फैशन बाज़ार की बयार में खुलता मिडल ईस्ट
सऊदी अरब में रूढ़िवादी छवि तोड़ने के लिए अब कई सुधार किये जा रहे हैं। इसी के तहत वहां फैशन आयोग की स्थापना भी की गई। ड्रेस कोड उदार किया। फैशन शो आयोजित किये, जिसमें मॉडल स्विम सूट में नजर आयीं। दरअसल फैशन को बढ़ावा आर्थिक नीति का हिस्सा है। सऊदी फैशन बाजार इस साल 4.37 बिलियन डॉलर का हो जायेगा। वहीं पूरा मिडल ईस्ट सऊदी के नक्शेकदम पर है जिसमें वैश्विक फैशन ब्रांड्स की रुचि है। अरब की कई महिला डिजाइनर्स की खुद की ब्रांड भी हैं। हालांकि ईरान में महिलाएं अभी पहनावे की आजादी के लिए संघर्ष कर रही हैं।
पुष्परंजन
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
रियाद से सऊदी प्रेस एजेंसी ने बीते दिनों खबर दी कि सऊदी फैशन आयोग ने एक नई शैक्षिक पहल शुरू करने के लिए फ्रांस के ‘इंस्टीट्यूट फ़्रैंकैस डे ला मोद’ और ‘मिस्क फ़ाउंडेशन’ के साथ साझेदारी की है। इस साझेदारी में अत्याधुनिक ज्ञान को व्यावहारिक अनुभव के साथ जोड़कर अभिनव शैक्षिक कार्यक्रम को आगे बढ़ाना है, जो डिजाइनरों, ब्रांड मालिकों और निवेशकों के लिए फैशन की दुनिया में बड़ा मंच तैयार करते हैं। यानी, फैशन की दुनिया में सऊदी अरब अब प्रतिस्पर्धी है। यह ख़बर उनके लिए तकलीफ़देह है, जो परिधान को धर्म के नज़रिये से सुनिश्चित करते हैं।
स्विमसूट फैशन शो के अनूठे पल
सऊदी फैशन आयोग का एक वार्षिक कार्यक्रम है, ‘100 ब्रांड्स’, जिसका मिशन इस्लामी अधिराज्य के फैशन उद्योग को बढ़ाना है। रियाद स्थित सऊदी फैशन आयोग की स्थापना 2020 में हुई थी। यह सांस्कृतिक मंत्रालय का हिस्सा है। गत मई में सऊदी अरब ने पहला फैशन शो आयोजित किया, जिसमें मॉडल स्विम सूट के साथ नमूदार हुईं। फैशन शो में मोरक्को की डिजाइनर यास्मिना कंजल के वन-पीस स्विमसूट डिज़ाइन दिखाए गए। अधिकांश मॉडलों के कंधे खुले हुए थे।
डिजाइनर यास्मिना कंजल ने बताया, ‘यह सच है कि सऊदी अरब बहुत रूढ़िवादी है, लेकिन हमने इस्लामी दुनिया का प्रतिनिधित्व करने वाले इस देश में सुरुचिपूर्ण स्विमसूट दिखाने की कोशिश की है। जब हम यहां आए, तो हमने समझा कि सऊदी अरब में स्विमसूट फैशन शो एक ऐतिहासिक क्षण है, क्योंकि ऐसा आयोजन पहली बार हो रहा है। कंजल ने कहा, इसमें शामिल होना सम्मान की बात है।’ जुमे के दिन स्विम सूट फैशन शो में शामिल होने वाले सीरियाई इन्फ्लुएंसर शौक मोहम्मद ने कहा कि सऊदी अरब के दुनिया के लिए खुलने और अपने फैशन और पर्यटन क्षेत्रों को बढ़ाने के प्रयास को देखते हुए यह आश्चर्यजनक नहीं है। स्विमसूट डिज़ाइन शो में आये एक फ्रांसीसी इन्फ्लुएंसर राफेल सिमाकोर्बे ने कहा कि हमारी नज़र में इसमें कुछ भी जोखिम भरा नहीं था, लेकिन सऊदी के संदर्भ में यह एक बड़ी उपलब्धि थी। उन्होंने कहा, ‘ऐसा करना उनके लिए बहुत साहस का काम है, इसलिए मैं इसका हिस्सा बनकर बहुत खुश हूं।’ आयोजकों ने बताया कि यह ‘रिसॉर्ट रेड सी ग्लोबल’ का हिस्सा है, जो सऊदी अरब के विजन 2030 सामाजिक और आर्थिक सुधार कार्यक्रम के गीगा-प्रोजेक्ट्स में से एक है, जिसकी देखरेख क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान करते हैं।
