, जीजाबाई/ मैं तो लक्ष्मीबाई हूं।’
मधुर स्मृतियां सुखद एहसास देती हैं। ‘तुम जो आए जीवन में’, ‘खेल किस्मत का’, ‘आज मैं नाचूंगी’, ‘मेरे दादा जी की यादें’, ‘मेरा गांव’, ‘रिश्तों की तुरपाई’ जैसे शीर्षक से प्रतीकात्मक कविताएं कवयित्री के सूक्ष्म सौन्दर्य बोध का परिचय देती हैं। ‘ऋतुराज बसंत’, ‘मैं नदी हूं’, ‘यही तो बसंत है’ व ‘आया बसंत’ में प्रकृति का अति सुन्दर चित्रण है तो कविता ‘कुहासा’ में मन की उदासीनता ने प्रकृति पर उदासी का आवरण डाल दिया है :-
कहीं कुहासा अंधियारों से, कहीं कुहासा हत्यारों से, कहीं छाई है घनी उदासी, लगती है धरती प्यासी-प्यासी।’
प्रकृति प्रेम के साथ-साथ कवयित्री का अध्यात्म की ओर भी झुकाव स्पष्ट दिखाई देता है।
एक ओर पाठक को बांधती हैं तो दूसरी ओर कुछ कविताएं प्रश्न भी उठाती हैं। कविताओं में नारी मन की कोमलता, परिवेश की सच्चाई, प्रतीक्षा की पीड़ा, उपेक्षा का दंश और व्यवस्था के प्रति आक्रोश है। सभी कविताएं गहन अध्ययन, मनन तथा अनुभूतियों की देन हैं।