पौधे बचाने की दिशा में लगातार आगे बढ़ रही संस्था
करनाल, 2 जुलाई (हप्र)
पर्यावरण बचाने की दिशा में अनेक संस्थाओं सहित समाजसेवी जुटे हुए हैं। हर साल पौधरोपण कर फोटो खिंचवाई जाती हैं। पूरे तामझाम के साथ लोहे, कंक्रीट के ट्री-गार्ड में पौधे रोपित किए जाते है, लेकिन खाद, पानी व देखभाल के अभाव में पौधे कुछ दिन बाद दम तोड़ देते हैं। इससे पर्यावरण बचाने में किए जाने वाला योगदान महज दिखावटी बनकर रह जाता हैं। हालांकि कई संस्थाएं व पर्यावरणविद आबोहवा को शुद्ध बनाये रखने के लिए गंभीरता से काम कर रही है। उनमें से एक संस्था सत्या फाउंडेशन हैं। संस्था सदस्य मानसून शुरू होने से पहले उन जगहों को चिन्हित करते हैं, जहां पर पहले पौधे लगाएं गए थे और वे सूख चुके हैं। इन जगहों को संस्था सदस्य एक बार फिर तैयार करते है, वहां पर पौधे रोपित करते हैं। पौधे रोपित करने के बाद आसपास के लोगों को पानी देने के लिए जागरूक किया जाता हैं। संस्था के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। संस्था ने गड्ढे खोदने के लिए एक ड्रिलिंग मशीन भी खरीदी हैं, जिससे गड्ढे खोदने में आसानी हो।
संस्था प्रधान संदीप नैन ने बताया कि पर्यावरण बचाने के लिए कम लोग ही काम कर रहे हैं, इनमें भी कुछ ऐसे हैं। जो केवल फोटो सेशन तक सीमित रहते हैं। हमारी संस्था उन जगहों पर पौधरोपण करती हैं, जहां पर पहले पौधरोपण किया गया था और लगाए गए पौधे देखभाल के अभाव में सूख गए। हम वहां पर पौधे लगाते हैं, क्योंकि वहां पर पहले से ही लोहे व कंक्रीट के ट्री-गार्ड होते हैं। हम जो भी पौधरोपण करते हैं, उसका टारगेट निर्धारित होता हैं। जैसे हम इस बार एक हजार पौधे ही रोपित करेंगे, इनमें से देखभाल के बाद भी करीब 600 से 700 पौधे ही पनप पाएंगे। हम बचे हुए पौधों की पेड़ बनने तक देखभाल करते रहेंगे। साल दर साल हम ऐसे ही आगे बढ़ते रहेंगे। उन्होंने कहा कि हम सभी से अपील करते हैं कि कम पौधरोपण करे, लेकिन जितने भी पौधे लगाएं उनकी अच्छे से देखभाल करें ताकि रोपित पौधे पेड़ बन सकें। जिससे सही मायनों में पौधरोपण जनहितकारी साबित हो सके।
हर साल लगते हैं लाखों पौधे
करनाल जिला में हर साल 8 से 10 लाख पौधे रोपित और बांटे जाते हैं। धरातल पर देखें तो स्थितियां पहले जैसी ही बनी रहती हैं। पांच सालों में करीब 40 से 50 लाख पौधे रोपित किए जा चुके हैं, लेकिन स्थितियों में कोई सुधार नजर नहीं आता।
कोरोना काल में आक्सीजन का संकट, लिया संकल्प, फिर भूले
पर्यावरणविदों ने बताया कि कोरोना काल के दौरान आक्सीजन के विकट संकट ने एक बार सभी को पौधरोपण के प्रति प्रेरित किया था, संकल्प लिए गए। भयानक मानवीय संकट के बाद आबोहवा काफी साफ हुई थी। उद्योग-धंधे, वाहनों का जहरीला धुंआ, खनन सहित निर्माण कार्य आदि बंद होने से वातावरण काफी स्वस्थ हुआ था। लेकिन समय बीतने के बाद एक बार फिर सब पहले जैसा हो गया। आबोहवा फिर जहरीली हुई है।