मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

कनाडा से उपजा है खालिस्तान का कोलाहल

09:18 AM Sep 25, 2023 IST

राजेश रामचंद्रन

Advertisement

केवल एक गैर-जिम्मेदार मुल्क ही किसी वरिष्ठ राजनयिक को दोषी करार देते हुए, देश निकाला देकर, उसे हिंसक तत्वों के हवाले करेगा जिन्होंने एक प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, पूर्व सेनाध्यक्ष, नौकरशाह, पुलिस और सेनाधिकारी, सैकड़ों राजनेता और हजारों बेगुनाह मारे हों। सबूत का एक टुकड़ा तक सार्वजनिक किए बिना पंजाब कैडर से भारतीय पुलिस सेवा के एक अधिकारी पर अंगुली उठाकर कनाडाई सरकार ने सिद्ध कर दिया है कि पश्चिमी गठबंधन का यकीन कानून के शासन में नहीं है या फिर कम-से-कम भूरे वर्ण के लोगों के लिए तो नहीं। अब उक्त अफसर और परिवार को आगामी कई सालों तक चौबीसों घंटे पहरे तले रहना पड़ेगा, और किस लिए?
कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा ‘विश्वसनीय आरोपों’ के आधार पर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर के कत्ल से भारतीय सरकार के एजेंटों का संबंध जोड़ने वाले गैर-जिम्मेदाराना बयान पर आरंभिक आक्रोश के बाद अब यह मानने के कारण हैं कि ट्रुडो का ऐसा कहना केवल बेलगाम होकर नहीं है, न ही किसी निजी चिढ़ की वजह से। वह ‘फाइव-आइज़’ नामक गुट या यूं कहें अंग्रेजी-भाषी साम्राज्य द्वारा सौंपा काम पूरा करने वाले एक गुलाम की भूमिका निभा रहे हैं। अगर ऐसा न होता तो अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवन खुद सामने आकर न कहते कि भारत को ‘विशेष रियायत’ नहीं दी जाएगी, और यह ट्रूडो के इल्जामों की आंख मूंदकर अनुमोदन और मान्यता है।
जैसा कि अपेक्षित था, अपुष्ट सूत्रों को आधार बनाकर यह कहानियां पश्चिमी जगत में फैलाई जाने लगी हैं कि ट्रूडो के पास कुछ ‘इंसानी और सिग्नल आधारित खुफिया जानकारी है’, जिसमें कनाडा स्थित भारतीय राजनयिकों के बीच बातचीत भी शामिल है। लगता है एक पश्चिमी सहयोगी ने यह कथित सबूत जुटाने में मदद की है। जैसे-जैसे परतें खुलती जा रही हैं, गढ़ी कहानी और गहरी होती जा रही है अर्थात भारतीय अधिकारी या अधिकारियों पर गिराई गाज़ के पीछे की वजह ट्रूडो का आहत हुआ अहम कतई नहीं है। यह पश्चिमी जगत की भारत विरोधी साजिश है। लेकिन जिस सवाल को उत्तर की दरकार है : दुनिया में भारत की स्थिति को इस तरह कमजोर करने वाले आघात का रणनीतिक उद्देश्य क्या है?
सच और कुछ नहीं बल्कि यह है कि पश्चिमी जगत भारत में एक कमज़ोर, कम महत्वाकांक्षी और कम मुखर गठबंधन सरकार से बरतकर ज्यादा राजी है। लेकिन यदि आरोपों का मंतव्य प्रधानमंत्री मोदी को चुनावी चोट पहुंचाना है, तो इसका असर उलट होगा क्योंकि ऐसा करके गोरे लोग मोदी-भक्तों के सबसे बड़े सपने यानि आतंकियों से निबटने में- घर में घुसकर मारना – वाले नारे को बुलंद कर देंगे। वास्तव में, कराची में या जहां कहीं दाउद इब्राहिम छिपा है, यदि उसे भी ओसामा बिन लादेन की तर्ज पर ‘बिना किसी विशेष रियायत’ के ढेर कर दिया जाए तो मोदी का एक और कार्यकाल पक्का। भारतीय लोगों का मत, खासकर मुंबई के 26/11 के मुंबई हमले के बाद, आतंकियों और आतंक के अड्डों पर चोट करने के प्रति अडिग है।
फिर, पश्चिमी जगत का रणनीतिक मकसद क्या जी-20 के प्रभाव को खत्म करना या भारत को दक्षिणी गोलार्द्ध के जायज नेतृत्व से महरूम करना या भारत की छवि एशिया में एक धीमी गति से सुधार करने वाले एक बीमारू राष्ट्र की बनाना है? पुनः, इसका असर कितना होगा? इसके गौरव को दिया ऐसा निर्मम झटका भारत के मध्य वर्ग के मन में संशय पैदा करेगा कि कहीं भारत-मध्य एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे से पश्चिमी जगत फिर से हम पर औपनिवेशिक जकड़ तो नहीं बनाना चाहता। यह भी कि खालिस्तानी आतंकवाद और पृथकतावाद आंदोलन भारत में चलने वाली अन्य किसी कट्टरवादी लहर जैसा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से विदेशों में बसे भारतीय मूल के एक वर्ग द्वारा संचालित है, जिसको भारतीय पंजाब में जरा समर्थन प्राप्त नहीं है। ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ वाली कनाडाई दलील के एजेंडे का पंजाब में पर्दाफाश ‘तबाही की आज़ादी’ से हो जाता है, जिस पर अमल आतंकियों को अपने यहां पनाह देने वाली नीति से हो रहा है।
