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उम्मीदों के उफान में आंकड़ों का फरमान

07:53 AM Jul 28, 2024 IST
उम्मीदों के उफान में आंकड़ों का फरमान
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देश के हालिया बजट में वित्तीय प्रावधानों के जरिये अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख मुद्दों को संबोधित करके संतुलन साधने की कवायद नजर आयी है। आंकड़ों में नजर आये घटक- तेज विकास दर, राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण, कुल मुद्रास्फीति कम होना-बेहतर आर्थिकी के संकेत हैं। स्किल व रोजगार, उद्योग-कारोबार, कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहन जैसे प्रावधान हैं। लेकिन आम आदमी की बजट से उम्मीदें उपभोक्ता के रूप में बजटीय आर्थिक शब्दावली से जरा अलग होती हैं। वे भले अर्थव्यवस्था के विशाल ताने-बाने के मुकाबले तुच्छ-सी लगें लेकिन अधिकतर लोगों के रोजमर्रा के जीवन को आसान बनाने से जुड़ी होती हैं। दरअसल, मध्यवर्गीय व्यक्ति का सरोकार रसोई के खर्च, बच्चों की फीस, सस्ते ईंधन और मकानों की कीमतों में कमी से होता है। बजट का इंतजार उसे होता है कि वह खुदरा कीमतों और खाद्य वस्तुओं की महंगाई में कमी लायेगा या फिर वेतन से प्राप्त आय पर टैक्स में राहत मिलेगी।

आलोक पुराणिक
लेखक आर्थिक पत्रकार हैं।

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केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024-25 का बजट चार वर्गों पर विशेष केंद्रित रखा-’गरीब’, ‘महिलाएं’, ‘युवा’ और ‘अन्नदाता’। मध्यवर्ग इन चारों में दर्ज नहीं था। वित्तमंत्री ने यह बजट बहुत ही चुनौतीपूर्ण हालात में बनाया है। ग्लोबल हालात बहुत संवेदनशील हैं। लगभग ‘आग’ लगी हुई है दुनिया के दो हिस्सों में। रूस-यूक्रेन युद्ध ने सर्वग्रासी लहर का रूप लिया हुआ है। उधर पश्चिम एशिया की ‘आग’ थमने का नाम नहीं ले रही है। हाल के आर्थिक सर्वेक्षण ने साफ किया कि अगर पेट्रोल-डीजल और खाद्य आइटमों की महंगाई को हटा कर आंकड़े देखें, तो वित्तीय वर्ष 2023-24 में महंगाई चार साल के न्यूनतम स्तर पर रही है। बजट के दस्तावेजों में दर्ज है कि भारत की महंगाई कम, स्थिर बनी हुई है और 4 प्रतिशत के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है। वित्त मंत्री ने बताया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था नीतिगत अनिश्चितताओं की गिरफ्त में होने के बावजूद, भारत की आर्थिक वृद्धि एक शानदार अपवाद बनी हुई है और आने वाले वर्षों में भी ऐसा ही रहेगा। वित्त मंत्री ने बताया कि मुख्य मुद्रास्फीति (गैर-खाद्य, गैर-ईंधन) वर्तमान में 3.1 प्रतिशत है। खाने-पीने की चीजों की महंगाई लगातार चिंता का विषय बनी हुई है। ऐसी सूरत में मध्यवर्ग की जेब में कुछ रकम कर कटौती के तौर पर आ जाती, तो बेहतर होता। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं।
वित्तीय अनुशासन का पॉजिटिव असर
इस बजट से साफ होता है कि केंद्र सरकार वित्तीय अनुशासन का कड़ाई से पालन कर रही है। साल 2022-23 में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 6.4 प्रतिशत था, इसके अगले साल यानी 2023-24 में सरकार ने इसे घटाकर 5.9 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा। हालिया आंकड़ों के हिसाब से लक्ष्य से बेहतर उपलब्धि हासिल की गयी है यानी राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5.6 प्रतिशत ही रहा। इसके अगले साल 2024-25 में इसे और गिराकर 4.9 प्रतिशत पर लाया जायेगा। इससे साफ होता है कि सरकार वित्तीय अनुशासन का ध्यान रख रही है। कोविड के बाद अर्थव्यवस्था के जो हालात थे, उन्हें देखते हुए वित्तीय अनुशासन को बनाये रखना बहुत मुश्किल काम था। पर ऐसा संभव हुआ है। वित्तीय अनुशासन रहता है और राजकोषीय घाटे पर अंकुश रहता है, तो दुनिया भर से विदेशी निवेशकों के सामने सही संदेश जाता है। क्योंकि अनियंत्रित राजकोषीय घाटा आखिर में विकट महंगाई की शक्ल में ही सामने आता है। इस स्थिति को कोई भी विदेशी निवेशक पसंद नहीं करता, कोई भी घरेलू उद्योगपति पसंद नहीं करता। आम आदमी के लिए महंगाई विकट संकट का कारण होती ही है। राजकोषीय घाटे पर अंकुश बहुत ही महत्वपूर्ण है।


