कुंआरों का सावन और गृहस्थों का पतझड़
अशोक गौतम
महीना चाहे सावन का हो या भादों का! जेठ का हो या आषाढ़ का! नफरत का हो या कि बहार का, कुंआरों को न पसीना आता है, न ठंड उनका कुछ बिगाड़ पाती है। दिसंबर में भी वे अपनी शर्ट के सारे बटन खोल झूमते रहते हैं मानो दिसंबर का महीना न होकर वह मार्च-अप्रैल का महीना हो।
पर हाय रे बेचारा गृहस्थी! सात ऋतु तेरह महीने परेशानी ही परेशानी में। हर ऋतु उसे बीवी द्वारा कोसने का नया बहाना देती है। हर महीने बीवी उसे एक नया उलाहना देती है। जिस तरह जनता का काम सरकार को नौ पहर पच्चीस घंटे कोसना होता है, वही स्थिति इस गृहस्थी की है। न जनता सरकार से कभी खुश, न बीवी कभी ईमानदार से ईमानदार पति से।
अबके सावन आया, पर दूर-दूर तक कहीं सावन के झूले नहीं दिख रहे। सड़कों के पुल झूलते जरूर दिख रहे हैं। बीवी के हाथों में मेहंदी लगी है तो मेरे हाथों में घर की बंद हुई नालियों का कीचड़ साफ करते मिट्टी।
अबके सावन में नायिका अपने परदेस गए नायक की याद में आंसू नहीं बहा रही, मेरे घर की छत मेरे हालात पर आंसू बहा रही है। यह सब देख कुंआरा मस्ती में है। मल्हार गा रहा है। सावन की फुहारों में मोर बन नाचता नहा रहा है। उसे न जुकाम की चिंता है, न बुखार की परवाह। पर मुझ-सा गृहस्थी परेशान है। नॉन-स्टाप सावन की बौछारों की तरह बीवी के नॉन-स्टाप उलाहने जारी हैं। उधर यमुना का पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है तो इधर बीवी के उलाहनों का पानी। दिल्ली की तरह सावन का मस्त-मस्त पानी मेरे घर में घुस आया है, पर वह दिल्लीवासियों की तरह बेबसी है। घर में घुसे पानी निकालने की बहुत कोशिश तो है, पर गृहस्थ के घर से सावन का पानी और दिमाग से प्रेमिका कभी निकल पाए हैं क्या? घर का पानी निकालते-निकालते उसे जुकाम हो रहा है। बुखार भी हो सकता है। ऐसे में गृहस्थी सोचता है- काश! जिंदगी में सब कुछ किया हो, पर विवाह न किया होता। अकेला होता तो घर में घुसे पानी में नौका विहार का आनंद ले लेता। सरकार जैसे देश में घुसपैठियों के अचानक घुस आने पर बेबस दिखती है, वैसे ही सावन में अचानक घर में घुस आए पानी को निकालने में गृहस्थी बेबस दिखता है। घरवाली का क्या! उसे तो बस, अपने पति को खरी-खोटी सुनाने का आपदा में एक अवसर और मिल जाता है।
आपदा में तो हर पति को कोसना हर बीवी का अधिकार होता ही है, पर पतिपरायण बीवी बिन आपदा भी अपने पति को कोसने का अवसर ढूंढ़ लेती है। कुशल गृहिणी वही होती है जो पति को लताड़ने का कोई भी बे-मौका मौका हाथ से न जाने दे।