मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

बदलती ज़िंदगी का गुणा-भाग

07:00 AM May 05, 2024 IST
Advertisement

योगेश्वर कौर
नगरों की सभ्यता और यहां का जीवन तीव्र गति से बदल रहा है। रहन-सहन, खान-पान ही नहीं सोच और लोगों के व्यवहार, चरित्र में भी बदलाव देखा जा रहा है। इसका प्रतिबिम्ब साहित्यिक विधा में आना स्वाभाविक है। जयपुर की नीलिमा टिक्कू एक रचनाकार के नाते अपने लघु कथा संग्रह गुणा-भाग में इस तरह की वृत्ति का जायजा ले रही है।
आज लघुकथा एक सार्थक और समर्थ विधा के रूप में स्वीकार की जाने लगी है। अहसास एक रसना, अनुभव और व्यवहार में यहां नगरों के मात्र आधुनिक, आगे अति आधुनिक कहलाने की होड़ में, संस्कृतियों, संस्कारों को पीछे छोड़ रहे हैं। नीलिमा टिक्कू का ‘गुणा-भाग’ में शामिल 70 लघुकथाएं इसका सबूत है। सरकती, बहकती और बहती संस्कृति इनकी कथाओं के केंद्र में है।
संबंध, समाज, परिवार और व्यापार में भी गति पर प्रभाव डाला है। मात्र मूल्यों को पीछे धकेलते हुए नये तथा मंथन, मूल्य यहां बनाए, दिखाए और निभाए जा रहे हैं। ‘दीवार’, पाठक, ‘प्रकाशन’, ‘सजा’ या बेवकूफी ही नहीं, यहां इन ‘सुरक्षा’ खतरा जैसे छोटी कहानियों का व्यंग्य इस मानसिकता को उजागर कर रहा है। उतावलापन, तेजी से महत्वाकांक्षाएं, इन लघुकथाओं के पात्रों पर सवार विदुषी लेखिका ने शैली, शिल्प और भाषा के जीवन के ‘गुणा-भाग’ का गणित यहां द्वन्द्व के माध्यम से बयान किया है। ‘हम’ और ‘तुम’ के मर्म के परिचित होंगे, ऐसा विश्वास कृति दिलाती है।
पुस्तक : गुणा-भाग (लघुकथा संग्रह) रचनाकार : नीलिमा टिक्कू प्रकाशक :  दीपक प्रकाशन, जयपुर, पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 395.

Advertisement
Advertisement
Advertisement