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सबसे पुराने बौद्ध अवशेष का है महाराजा रणजीत सिंह से संबंध

07:24 AM Feb 23, 2024 IST
सबसे पुराने बौद्ध अवशेष का है महाराजा रणजीत सिंह से संबंध
नयी दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में बृहस्पतिवार को शुरू हुई ‘ट्रेवलिंग रेलिक्स : स्प्रेडिंग द वर्ड ऑफ द बुद्धा’ नामक प्रदर्शनी का अवलोकन करते जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा एव अन्य। -मानस रंजन भुई
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अदिति टंडन / ट्रिन्यू
नयी दिल्ली, 22 फरवरी
राष्ट्रीय राजधानी में बृहस्पतिवार को शुरू हुई एक अनूठी प्रदर्शनी इतिहास के एक इस अल्पज्ञात तथ्य पर प्रकाश डालती है कि सबसे पहले खोजे गए ‘बौद्ध अवशेषों’ का संबंध सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह से था। दरअसल महाराजा रणजीत सिंह के पंजाब दरबार में कार्यरत एक फ्रांसीसी अधिकारी जीन बैप्टिस्ट वेंचुरा ने 1830 में रावलपिंडी के उत्तर-पश्चिम में मणिक्याला में सबसे शुरुआती पुरातात्विक खुदाई में से एक का नेतृत्व किया था। पारंपरिक रूप से सिकंदर के घोड़े के विश्राम स्थल के रूप में ख्यात माणिक्यला एक प्रमुख बौद्ध स्थल था, जो कि वर्तमान पाकिस्तान में जीटी रोड पर स्थित है।
यहां बौद्ध स्तूप पर, वेंचुरा ने बुद्ध की आकृति वाले कुषाण सोने के सिक्कों की खोज की और बुद्ध की छवि वाला पहला तांबे का सिक्का भी मिला था। खुदाई के बाद वेंचुरा ने फ़ारसी में एक संक्षिप्त नोट में महाराजा रणजीत सिंह को सूचित किया कि अलेक्जेंडर के घोड़े के विश्राम स्थल की खोज की गई थी, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें वास्तव में बुद्ध के अवशेष मिले थे। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में शुरू हुई ‘ट्रेवलिंग रेलिक्स : स्प्रेडिंग द वर्ड ऑफ द बुद्धा’ नामक इस प्रदर्शनी में बौद्ध प्रतीकों की दुनिया की कई दुर्लभ झलकियां प्रदर्शित की गयी हैं। प्रदर्शनी 7 मार्च तक जारी रहेगी।
इतिहासकार हिमांशु प्रभा रे के इस प्रयास का उद्घाटन करते हुए, जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने प्रदर्शनी को आईआईसी द्वारा शुक्रवार से आयोजित किए जाने वाले दो दिवसीय सम्मेलन ‘एशिया ऑन द मूव’ के लिए एक उपयुक्त अग्रदूत बताया। उन्होंने कहा, ‘सम्मेलन में हम न केवल प्रारंभिक व्यापारियों, खोजकर्ताओं और तीर्थयात्रियों के बारे में बात करेंगे, बल्कि बौद्ध अवशेषों की राजनीति पर भी चर्चा करेंगे, कि किस तरह 2300 साल पहले उनकी पूजा की गई और उन्हें स्तूपों में कैसे स्थापित किया गया, जिन्हें कभी भी देखा या छुआ न जा सके।’
जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल ने यह भी बताया कि कैसे 20वीं शताब्दी की शुरुआत में सारनाथ में अशोक स्तंभ की खुदाई की गई और धर्मचक्र को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों के रूप में स्वीकार किया गया। उन्होंने भारतीय संविधान की पहली प्रति में बौद्ध प्रतीकों को शामिल करने के बारे में कहा, ‘स्वतंत्र भारत के इन चिह्नकों को संसद भवन में रखे विशाल खंड में खूबसूरती से चित्रित किया गया है,’ जिसमें नंदलाल बोस की अद्भुत कला और चित्र शामिल हैं। प्रदर्शनी में एक विशेष चित्र भी ध्यान आकृष्ट करता है जिसमें स्वतंत्र बर्मा के पहले प्रधानमंत्री यू नु को एक जुलूस में बौद्ध अवशेष ले जाते हुए दिखाया गया है। जुलूस के साथ भारत के पहले प्रधान मंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू और उनके कैबिनेट सहयोगी और बाद में भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी हैं।

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