खबरें फर्जी, उनमें साम्प्रदायिकता का रंग भी
नयी दिल्ली, 2 सितंबर (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया मंचों और वेब पोर्टल्स पर फर्जी खबरों पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि मीडिया के एक वर्ग में दिखायी जाने वाली खबरों में साम्प्रदायिकता का रंग होने के कारण देश की छवि खराब हो रही है। चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ बृहस्पतिवार को फर्जी खबरों के प्रसारण पर रोक के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। जमीयत ने अपनी याचिका में निजामुद्दीन स्थित मरकज में धार्मिक सभा से संबंधित ‘फर्जी खबरें’ फैलाने से रोकने और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया है।
पीठ ने कहा, ‘समस्या यह है कि इस देश में हर चीज मीडिया के एक वर्ग द्वारा साम्प्रदायिकता के पहलू से दिखायी जाती है। क्या आपने (केन्द्र) इन निजी चैनलों के नियमन की कभी कोशिश भी की है।’ सुप्रीम कोर्ट सोशल मीडिया तथा वेब पोर्टल्स समेत ऑनलाइन सामग्री के नियमन के लिए हाल में लागू सूचना प्रौद्योगिकी नियमों की वैधता के खिलाफ विभिन्न हाईकोर्ट्स से लंबित याचिकाओं को सर्वोच्च अदालत में स्थानांतरित करने की केंद्र की याचिका पर छह हफ्ते बाद सुनवाई करने के लिए भी राजी हो गया।
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘न केवल साम्प्रदायिक बल्कि मनगढ़ंत खबरें भी हैं और वेब पोर्टल्स समेत ऑनलाइन सामग्री के नियमन के लिए आईटी नियम बनाए गए हैं।’ कोर्ट ने यह भी कहा कि सोशल मीडिया केवल ‘शक्तिशाली आवाजों’ को सुनता है और न्यायाधीशों, संस्थानों के खिलाफ बिना किसी जवाबदेही के कई चीजें लिखी जाती हैं। शीर्ष न्यायालय ने जमीयत को अपनी याचिका में संशोधन की अनुमति दी और उसे सॉलिसिटर जनरल के जरिए 4 हफ्तों में केंद्र को देने को कहा जो उसके बाद दो सप्ताह में जवाब दे सकते हैं।
सीजेआई की टिप्पणी
‘मुझे यह नहीं पता चला कि ये सोशल मीडिया, ट्विटर और फेसबुक आम लोगों को कहां जवाब देते हैं। वे कभी जवाब नहीं देते। कोई जवाबदेही नहीं है। वे खराब लिखते हैं और जवाब नहीं देते तथा कहते हैं कि यह उनका अधिकार है। वे केवल शक्तिशाली लोगों की परवाह करते हैं और न्यायाधीशों, संस्थानों या आम आदमी की नहीं। हमने यही देखा है, हमारा यही अनुभव है।…वेब पोर्टल्स और यूट्यूब चैनलों पर फर्जी खबरों तथा छींटाकशी पर कोई नियंत्रण नहीं है। अगर आप यूट्यूब देखेंगे तो पाएंगे कि कैसे फर्जी खबरें आसानी से प्रसारित की जा रही हैं और कोई भी यूट्यूब पर चैनल शुरू कर सकता है।’