रोजगार सृजन से जुड़े विकास के लक्ष्य
केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण का आरंभिक हिस्सा रोजगार से जुड़ी योजनाओं पर केंद्रित किया। बजट भाषण में केंद्रीय वित्तमंत्री ने कहा कि 5 वर्षों में 4.1 करोड़ युवाओं को रोजगार, कौशल और अन्य अवसर प्रदान किये जायेंगे। इस सबके लिए 2 लाख करोड़ रुपये का पैकेज दिया जायेगा। दरअसल विकसित भारत के लक्ष्य का सीधा ताल्लुक करीब चार करोड़ रोजगार अवसरों से है। पांच साल में अगर चार करोड़ रोजगार अवसर पैदा हो जाते हैं, तो अर्थव्यस्था में क्रय शक्ति में बढ़ोतरी होगी। क्रय शक्ति में बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था में तमाम वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ेगी। इसलिए रोजगार निर्माण सिर्फ रोजगार का मसला नहीं है, समग्र अर्थव्यवस्था का विकास उससे जुड़ा हुआ है। विकसित भारत का लक्ष्य इन रोजगार अवसरों से जुड़ा हुआ है। इन सब योजनाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी की जरूरत रहेगी, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि ये सारी योजनाएं जमीन पर उतरकर परिणाम देंगी। नौकरी-रोजगार का सवाल बहुत बड़ा सवाल है। हाल के लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ दल के चुनाव परिणामों पर कहीं न कहीं इस सवाल की छाया रही है। नौजवानों ने नौकरी -रोजगार के अवसरों की अनुपलब्धता पर नाराजगी जतायी है। इसलिए केंद्र सरकार को यह समझ आ रहा है कि इस मुद्दे पर तेज गति से, प्राथमिकता से ध्यान देना जरूरी है।

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टैक्स दर संरचना में बदलाव
आम तौर पर बजट आने पर पर चिंता हो उठती है कि आयकर के मामले में क्या असर पड़ेगा जेब पर। इस संबंध में कर प्रस्तावों पर नजर डालनी जरूरी है। वित्त मंत्री ने वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन यानी मानक कटौती को 50,000 रुपये से बढ़ाकर 75,000 रुपये करने का प्रस्ताव किया। नई कर व्यवस्था में टैक्स दर संरचना को संशोधित करने का प्रस्ताव दिया। इन संशोधनों के परिणामस्वरूप, नई कर व्यवस्था के तहत एक वेतनभोगी कर्मचारी को आयकर में 17,500 रुपये तक बचत होगी। मध्यवर्ग के लिए यह राहत ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं।
जीएसटी की सराहना, ‘एंजेल टैक्स’ से राहत
केन्द्री य वित्ते मंत्री ने ‘केन्द्री य बजट 2024-25 पेश करते हुए जीएसटी को कामयाब घोषित किया। आम तौर पर विपक्षी नेता जीएसटी की आलोचना करते हैं। पर जीएसटी संग्रह के आंकड़ों ने साफ किया है कि सरकार के पास भरपूर राजस्व इस मद में आ रहा है। वित्तमंत्री ने कहा कि जीएसटी ने आम लोगों पर कर का बोझ कम किया है और व्यापार की लागत को कम किया है। वित्त मंत्री ने संसद में केन्द्री य बजट 2024-25 पेश करते हुए निवेशकों के सभी वर्गों के लिए ‘एंजेल टैक्स’ को समाप्त करने का प्रस्ताव किया। उन्होंने कहा कि इस कदम का लक्ष्य भारतीय स्टार्ट-अप इको-सिस्टम को सशक्त बनाना, उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा देना और नवाचार का समर्थन करना है। एंजेल टैक्स उन कारोबारियों पर लगनेवाला कर था, जो किसी स्टार्ट अप में जोखिम लेकर पूंजी लगाते थे। ऐसे लोगों को कारोबारी जबान में फरिश्ता यानी एंजेल कहा जाता था जो जोखिम लेकर भी रकम लगाने को तैयार होते थे। उन्हें कर से मुक्त करके जोखिम लेने के लिए माहौल ज्यादा अनुकूल बनाया गया है। इस कदम के बाद लोग नये स्टार्ट अप के लिए पूंजी आसानी से देने को तैयार होंगे।


