लोकतंत्र की दरकार
देश में लंबे चले चुनाव अभियान और चुनाव परिणाम के बाद अस्तित्व में आयी 18वीं लोकसभा के पहले सत्र की शुरुआत हो चुकी है। राजग की लगातार तीसरी पारी गठबंधन सरकार के रूप में सामने आई है। निश्चित रूप से इस बार विपक्षी गठबंधन पिछले दशक के मुकाबले ज्यादा मजबूत बनकर उभरा है। लेकिन लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी का विपक्ष का नेता चुना जाना साफ बताता है कि आने वाले दिनों में राजग सरकार की राह आसान नहीं रहने वाली। इस संक्षिप्त सत्र के दूसरे दिन लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव को लेकर सत्ता-पक्ष व विपक्ष के बीच जो तनातनी सामने आई, वह पिछले सात दशकों के मुकाबले अभूतपूर्व है। विपक्ष एक ओर लोकसभा उपाध्यक्ष पद देने की मांग कर रहा था, तो सत्ता पक्ष ऐसा करने को तैयार नहीं था। जाहिर इस टकराव के बीच लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने की स्थितियां बनी हैं। हालांकि, राजग सरकार के पास चुनाव पूर्व गठबंधन के चलते पूर्ण बहुमत है, लेकिन विपक्ष इस चुनाव को अपनी एकजुटता के रूप में एक प्रतीकात्मक दबाव के रूप में दिखाना चाहेगा। बहरहाल, बेहतर होता कि लोकसभा में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पदों पर चयन सत्ता पक्ष व विपक्ष के बीच सहमति से होता। इसी तरह नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्यों को शपथ दिलाने के लिये नियुक्त प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति को लेकर भी सत्ता पक्ष व विपक्ष में तनातनी देखी गई। वरिष्ठता के क्रम में इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस की दावेदारी की गई थी। बहरहाल, 18वीं लोकसभा की शुरुआत में ही पक्ष-विपक्ष के बीच तनातनी की शुरुआत स्वस्थ लोकतंत्र के लिये अच्छा संकेत तो कदापि नहीं है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि 17वीं लोकसभा के दौरान टकराव के चलते तमाम सत्रों में कामकाज बुरी तरह प्रभावित रहा। उल्लेखनीय है कि दिसंबर, 2023 में शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में घुसपैठ के मामले में बहस की मांग पर कथित दुर्व्यवहार हेतु 141 विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया था। जिसमें 95 लोकसभा सदस्य थे।
उम्मीद की जानी चाहिए 18वीं लोकसभा में वैसे दृश्य फिर न देखने को मिलें। जनता अपने प्रतिनिधियों को इस लिये चुनकर संसद में भेजती है ताकि वे उनके इलाके के विकास को नई दिशा दे सकें। लेकिन पहले दिन विपक्षी नेताओं द्वारा संसद में संविधान की प्रतियों के साथ एकजुटता दर्शाना और कतिपय सत्तारूढ़ दल के सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान नारेबाजी को देखकर लगता है कि विपक्ष ज्यादा मुखर होकर सरकार के लिये चुनौती पेश करता रहेगा। बहरहाल, किसी भी लोकतंत्र की खूबसूरती इस बात में है कि सरकार सहमति से चले। साथ ही विपक्ष भी जिम्मेदार भूमिका में नजर आए। कुल मिलाकर हंगामे, बहिष्कार व नारेबाजी के बजाय रचनात्मक व गरिमामय भूमिका की दरकार है। स्वस्थ लोकतंत्र की दरकार है सरकार के निर्णयों में हर छोटे-बड़े राजनीतिक दल की भागीदारी हो। सत्तारूढ़ दल को भी इस बात का बखूबी अहसास होना चाहिए कि इस बार विपक्ष मजूबती के साथ लोकसभा में उपस्थित हुआ है। उसके साथ वैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता है जैसा कि राजग सरकार के पिछले दो कार्यकालों में नजर आया था। ऐसे में राजग सरकार को विपक्षी सहयोग से सदन को चलाना होगा। विपक्षी नेताओं के साथ मित्रवत व्यवहार ही सरकार की कार्यशैली को रवानगी देगा। अन्यथा लगातार टकराव की स्थिति बनी ही रहेगी। जिससे सत्तापक्ष व विपक्ष को लगातार बचने का प्रयास करना होगा। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाता है। जिसे सार्थक बनाने का दायित्व सत्तारूढ़ व विपक्षी सांसदों के पास है। लगातार टकराव व हंगामे का दुनिया में कोई अच्छा संदेश नहीं जाएगा। किसी भी कलह से घिरी सरकार पर कई तरह के अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ने शुरू हो जाते हैं, जिससे देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि भी प्रभावित होती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 18वीं लोकसभा में पक्ष-विपक्ष मनभेद-मतभेद भुलाकर नये भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। देश के सामने बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, महंगाई और विकास से जुड़ी तमाम चुनौतियां खड़ी हैं, सरकार और विपक्ष को इसका एकजुट होकर मुकाबला करना चाहिए।