सचमुच हारा वही जो लड़ा नहीं
निर्मला मिश्रा
छोटे पर्दे से निकल कर अभिनेता विक्रांत मैसी ने हिंदी फिल्मों में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। विक्रांत मैसी की फिल्म ‘12वीं फेल’ हाल ही में रिलीज हुई है। निर्माता-निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा की इस फिल्म में विक्रांत मैसी ने चंबल से निकल कर आईपीएस अधिकारी बने मनोज कुमार शर्मा की भूमिका निभाई है। हाल ही में विक्रांत मैसी ने इस फिल्म को लेकर खास बातचीत हुई।
फिल्म के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
यह फिल्म उन लाखों छात्रों के संघर्ष की सच्ची कहानी पर आधारित है, जो यूपीएससी प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं। फिल्म बताती है कि जिंदगी परीक्षा से कहीं ज्यादा है। वहीं इस फिल्म की कहानी असफलताओं के सामने हिम्मत न हारने और रीस्टार्ट करने के लिए प्रेरित करती है। इस फिल्म में मैंने आईपीएस अधिकारी मनोज की भूमिका निभाई है, जो चंबल से निकलकर यहां तक पहुंचे हैं। जीवन का यह सच है कि डिग्री नहीं, ज्ञान जरूरी है।
‘डिग्री नहीं, ज्ञान जरूरी है’ जैसा ही विषय विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘3 इडियट’ का भी था, जिसका निर्देशन राजकुमार हिरानी ने किया था?
बिल्कुल, दोनों फिल्मों का संदेश एक जैसा है, लेकिन कहानी कहने का तरीका दोनों फिल्मों में काफी अलग है। ये फिल्म बहुत कुछ कहेगी। हारा वही, जो लड़ा नहीं। फिल्म के जरिये बताने की कोशिश की गई है कि निराश न हों, ईमानदारी से अपने रास्ते पर चलते रहें, रास्ता कहीं न कहीं तो खत्म होगा ही। चंबल दुर्दांत डकैतों के इलाके के तौर पर जाना जाता है। लेकिन उसी चंबल के एक गांव से निकलकर मनोज कुमार शर्मा आईपीएस अधिकारी बने। अगर मनोज के अंदर वह क्षमता नहीं होती, तो आज चंबल से निकलकर जहां बैठे हैं वहां नहीं बैठे होते।
इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
हमारी मुलाकात तो एक्टर और डायरेक्टर के तौर पर हुई, लेकिन जब व्यक्तिगत रूप से जुड़ा तब समझ में आया कि वह कितने अच्छे शख्स हैं। उन्होंने अपने जीवन के जो अनुभव शेयर किए, वह मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक रहे। मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे विक्रमादित्य मोटवानी, जोया अख्तर, मेघना गुलजार जैसे डायरेक्टर्स के साथ काम करने का मौका मिला।
टीवी से निकलकर आपने फिल्मों में कैरियर की शुरुआत विक्रमादित्य मोटवानी की ‘लुटेरा’ से की। कैसे अनुभव रहे?
मेरे लिए सब कुछ नया था। उन दिनों टीवी से फिल्मों में आए कलाकारों को लोग इज्जत के नजरिये से नहीं देखते थे। सुना था टीवी एक्टर को फिल्म वाले हिकारत से देखते हैं। हालांकि मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। खुद को साबित करना था कि जो काम मिला है, उसे बखूबी निभाना है।
‘लुटेरा’ में काम कैसे मिला था?
इस फिल्म के कास्टिंग डायरेक्टर अतुल मोंगिया ने मुझे ‘लुटेरा’ के ऑडिशन के लिए बुलाया था। उनको मेरा ऑडिशन बहुत पसंद आया, फिर भी मैं रिजेक्ट हो गया। वह किरदार कोई और एक्टर निभा रहा था। लेकिन शूटिंग से दो हफ्ते पहले ही उसने मना कर दिया। तब मेरे पास कॉल आयी और मैंने फिल्म की। यह भाग्य का ही खेल रहा है। दरअसल, विक्रमादित्य मोटवानी बहुत उम्दा निर्देशक हैं। उनके साथ काम करने का मौका मिला तो खूब मजा आया।
जोया अख्तर के बारे क्या कहना चाहेंगे। ‘लुटेरा’ के बाद ‘दिल धड़कने दो’ में आपको अच्छा मौका मिला?
जोया अख्तर कमाल की निर्देशक हैं। वह सिनेमा की भाषा बहुत अच्छी तरह से समझती हैं। इस फिल्म में एक बार फिर रणवीर सिंह के साथ काम करने का मौका मिला। इसके अलावा फिल्म में अनिल कपूर, प्रियंका चोपड़ा, फरहान अख्तर जैसे दिग्गज सितारों के साथ काम करके बहुत कुछ सीखने को मिला।
दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘छपाक’ अलग ही विषय पर थी, इस फिल्म से जुड़ी कुछ खास यादें?
‘छपाक’ में एक बार फिर महिला निर्देशक मेघना गुलजार के निर्देशन में काम करने का मौका मिला। वह गुणी निर्देशक हैं। वहीं दीपिका पादुकोण का शूटिंग के दौरान काम के प्रति समर्पण देखने लायक था। यह फिल्म बहुत महत्वपूर्ण विषय पर थी। हम सबकी जिम्मेदारी थी उस विषय के साथ न्याय करना।
आपने कोंकणा सेन शर्मा और सीमा पाहवा जैसी महिला निर्देशकों के साथ भी काम किया है?
कोंकणा सेन शर्मा के साथ फिल्म मैंने ‘ए डेथ इन द गंज’ में काम किया। वह जितनी बेहतरीन अभिनेत्री हैं, उतनी ही काबिल निर्देशक भी हैं। इस फिल्म को कई फिल्म समारोहों में खूब सराहा गया। सीमा पाहवा के निर्देशन में ‘राम प्रसाद की तेरहवीं’ में काम करने का मौका मिला। सीमा पाहवा को इस फिल्म में बेस्ट डेब्यू डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था। इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह जैसे दिग्गज अभिनेता के साथ काम करने का मौका मिला व एक एक्टर के तौर पर बहुत कुछ सीखने को मिला।