स्टार्ट अप का रुख दक्षिण को!
स्टार्ट अप व्यवस्था से खास तौर पर दक्षिण भारत के राज्यों को बहुत फायदा हुआ है। देर-सबेर इस विषय़ पर चिंतन करना ही होगा कि आखिर क्यों उत्तर भारत स्टार्ट अप के मामले में बहुत विकसित नहीं है। तमाम नये स्टार्ट दक्षिण भारत, औऱ खास तौर पर बंगलूरु जा रहे हैं। चंडीगढ़, लखनऊ व पटना में स्टार्टअप का वैसा माहौल क्यों नहीं है, जैसा बंगलूरु में है। पूरे देश की अर्थव्यवस्था प्रगति करती हुई दिख रही है, पर सच्चाई यह है कि उत्तर भारत औऱ दक्षिण भारत की अर्थव्यवस्था के चेहरे में बहुत फर्क है। दक्षिण के राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं में तमाम नयी परियोजनाओं की चमक है। उत्तर भारत के राज्य उनके मुकाबले कहीं नहीं खड़े हुए हैं।


प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन
बजट की घोषणा के मुताबिक किसानों द्वारा खेती के लिए 32 कृषि एवं बागवानी फसलों की 109 नई उच्च उपज देने वाली एवं जलवायु-प्रतिरोधी किस्में जारी की जाएंगी। अगले दो वर्षों में देश भर में 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती से परिचित कराया जाएगा। इस वर्ष कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र के लिए 1.52 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान घोषित किया गया। खेती को लेकर इन प्रयासों के परिणाम आने में समय लग सकता है। पर इन उपायों को लगातार उठाया जाना महत्वपूर्ण है। इस वर्ष ग्रामीण बुनियादी ढांचे सहित ग्रामीण विकास के लिए 2.66 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। विकास महानगरों से निकल कर गांव तक पहुंचेगा, तो ही विकसित भारत का लक्ष्य सही अर्थों में हासिल किया जा सकेगा।
पूर्वोदय योजना के लिए प्रावधान
सरकार बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और आंध्र प्रदेश को कवर करते हुए पूर्वी क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए पूर्वोदय योजना तैयार करेगी। बिहार को इस बजट से खास तौर पर 58,900 करोड़ रुपये दिये गये हैं। इनमें 26,000 करोड़ रुपये तो सड़क परियोजनाओं की मद में जायेंगे, 21,400 करोड़ रुपये विद्युत संयंत्र के लिए जायेंगे और 11500 करोड़ रुपये बाढ़ नियंत्रण के लिए जायेंगे। बिहार को इस रकम के मिलने पर केंद्र सरकार की आलोचना यह कह कर की जा रही है कि मित्र मुख्यमंत्री को मदद दी गयी है। बिहार में अगर सड़क या बिजली परियोजना पर काम होता है। इस देश का सीमेंट,सरिया खरीदा जायेगा और इस देश के कामगारों को ही रोजगार मिलेगा। आंध्र प्रदेश को नयी राजधानी अमरावती के लिए 15000 करोड़ रुपये का प्रावधान भी इसी तरह की आलोचना का शिकार हुआ है।
सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स को बढ़ावा
हाल में पेश आर्थिक सर्वेक्षण ने छोटे निवेशकों की जुआखोर प्रवृत्ति पर चिंता जतायी थी। जुआखोर प्रवृत्ति से आशय यह था कि कई छोटे निवेशक शेयर बाजार में दीर्घकाल के लिए निवेश करने के बजाय ऐसे सौदों में निवेश कर रहे हैं, जिसमें उन्हें दो के चार बनाने की जल्दी होती है। ऐसे में पूरी रकम डूबने की आशंका भी हो जाती है। इस तरह के कारोबार को शेयर बाजार में डेरिवेटिव ट्रेडिंग कहा जाता है। इस तरह की जुआखोर प्रवृत्ति पर आर्थिक सर्वेक्षण ने चिंता जतायी थी। बजट ने इस पर अपनी तरह से काम किया है। यही वजह है कि वित्त मंत्री ने इस पर टैक्स बढ़ाने का ऐलान किया है। वित्त मंत्री ने पेश केंद्रीय बजट में फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस ट्रेड पर सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स रेट बढ़ाने का ऐलान किया। इसका मकसद छोटे निवेशक को शेयर मार्केट के जोखिम भरे हिस्से में ट्रेडिंग से हतोत्साहित करना है। पहले ऑप्शन प्रीमियम की बिक्री पर 0.06 फीसदी सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स लगता था। लेकिन, इसे बजट में बढ़ाकर 0.1 फीसदी करने का प्रस्ताव है। वहीं, सिक्योरिटीज में फ्यूचर्स की बिक्री पर यह टैक्स पहले 0.01 फीसदी था, जिसे बढ़ाकर 0.02 फीसदी किया जाएगा। शेयर बाजार में दीर्घकालीन निवेशकों को इससे कोई दिक्कत नहीं है। इससे सट्टेबाज परेशान होंगे। यह उद्देश्य है इस कर का कि सट्टेबाजी कम हो, जुएबाजी कम हो। सट्टेबाजी का क्रेज नौजवानों में बहुत बढ़ा है। एक दिन में रकम दोगुनी करने का लालच नौजवानों में बहुत बढ़ा है। एक ही दिन में रकम दोगुनी करने की इच्छा निवेश नहीं है। यह एक तरह के जुआ है। इस तरह के जुए पर लगाम लगाया जाना जरूरी था।


