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सौर विकिरण व चुंबकीय तूफानों की सुलझेगी गुत्थी

06:24 AM Jan 12, 2024 IST
सौर विकिरण व चुंबकीय तूफानों की सुलझेगी गुत्थी
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मुकुल व्यास

भारत ने अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में दो बड़ी सफलताओं के साथ नए साल की शानदार शुरुआत की है। पिछले साल चंद्रमा के सबसे दुर्गम दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर के मूनवॉक के बाद भारत का दूसरा यान आदित्य-एल1 छह जनवरी को सूर्य का साक्षात्कार करने पहुंच गया है। इससे पहले इसरो ने 1 जनवरी को ब्लैक होल और दूसरी खगोलीय वस्तुओं के अध्ययन के लिए एक्स-रे पोलारिमेटर सैटेलाइट (एक्सपोसेट) का सफल प्रक्षेपण किया था। इस तरह के अध्ययन के लिए यह दुनिया का दूसरा मिशन है। इससे पहले नासा ने 2021 में इस तरह का मिशन भेजा था। सूर्य का करीब से अध्ययन करने के लिए आदित्य-एल1 अंतरिक्ष में अपने निर्धारित स्थान, लंग्रेज 1 प्वाइंट पर पहुंच गया है। इसरो ने यान को इस प्वाइंट के इर्दगिर्द एक त्रिआयामी कक्षा में स्थापित कर दिया है। लंग्रेज 1 प्वाइंट सूर्य की दिशा में पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर है। त्रिआयामी कक्षा में यान को प्रविष्ट कराना तकनीकी दृष्टि से बहुत ही जटिल कार्य था, जिसे इसरो के वैज्ञानिकों ने सटीकता के साथ पूरा किया। इस सूर्य मिशन से भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने सूर्य के अन्वेषण के लिए अपने यान भेजे हैं।
आदित्य-एल1 ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएस एलवी-सी57) के जरिए श्रीहरिकोटा से 2 सितंबर को रवाना हुआ था। सूर्य की पड़ताल के लिए यह भारत की पहली अंतरिक्ष-आधारित ऑब्जर्वेटरी है। इसमें 7 अलग-अलग पेलोड हैं,जो सभी स्वदेशी साधनों से विकसित किए गए हैं। पांच पेलोड इसरो द्वारा विकसित किए गए हैं जबकि दो अन्य का विकास इसरो के सहयोग से भारतीय शैक्षणिक संस्थानों द्वारा किया गया है। यान के पेलोड में सात वैज्ञानिक उपकरण हैं जो सौर कोरोना (सबसे बाहरी परत), फोटोस्फीयर (सूर्य की सतह या वह भाग जिसे हम पृथ्वी से देखते हैं) और क्रोमोस्फीयर (प्लाज्मा की एक पतली परत जो फोटोस्फीयर और कोरोना के बीच स्थित होती है) का निरीक्षण और अध्ययन करेंगे।
एल1 से अभिप्राय सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लग्रेंज प्वाइंट 1 से है। सामान्य समझ के लिए एल1 अंतरिक्ष में एक ऐसा स्थान है जहां सूर्य और पृथ्वी जैसे दो खगोलीय पिंडों के गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित रहते हैं। दूसरे शब्दों में दोनों के बल एक-दूसरे को कैंसल कर देते हैं। इस वजह से वहां रखी वस्तु दोनों खगोलीय पिंडों के बीच अपेक्षाकृत स्थिर रहती है। सभी लग्रेंज स्थानों में से, एल1 को सौर अवलोकनों के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। एल1 के चारों ओर कक्षा में एक उपग्रह होने का मुख्य लाभ यह है कि यह बादलों द्वारा अवरुद्ध किए बिना या ग्रहणों का अनुभव किए बिना लगातार सूर्य को देख सकता है। इस समय वहां यूरोपीय स्पेस एजेंसी की सोलर एंड हेलिओस्फेरिक ऑब्ज़र्वेटरी (सोहो) इस समय वहां मौजूद है। सूर्य,ग्रहों और उनके चंद्रमाओं के बीच गुरुत्वीय अंतर-क्रियाओं के कारण पूरे सौरमंडल में लग्रेंज प्वाइंट मौजूद हैं।
