फूड डिलिवरी के कारोबार की रफ्तार
शैलेंद्र सिंह
एक ऐसे देश के बारे में कल्पना करिये जहां बड़ी संख्या में लोग कुछ दशक पहले तक शुचिता आदि के चलते बाहर का खाना नहीं खाते थे। आज उसी देश के छोटे-बड़े सभी शहरों में दिन-रात डिलिवरी ब्वॉय दौड़ रहे हैं। हैरानीजनक है कि साल 2024 में ऑनलाइन फूड डिलिवरी का बाजार 43.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने वाला है। सीएजीआर की रिपोर्ट बताती है कि साल 2029 तक भारत में ऑनलाइन फूड डिलिवरी का यह बाजार सालाना 15.98 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ता हुआ 91.88 बिलियन डॉलर हो जायेगा।
मोबाइल आने के बाद बड़ी सफलता
आज इस फूड डिलिवरी क्रांति के चलते देश में 28 लाख युवाओं को डिलिवरी ब्वाय की नौकरी मिली हुई है और अप्रत्यक्ष तौर पर करीब 5 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी इस कारोबार पर टिकी है। भारत में फूड डिलिवरी किसी भी दूसरे पेशे के मुकाबले चमत्कारिक सफलता के रूप में सामने आयी है। साल 2000 तक, जब तक देश में मोबाइल फोन आम नहीं हुआ था, तब तक देश में फूड डिलिवरी का कारोबार बहुत मामूली सा था। इसकी कई वजहें थीं। रेस्तरां उन दिनों घर बैठे फूड डिलिवरी नहीं करते थे और जो थोड़े-बहुत करते थे, उनकी भी डिलिवरी का टाइम इतना आकर्षक नहीं होता था तुरंत खाने की डिलिवरी हो जाये। आमतौर पर साल 1990 से 2000 के बीच भारत में फूड डिलिवरी का औसत समय पौना घंटा था। जो आज घटकर औसतन 20-25 मिनट है।
लॉकडाउन, वर्क फ्रॉम होम का योगदान
मोबाइल फोन के आम होने के बाद बड़े शहरों में अकेले रह रहे युवाओं की खानपान की चिंता खत्म हो चुकी है। यह इसी क्रांति से संभव हुआ है। अब तो घर में रहने वाले कामकाजी युवक भी औसतन महीने में 6 से 8 बार रेस्तरां से खाना मंगाकर खाते हैं। युवा पीढ़ी में फोन करके खाना ऑर्डर करना लाइफस्टाइल का हिस्सा है। लेकिन ये सब सुविधाएं एक दशक पहले तक नहीं थी। साल 2010 के दशक में शहरों के रेस्तराओं का सूचीकरण प्लेटफार्म लांच किया गया और सही मायनों में इसके बाद ही फूड डिलिवरी में तेज रफ्तार से वृद्धि हुई और इस रफ्तार में सोने पर सुहागा साबित हुआ, लॉकडाउन प्रतिबंध। जब देश में करीब दो करोड़ युवा ‘वर्क फ्रॉम होम’ मोड में काम करने लगे और औसतन दिन में दो बार बाहर से खाना मंगाकर खाने लगे। उस दौरान ऑनलाइन फूड डिलिवरी कारोबार में 200-300 फीसदी की छलांग लगी।
शहरीकरण, इंटरनेट से मिला बढ़ावा
दरअसल देश में मोबाइल के लाइफस्टाइल का हिस्सा बनने के बाद अर्थव्यवस्था में खासकर परचेजिंग गतिविधियों में जबरदस्त उछाल आया है। वहीं देश में 2010 के बाद हुए तेजी से शहरीकरण और इंटरनेट कनेक्टिविटी ने भी फूड डिलिवरी के कारोबार को पंख दे दिए हैं। स्विगी और जोमेटो के काम में बढ़ोतरी तो बाद में तब हुई जब युवा नौकरीपेशा मोबाइल में रेस्तराओं का मैन्यू खोजने लगे और घर बैठे मनपसंद डिश मंगाने लगे।
कारोबार का मेगा आकार
इंटरनेट, सैकड़ों एप और यंग डिलिवरी ब्वॉय ने इस कारोबार में चार चांद लगा दिए। आज भारत के पके खाने के कारोबार में दुनिया की हर कंपनी आने के लिए लालायित है। क्योंकि जितनी तेजी से भारत में यह कारोबार बढ़ा, उतना हाल के सालों में किसी और देश में नहीं बढ़ा। शहरों में रहने वाला हर उपभोक्ता औसतन 183 डॉलर का किराना बाजार को कारोबार दे रहा है। करीब 35 करोड़ उपभोक्ताओं तक भारत का फूड बाजार फैल चुका है और इसमें 18 फीसदी की दर से बढ़ रहा है।
- इ.रि.सें.