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रिसते रिश्तों की अबूझ दास्तां

06:17 AM Jun 20, 2024 IST
रिसते रिश्तों की अबूझ दास्तां
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शमीम शर्मा

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एक बार बस में बैठे किसी व्यक्ति ने साथ वाली सीट पर बैठे सज्जन से पूछा कि तुम्हारी क्या जाति है? उसने जवाब दिया- जाट हूं। पहले वाले आदमी ने जिज्ञासावश पूछा कि भाई ये जाट किसमें आते हैं? वो आदमी बोला- भाई जेब में पैसे फुल हों तो फार्चूनर में आते हैं अर नहीं तो बस में ही आते हैं। और रुपये और बेशुमार हों तो ये रामजी के बस में भी नहीं आते। सभी जातियों की अपनी-अपनी चारित्रिक खासियत होती हैं। सभी जातियों की अपनी-अपनी लक्ष्मण रेखायें भी हैं। वैसे चाहे एक जाति के लोगों का ही आपस में कुत्ते-बिल्ली का वैर हो पर चुनावों में इनका एक्का अच्छे-अच्छों को पानी पिला देता है।
कहने में तो यही आता है कि सबसे घनिष्ठ खून के रिश्ते होते हैं पर चुनावों में सिद्ध हो जाता है कि असली रिश्ते जातिगत हैं। जातियों का समीकरण ही जीत-हार की पटकथा लिखता है। कई नेता तो जातिगत गणना करवाने पर आमादा हैं। जाति की कीलें इतनी गहरी गड़ चुकी हैं कि जाति प्रथा इस देश से जाती ही नहीं। और जाए भी तो कैसे क्योंकि हमारे नेताओं की नैया इन्हीं के सहारे तैरती-डूबती है। नेतागण इन्हें कभी जाने भी नहीं देंगे।
सभी रिश्ते जातिगत या खून के ही नहीं होते, कुछ खून चूसने के भी होते हैं। कुछ लोगों का जीवन होता ही मच्छरों की तरह है। वे दुनिया में सिर्फ खून पीने ही आते हैं। अक्सर घरों में जमीन-जायदाद को लेकर भाई अपने ही भाई के खून के प्यासे हो जाते हैं। ऐसी मनोवृत्ति के लोगों को देखकर ही किसी शायर ने कहा है :-
मयखाने से पूछा आज इतना सन्नाटा क्यों है
बेटा! लहू का दौर है शराब पीता कौन है।
गजब समय आ गया है। खून के नाते भी अब ढीले होते जा रहे हैं। सिर्फ जीने-मरने पर ही इन रिश्तों में आहट सुनाई देती है अन्यथा खामोशी। पता नहीं खून में खराबी आ गई है या मनों में मुटाव? ये रिश्ते कई बार तो खून के आंसू रुला देते हैं। एक सत्य यह भी है कि कभी-कभी अजनबी रिश्ते खून के रिश्तों से बड़े हो जाते हैं।
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एक बर की बात है अक किसी बानिये नैं खून देकै चौधरी की जान बचा ली। चौधरी नैं अपणी जान बचण की खुशी मैं बानिये ताहिं एक होंडा सिटी कार दे दी। कुछ टैम बाद चौधरी कै फेर खून की कमी पड़गी तो बानिये नैं फेर खून देकै उसकी जान बचाई। ईबकै चौधरी नैं उस ताहिं दो किल्लो लाड्डू दिये तो बानिया बोल्या- के बात सिर्फ लाड्डू? चौधरी बोल्या- भाई! ईब मेरे बदन म्हां बानिये का खून दौड़ रह्या है।

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