कनाडा ने अन्य लोगों के अलावा उन कातिलों को शरण दे रखी है, जिन्होंने विदेशों से आए धन और उकसावे के तहत, लोगों को धार्मिक पहचान के आधार पर बसों और रेल से खींचकर नीचे उतारा और मार डाला। खालिस्तान के नक्शे में कभी भी महाराजा रणजीत सिंह की राजधानी रहा लाहौर नहीं दिखाया गया और यह भारत में धर्म के आधार पर टुकड़े करवाने के लिए, पश्चिम की शह प्राप्त पाकिस्तानी साजिश को स्पष्टतया बेनकाब करता है। ऐसा भी नहीं कि लोगों ने भारत में अहिंसक किंतु पृथकतावादियों को न चुना हो। यहां तक कि 2022 में लोकसभा उप-चुनाव में मुख्यधारा के दलों से खफ़ा हुए लोगों ने पंजाब के एक अग्रणी पृथकतावादी को सांसद चुन डाला। लेकिन जब गुस्सा उतर गया तो उन्हीं लोगों ने एक अन्य पृथकतावादी उम्मीदवार की जमानत जब्त करवा दी। यह है असल ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’। और पंजाब में यह भरपूर है।
इस परिप्रेक्ष्य में पंजाबियों को अपनी सारी पूंजी लगाकर बच्चे कनाडा भेजने पर पुनर्विचार करना चाहिए। इस मद में बाहर जा रहे धन का मोटा-सा हिसाब ‘दि ट्रिब्यून’ ने लगाया है (दुर्भाग्यवश पंजाब सरकार के पास तैयार डाटा उपलब्ध नहीं है) कि लगभग 68,000 करोड़ रुपया हर साल पंजाब से विदेशों को जा रहा है। यह कुल धन निर्गमन का केवल 60 फीसदी है, जोकि 10 बिलियन डॉलर तक हो सकता है। भारत-कनाडा के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार (माल में) महज 9 बिलियन डॉलर है। भारतीय अपनी जमीन-जायदाद भेजकर बच्चे कनाडा भेज रहे हैं, इससे यहां पर इनकी कीमतें गिर रही हैं और यह पैसा बर्बाद जाएगा क्योंकि ये वापस नहीं आने वाला है। जब बच्चे विदेशों में बस जाएंगे, तो वहीं बचत या खर्च करेंगे। यह प्रवासियों की उस पुरानी पीढ़ी से उलट है, जिनके भेजे धन ने पंजाब में जमीन-जायदाद की कीमतों और समृद्धि को ऊपर उठाया था।
बदतर यह कि जहां बच्चे अपने माता-पिता का बचा-खुचा धन लगाकर कनाडाई यूनिवर्सिटियों को और अमीर बनवा रहे हैं वहीं उन्हें सस्ता मजदूर बनना पड़ रहा है – मेजबान देश में धुलाई, सफाई, कपड़े धोने इत्यादि जैसे सतही काम करना (जोकि अपने मुल्क में कतई गवारा न करते)। अंततः वे कनाडा के लिए सबसे सख्त मेहनतकश नागरिक बनकर रह जाते हैं। इसी बीच, यहां भारत में, करदाताओं को आतंकवादी, गैंगस्टरों और उनके राजनीतिक संरक्षकों के सिवा कुछ नहीं मिल रहा, जो भारतीयों को याद दिलाते हैं कि यदि भारत ने रूस के विरुद्ध प्रस्ताव में मत नहीं दिया या आज्ञाकारी बनकर पश्चिम का साथ नहीं दिया तो एक परित्यक्त राज्यों में गिना जाएगा।
जैसे यह समझ से परे है कि पश्चिमी मुल्कों ने भारतीय राजनयिक को न्यायोचित सुनवाई के बिना दोषी करार दे दिया, यह ठीक वैसा ही है जैसे कनाडा ने तलविंदर सिंह परमार और सह-साजिशकर्ताओं को एअर इंडिया की फ्लाईट 182 को 329 यात्रियों समेत गिरा देना गवारा किया। यदि कनाडाई या अमेरिकियों के पास सबूत के नाम पर ले-देकर केवल भारतीय अधिकारियों के बीच व्हाट्सएप चैट है, बेहतर होगा कि इसे सार्वजनिक न करें। पूरा भारत व्हाट्सएप, सिग्नल, टेलीग्राम और फेसबुस मैसेंजर के जरिये बात करता है। अंततः, इससे भारतीयों को स्वदेशी सर्वरों पर आधारित खुद की मैसेजिंग सेवा बनाने की जरूरत के प्रति सचेत हो जाना चाहिए। तब तक, मोदी कुछ और विश्वविद्यालय बनाकर बढ़िया करने में लगे रहें।

लेखक प्रधान संपादक हैं।

Advertisement

Advertisement