शेयर बाजार की प्रवृत्तियां
भारतीय शेयर बाजार में लगातार तेजी पिछले 3-4 सालों से लगातार बड़ी तेजी देखने को मिल रही है। पहले फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग पर शेयर बाजार नियामक संस्था सेबी ने अपनी रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि 10 में से 9 फ्यूचर एंड ट्रेंडिग ट्रेडर भारी नुकसान उठाते हैं। आसान शब्दों में कह सकते हैं कि फ्यूचर एंड आप्शन ट्रेडिंग का आशय ऐसे शेयर कारोबार से होता है, जिसमें रफ्तार के साथ बहुत कम अवधि में मुनाफा कमाने की इच्छा छिपी होती है। हाल में सेबी ने एक और रिपोर्ट जारी की है। सेबी की इस स्टडी से पता चला है कि शेयर बाजार में 10 में से सात इंट्राडे कारोबारियों को वित्त वर्ष 2022-23 में घाटा उठाना पड़ा। दरअसल शेयर बाजार में शेयर की खरीद और बिक्री एक ही कारोबारी दिन में पूरी करने को ‘इंट्राडे’ ट्रेडिंग कहा जाता है. इसमें रोजाना शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं। यानी एक ही दिन में शेयर खऱीदकर बेचकर कमानेवाले भी अधिकांश निवेशक घाटे में हैं। इस तरह के निवेशकों को हतोत्साहित करने वाले कदम बजट में उठाये गये हैं। ये कदम स्वागत योग्य हैं। खैर, बजट के बाद नौकरीपेशा वेतनभोगी निराश ही दिखा है। नौकरीपेशा वेतनभोगी को बजट से ज्यादा उम्मीदें थीं, उसकी सारी उम्मीदें पूरी ना हुईं। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य के बजट में नौकरीपेशा मध्यवर्ग की उम्मीदें पूरी होंगी।

