सौरमंडल को समझने का ज्ञान देता है चंद्रमा
योगेश कुमार गोयल
चंद्रमा की सतह पर मानव द्वारा पहली लैंडिंग की वर्षगांठ के रूप में 20 जुलाई को वर्ष 2022 से ‘अंतर्राष्ट्रीय चंद्रमा दिवस’ मनाया जा रहा है। इस वर्ष तीसरा अंतर्राष्ट्रीय चंद्रमा दिवस ‘छाया को रोशन करना’ थीम के साथ मनाया जा रहा है। इसका लक्ष्य आम जनता को यह बताना है कि स्थायी चंद्र अन्वेषण करना कितना महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे अधिक मिशन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचेंगे, वैसे-वैसे इसका रहस्य उजागर होता जाएगा और छायाएं हमेशा के लिए प्रकाशित हो जाएंगी। इससे मानव जाति के लिए चंद्रमा की खोज और उससे लाभ उठाने का मार्ग प्रशस्त होगा।
वर्ष 2023 में यह दिवस ‘मानवता के लिए नई चंद्र यात्रा की शुरुआत’ थीम के साथ मनाया गया था। अंतर्राष्ट्रीय चंद्रमा दिवस मनाने का आवेदन संयुक्त राष्ट्र कार्यालय फॉर आउटर स्पेस अफेयर्स को प्रस्तुत किया गया था। संयुक्त राष्ट्र समिति के 64वें सत्र के दौरान 2017 में बने एक गैर-सरकारी संगठन ‘मून विलेज एसोसिएशन’ ने बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर एक आवेदन प्रस्तुत किया था, जिसमें 20 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय चंद्रमा दिवस के रूप में नामित करने का अनुरोध किया गया था।
दरअसल, ‘मून विलेज एसोसिएशन’ सरकारों, उद्योग, शिक्षा जगत तथा मून विलेज के विकास में रुचि रखने वाली जनता के लिए एक स्थायी वैश्विक अनौपचारिक मंच के रूप में कार्य करता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 9 दिसम्बर, 2021 को इस एसोसिएशन तथा संगठन के भीतर कई अन्य समूहों द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को मान्यता प्रदान की, जिसके बाद वैश्विक समुदाय द्वारा यह दिवस 20 जुलाई, 2022 को पहली बार मनाया गया।
भारत के लिए इस दिवस का महत्व बहुत ज्यादा है क्योंकि पिछले साल 14 जुलाई को चंद्र मिशन के तहत ‘चंद्रयान-3’ लांच किया गया था और चंद्रयान-3 मिशन के जरिये 23 अगस्त, 2023 को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक अविस्मरणीय अध्याय लिखते हुए भारत ने ऐसा स्वर्णिम इतिहास रचा था, जिससे अभी तक दुनिया के तमाम देश कोसों दूर हैं। दरअसल चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के जिस बेहद रहस्यमय और गुमनाम दक्षिणी ध्रुव पर कदम रखे थे, वह चंद्रमा का बेहद खतरनाक क्षेत्र माना जाता है। इस मिशन की सफलता के साथ ही भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा पर पहुंचने वाला चौथा देश बन गया था।
चंद्रयान-3 मिशन की बड़ी सफलता के बाद इसरो अब चंद्रयान-4 मिशन को लांच करने की तैयारियों में जुटा है। भारत के इस चौथे मून मिशन को 2028 तक लांच किए जाने की संभावना है। चंद्रयान-4 को चांद से मिट्टी के नमूने लाने के लिए बनाया जा रहा है, जो ‘शिव शक्ति’ बिंदु से पृथ्वी पर चंद्र नमूने वापस लाएगा।
अंतर्राष्ट्रीय चंद्रमा दिवस मनाने का उद्देश्य चंद्रमा के सतत उपयोग और अन्वेषण तथा चंद्र ग्रह पर और उसके आसपास की गतिविधियों के नियमों की आवश्यकता को शिक्षित करना और बढ़ावा देना है। वैसे यह जानना भी दिलचस्प है कि चंद्रमा पर 14-15 दिन तक सूर्य निकलता है और बाकी के 14-15 दिन अंधेरा रहता है। यही नहीं, चंद्रमा का एक दिन हमारे 29.5 दिन के बराबर होता है। जहां तक 20 जुलाई को ‘अंतर्राष्ट्रीय चंद्रमा दिवस’ मनाए जाने की बात है तो 20 जुलाई, 1969 पूरी दुनिया के लिए एक ऐतिहासिक दिन था क्योंकि उस दिन पहली बार धरती से गए किसी इंसान ने चंद्रमा की सतह पर कदम रखा था। अमेरिकी अंतरिक्ष उड़ान ‘अपोलो-11’ मिशन के हिस्से के रूप में अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले मानव थे। नील आर्मस्ट्रांग ने जब चंद्रमा की सतह पर पहला कदम रखा था, तब कहा था कि यह एक आदमी के लिए एक छोटा कदम है लेकिन मानव जाति के लिए एक बड़ी छलांग है।
समस्त मानव जाति के लिए चंद्रमा पर पदार्पण एक ऐसा ऐतिहासिक कार्य था, जिसके बाद विज्ञान और अंतरिक्ष को देखने का दुनिया का दृष्टिकोण ही बदल गया। दरअसल, हजारों वर्षों से मानव सभ्यताएं हमारे एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा की उत्पत्ति और रहस्यों पर विचार करते हुए आकाश की ओर देखती रही हैं। हालांकि, चंद्रमा की उत्पत्ति को लेकर वैज्ञानिकों द्वारा कई तरह के सिद्धांत दिए गए हैं, जिनमें से सर्वाधिक मान्य ‘बिग इम्पैक्ट थ्योरी’ ही है, जिसके अनुसार कई अरब वर्ष पूर्व मंगल ग्रह के आकार का एक पिंड हमारी पृथ्वी से टकराया और उस टकराव के परिणामस्वरूप पृथ्वी की ऊपरी सतह टूटकर अंतरिक्ष में बिखर गई। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण वह मलबा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने लगा और धीरे-धीरे एक पिंड के रूप में बदल गया और इस प्रकार पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा का जन्म हुआ। पृथ्वी से हुई टक्कर के परिणामस्वरूप ही पृथ्वी अपने अक्ष से 23.5 डिग्री झुक गई और उसी के बाद पृथ्वी पर विभिन्न ऋतुओं का जन्म हुआ तथा पृथ्वी के घूर्णन में स्थिरता आई। उस टक्कर की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन के उद्भव के लिए अनुकूल पर्यावरण का जन्म हुआ। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि हमें पृथ्वी को समझना है तो उसके लिए पहले चंद्रमा को समझना जरूरी है क्योंकि उसके बगैर हम अपने सौरमंडल को भी सही ढंग से नहीं समझ सकते।