कृतज्ञता से भर देता है संवेदना का अमृत
डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
निस्संदेह, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसके किसी भी व्यवहार से आने वाली पीढ़ियां निरंतर प्रेरणा लेती हैं। जब व्यक्ति समाज में एक-दूसरे के सुख-दुःख में साथ खड़ा होता है, तो हम उसके इसी व्यवहार को ‘संवेदना’ कहकर प्रशंसा करते हैं। एक दार्शनिक ने लाख पते की बात कही भी है कि मनुष्य द्वारा सुख बांटने से बढ़ता है और दुःख बांटने से घटता है। यही वजह है कि दुनिया में मानवीय संवेदना को मनुष्य का सर्वोत्तम गुण माना गया है। व्यावहारिक जीवन में यदि कोई कष्ट में हो और आप निस्वार्थ भाव से उसकी मदद कर दें, तो वह जीवनपर्यंत आपका ऋणी हो जाता है। इतना ही नहीं, आमतौर पर वह व्यक्ति आपकी इस मदद को सदा याद रखता है।
सही मायनों में आदमी का यह गुण तो ‘कृतज्ञता’ कहलाता है और यही गुण जीवन भर के लिए दूसरे व्यक्ति के हृदय में सम्मान दिलवा देता है। मेरा मानना है कि ‘संवेदना’ और ‘कृतज्ञता’ मानव-जीवन को अमृततुल्य बना देती हैं। आज संयोगवश एक ऐसी घटना पढ़ने को मिली है, जिसने अंतर्मन को छू लिया है। इस तरह के प्रसंग पढ़कर मन भाव विभोर हो जाता है :-
‘एक बार की बात है कि फटी धोती और कमीज पहने एक व्यक्ति 15-16 साल की बेटी के साथ एक बड़े होटल में पहुंचा। उन दोनों को कुर्सी पर बैठा देख एक वेटर ने उनके सामने की टेबल पर दो गिलास ठंडा पानी रखकर पूछा, ‘आपके लिए क्या लाना है?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मैंने अपनी बेटी से वादा किया था कि यदि तुम कक्षा दस में जिले भर में प्रथम आओगी, तो मैं तुम्हें बड़े होटल में एक बढ़िया डोसा खिलाऊंगा। बेटी ने सर्वोत्तम अंकों के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की है और मुझसे किये वादे को पूरा कर दिखाया है। सिर्फ इसके लिए एक डोसा ले आओ।’ इसके बाद वेटर ने उस व्यक्ति से पूछा, ‘श्रीमान आपके लिए क्या लाना है?’ तब उस व्यक्ति ने स्पष्ट शब्दों में ईमानदारी से कहा, ‘क्षमा कीजिए, मेरे पास तो सिर्फ एक ही डोसे के पैसे हैं, इसलिए कृपया मेरे लिए कुछ नहीं लाना है।’
पूरी बात सुनकर वह वेटर मालिक के पास गया और पूरी बात बता कर बोला, ‘मैं इन दोनों को भर पेट नाश्ता कराना चाहता हूं। अभी मेरे पास पैसे नहीं हैं, इसलिए इनके बिल की रकम आप मेरी सैलरी से काट लेना।’ वेटर की संवेदना से अभिभूत हुए होटल मालिक ने कुछ अधिक संवेदनशील निर्णय लिया। होटल मालिक ने इसके बाद अपना निर्णय वेटर के सामने रखा, ‘आज हम अपने होटल की तरफ से शहर की इस होनहार बेटी और उसके पिता को सफलता की पार्टी देंगे।’
होटलवालों ने एक टेबल को अच्छी तरह से सजाया। उन्होंने बहुत ही शानदार ढंग से सभी उपस्थित ग्राहकों के साथ उस मेधावी बच्ची की सफलता का जश्न मनाया। इतना ही नहीं, होटल के मालिक ने उन्हें एक बड़े थैले में कुछ डोसे और पूरे मोहल्ले में बांटने के लिए मिठाई उपहार स्वरूप पैक करके भी दे दी। इतना सम्मान पाकर पिता की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। इस सम्मान से प्रसन्न हुए वे दोनों अपने घर चले गए ।
धीरे-धीरे समय बीतता गया। सुखद संयोग था कि एक दिन वही लड़की उसी जिले में कलेक्टर बनकर आई। उसने सबसे पहले उसी होटल में एक सिपाही भेजकर कहलवाया कि शहर की नई कलेक्टर आज नाश्ता करने आपके होटल में आएंगी। होटल के मालिक ने तुरंत एक टेबल को अच्छी तरह सजवा दिया और इंतजार करने लगा। तभी कलेक्टर बनी वही लड़की होटल में मुस्कराती हुई अपने माता-पिता के साथ पहुंची। सभी उसके सम्मान में खड़े हो गए। होटल के मालिक ने उन्हें गुलदस्ता भेंट किया और आर्डर के लिए निवेदन किया।
उस लड़की ने खड़े होकर होटल मालिक और वेटर के सामने झुककर कहा, ‘शायद आप दोनों ने मुझे पहचाना नहीं। मैं वही लड़की हूं, जिसके पिता के पास दूसरा डोसा खरीदने के पैसे नहीं थे और आप दोनों ने मानवता की सच्ची मिसाल पेश करते हुए मेरे ‘टॉप’ करने की खुशी में एक शानदार पार्टी दी थी और पूरे मोहल्ले के लिए मिठाई पैक करके दी थी। उस दिन आपके द्वारा दिए प्रोत्साहन ने मुझे प्रेरित किया। कालांतर में मैं कलेक्टर बनी हूं। आप दोनों का संबल मैंने हमेशा याद रखा। आज यह पार्टी मेरी तरफ से है और उपस्थित सभी ग्राहकों एवं पूरे होटल स्टाफ का बिल मैं दूंगी।’
होटल मालिक और वेटर कलेक्टर के व्यवहार से भावविभोर हो गए। वे और वहां उपस्थित हर व्यक्ति कलेक्टर की इस संवेदना और कृतज्ञता की भावना को देखकर मंत्रमुग्ध होकर तालियां बजा रहे थे। वहीं कलेक्टर को इससे सुकून मिला। होटल के मालिक और वेटर के लिए अपनी आंखों में उमड़ आए आंसुओं को रोक पाना संभव नहीं हो रहा था। कहा भी गया है :-
‘संवेदना अमृत सखे, दे आत्मीयता-भाव।
कृतज्ञता भर दे प्रिय, नया पुराना घाव।’