पड़ोसी देशों को भी मदद

भारत के बजट से तो तमाम पड़ोसियों को भी बड़ी रकम दिये जाने का प्रावधान है। भूटान को इस बजट से करीब 2069 करोड़ रुपये दिये जाने का प्रावधान है। अफगानिस्तान को 200 करोड़ रुपये दिये जायेंगे। बंगलादेश को 120 करोड़ रुपये दिये जायेंगे। नेपाल को 700 करोड़ रुपये दिये जाने हैं। श्रीलंका को 245 करोड़ रुपये दिये जाने हैं। मालदीव के साथ विकट चख-चख के बाद भी मालदीव को भी 400 करोड़ रुपये दिये जाने हैं। म्यांमार को 250 करोड़ रुपये दिये जाने हैं, इस साल के बजट से। गौरतलब है किसी ने भी मालदीव को सहायता दिये जाने की आलोचना नहीं की, पर आंध्र और बिहार को कुछ रकम दिये जाने की आलोचना की जा रही है। इस बजट से यह साफ होता है कि भारत एशिया में महाशक्ति के तौर पर खुद को रेखांकित कर रहा है। यानी एशिया में सिर्फ चीन ही नहीं है ताकतवर, भारत भी है। भारत ना सिर्फ ताकतवर बल्कि वह तमाम देशों को मदद करना चाहता है, बिना उन पर कब्जा किये हुए। गौरतलब यह है कि चीन तमाम देशों को और छोटे देशों को खासकर कर्ज देकर कर्ज जाल में फंसाता है। भारत कर्ज नहीं देता, भारत सहायता देता है, जिसमें फंसने-फंसाने का सवाल नहीं उठता। चीन के कर्ज जाल से अब तमाम देश परेशान हो रहे हैं और वो अब भारत की तरफ देख रहे हैं। श्रीलंका कुछ समय पहले विदेशी मुद्रा संकट में फंसा था, तब भी भारत ही आगे आया था मदद के लिए। श्रीलंका ने इस बात के लिए भारत का आभार माना था। मदद तो भारत ने मालदीव की भी बहुत की है, पर मालदीव में आभार मानने का संस्कार नहीं है। पर मालदीव के कर्म मालदीव के साथ हैं। भारत ने अपनी तरफ से मदद करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। नेपाल से समय समय पर भारत विरोधी स्वर उभरते रहते हैं, फिर भी भारत ने नेपाल को इस बजट से भी सहायता दी है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों का भी ध्यान

मुद्रा ऋण की सीमा वर्तमान 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दी जाएगी। मुद्रा कर्ज छोटे कारोबारियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होते हैं। 20 लाख रुपये तक मुद्रा कर्ज से कारोबारी सहूलियत हासिल हो जायेगी। आम तौर पर आर्थिक अखबारों में, टीवी चैनलों पर शेयर बाजार की व बड़ी-बड़ी कंपनियों की चर्चा होती है। पर इस देश की रीढ़ के तौर पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को चिन्हित किया जा सकता है तो कई तरह के रोजगार अवसर पैदा करते हैं। हाल में आये आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वित्त वर्ष 2022 में संपूर्ण भारत की मैन्युफेक्चरिंग यानी विनिर्माण में इन छोटे उद्यमों का योगदान 35.4 प्रतिशत था। साल 2023-24 में कुल निर्यात में इन छोटे उद्यमों के उत्पादों की भागीदारी 45.7 प्रतिशत थी। शेयर बाजार सूचकांक चाहे जितना चमके, पर जमीन पर बहुत छोटे स्तर के कारोबारों से ही हजारों-लाखों को रोजगार मिलता है। खबरें ये हैं कि मुद्रा कर्ज में डूबते कर्जों की की तादाद ज्यादा है। देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक आफ इंडिया के आंकड़े बताते हैं कि मुद्रा कर्ज बड़ी मात्रा में डूब रहे हैं। स्टेट बैंक के मुद्रा कर्ज का करीब 23.70 प्रतिशत हिस्सा नॉन परफार्मिंग एसेट यानी एक तरह से डूबने वाले कर्ज में तब्दील हो चुका था, 21-22 में। मुद्रा कर्जों का बढ़ना अच्छी बात है, पर उनमें डूबते कर्जों की तादाद बढ़ने से सरकारी बैंकों के सामने चुनौतियां पेश होंगी।

पूर्वोत्तर में बैंकिंग सविधाएं

एक महत्वपूर्ण घोषणा में कहा गया कि देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक करीब 100 से अधिक शाखाएं स्थापित की जायेंगी। पूर्वोत्तर राज्यों में आम तौर पर बैंक जाने में हिचकिचाते हैं। पर इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक सरकार का ही बैंक है, इसलिए इसके वहां जाने में दिक्कत नहीं है। इससे वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया मजबूत होगी। देश की मुख्यधारा में आने में पूर्वोत्तर राज्यों को आसानी होगी।

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