आदित्य एल1 अगले पांच वर्षों तक सूर्य पर होने वाली विभिन्न घटनाओं को मापने में मदद करेगा और सभी प्रकार के डेटा एकत्र करेगा जो अकेले भारत के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। सूर्य हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है, इसे समझने के लिए यह डेटा बहुत उपयोगी होगा। आदित्य-एल1 ने अपनी यात्रा के दौरान पर अपने हाई एनर्जी एल1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एचईएल1ओएस) पेलोड से सौर ज्वालाओं की पहली झलक देखी है। 29 अक्तूबर को अपनी पहली अवलोकन अवधि के दौरान एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर ने आदित्य-एल 1 पर सौर ज्वालाओं के आवेगपूर्ण चरण को रिकॉर्ड किया। रिकॉर्ड किया गया डेटा अमेरिका के ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के जियोस्टेशनरी ऑपरेशनल एनवायर्नमेंटल सेटेलाइट द्वारा प्रदान किए गए डेटा के अनुरूप है।
दरअसल, स्पेक्ट्रोमीटर का डेटा शोधकर्ताओं को सौर ज्वालाओं के आवेगपूर्ण चरणों के दौरान विस्फोटक ऊर्जा का अध्ययन करने में सक्षम बनाता है। यह स्पेक्ट्रोमीटर इसरो के बेंगलुरु स्थित यू.आर.राव सैटेलाइट सेंटर के स्पेस एस्ट्रोनॉमी ग्रुप द्वारा विकसित किया गया था। आदित्य-एल1 पर लगे सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) ने 6 दिसंबर को सूर्य की पहली पूर्ण-डिस्क छवियों को सफलतापूर्वक कैप्चर किया है।
एल1 लग्रेंज प्वाइंट पर यान की तैनाती से आदित्य-एल1 सूर्य को लगातार देख रख सकता है। इस स्थान से अंतरिक्ष यान सौर विकिरण और चुंबकीय तूफानों तक पहुंच सकता है। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और वायुमंडल से प्रभावित होने से पहले सौर विकिरण और चुंबकीय तूफानों को समझना बहुत जरूरी है। इसके अतिरिक्त एल1 बिंदु की गुरुत्वाकर्षण स्थिरता उपग्रह की परिचालन दक्षता को बढ़ाती है और बार-बार कक्षीय रखरखाव प्रयासों की आवश्यकता को कम करती है।
सूर्य हमारे सौरमंडल के केंद्र में है। वह अन्य सभी खगोलीय पिंडों के व्यवहार पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। सूर्य पर शोध से सौरमंडल की गतिशीलता को समझने में सुधार हुआ है। सौर गतिविधि जिसमें सौर ज्वालाएं और कोरोनल मास इजेक्शन शामिल हैं, पृथ्वी के चारों ओर अंतरिक्ष पर्यावरण को प्रभावित कर सकती है। विद्युत ग्रिड,नेविगेशनल सिस्टम और संचार नेटवर्क की संभावित खराबी का पूर्वानुमान लगाने और उसे रोकने के लिए इन घटनाओं की गहन समझ की आवश्यकता होती है। सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र, तापन प्रक्रियाओं और प्लाज्मा गतिशीलता सहित उसके जटिल व्यवहार की जांच से खगोल भौतिकी और बुनियादी भौतिकी दोनों के विकास में सहायता मिलती है। सूर्य एक प्राकृतिक फ्यूजन (संलयन) रिएक्टर है। दुनिया के वैज्ञानिक सूर्य से प्रेरणा लेकर असीमित स्वच्छ ऊर्जा के लिए फ्यूजन रिएक्टर बनाने के प्रयास कर रहे हैं। पृथ्वी पर स्वच्छ और टिकाऊ संलयन ऊर्जा विकसित करने के हमारे प्रयास सूरज के मूल में चल रही गतिविधियों और और उसकी परमाणु प्रक्रियाओं पर शोध से प्राप्त ज्ञान से प्रभावित हो सकते हैं। हमारे उपग्रह और अंतरिक्ष यान सौर विकिरण और सौर पवन से प्रभावित होते हैं। इन सौर अंतःक्रियाओं को समझकर अंतरिक्ष यान डिजाइन और संचालन को बेहतर बनाने में मदद मिली है।
सूर्य को समझने की कोशिश पिछले छह दशकों से हो रही है। नासा 1960 के दशक से सूर्य पर नजर रख रहा है। जापान ने सौर ज्वालाओं का अध्ययन करने के लिए 1981 में अपना पहला मिशन शुरू किया था। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) 1990 के दशक से सूर्य का अवलोकन कर रही है। नासा और ईएसए ने फरवरी 2020 में संयुक्त रूप से एक सोलर ऑर्बिटर लांच किया जो सूर्य का करीब से अध्ययन कर रहा है और डेटा इकट्ठा कर रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि कौन सी चीज इसके गतिशील व्यवहार को क्या प्रेरित करती है। 2021 में,नासा के नवीनतम अंतरिक्ष यान,पार्कर सोलर प्रोब ने सूर्य के बाहरी वायुमंडल,कोरोना में ऐतिहासिक उड़ान भरी। इससे पहले कोई और अंतरिक्ष यान सूर्य के इतने करीब नहीं पहुंचा था।

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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