सामाजिक सुधारों की कड़ी
प्रिंस सलमान ने सऊदी अरब की कठोर और रूढ़िवादी छवि को नरम करने के लिए सामाजिक सुधारों की एक शृंखला शुरू की है। इन सुधारों में सिनेमाघरों को फिर से शुरू करना, और मिश्रित-लिंग यानी महिला-पुरुष के साझे संगीत समारोहों का आयोजन करना शामिल है। वहाबिज्म के बरक्स इन प्रयासों को रूढ़िवादी सहजता से पचा नहीं पा रहे हैं। उन परिवर्तनों में लाठी भांजने वाली धार्मिक पुलिस को दरकिनार करना शामिल है।
आर्थिक नीति व फैशन का बाजार
आज की तारीख में सऊदी फैशन इंडस्ट्री में ढाई लाख से अधिक लोग कार्यरत हैं। जिस सऊदी अरब को हम पेट्रो डॉलर वाला देश मानते रहे, वहां की पटकथा नई पीढ़ी अब बदल रही है। स्टेटिस्टा के अनुसार, सऊदी अरब में फैशन बाजार 2024 में 4.37 बिलियन डॉलर का हो जायेगा, जिसमें 2024 से 2029 तक 11.62 प्रतिशत की चक्रवृद्धि की संभावना है। इससे अगले पांच वर्षों में बाजार का आकार 7.57 बिलियन डॉलर का हो जाएगा, जो गैर-तेल उद्योगों को बढ़ावा देने की मंशा को रेखांकित करता है। सऊदी सरकार ने फैशन को सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में मान्यता दी है। साल 2021 में किंगडम ने आयातित फैशन वस्तुओं पर 7.3 बिलियन डॉलर खर्च किए, जो घरेलू विकास की संभावना को दर्शाता है।
सऊदी अरब में ड्रेस कोड सुधार
1979 में मक्का में मस्जिद अल-हरम में एक फतवे के ज़रिये किंगडम की सभी महिलाओं, और आगंतुकों के लिए अनिवार्य अबाया या कवर्ड लिबास लागू किया गया। वर्ष 1980 के दशक के अंत तक, महिलाओं को स्विमिंग पूल का उपयोग करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। 1980 और 90 के कालखंड में, सऊदी अरब की धार्मिक पुलिस अधिक रूढ़िवादी हो चुकी थी। नमाज़ में अनिवार्य रूप से उपस्थिति, लिंग भेद और सऊदी अरब ड्रेस कोड, विशेष रूप से महिलाओं के लिए सख्ती से लागू किया। साल 2015 में, जब किंग सलमान सिंहासन पर बैठे, तो उन्होंने फैसला किया कि काला अबाया अब अनिवार्य नहीं है। औरतें किसी भी रंग और पैटर्न का अबाया पहन सकती हैं। साल 2017 और 2019 के बीच, रूढ़िवादी परम्पराओं के पोषक इस देश में महत्वपूर्ण सामाजिक सुधार लागू किए गए। इससे उन महिलाओं को लाभ हुआ, जो पहले गाड़ी चलाने, पुरुषों की मौजूदगी में खेल और मनोरंजन कार्यक्रमों में भाग लेने, या पुरुष की अनुमति के बिना पासपोर्ट प्राप्त करने में असमर्थ थीं। साल 2018 में, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने स्पष्ट कहा कि इस्लाम का पालन करने के लिए महिलाओं को सार्वजनिक रूप से अबाया या हिजाब पहनने की ज़रूरत नहीं है। इससे कई महिलाओं को यह चुनने की अनुमति मिल गई, कि वो कौन सा बाहरी वस्त्र पहनेंगी।
धार्मिक पुलिस के कम हुए अधिकार
सद्गुणों को बढ़ावा देने और बुराई की रोकथाम के लिए सऊदी आयोग (सीपीवीपीवी), की स्थापना 1940 में की गई थी। यह संगठन, आज भी काम कर रहा है, लेकिन इसके दांत एक-एक कर तोड़े जा रहे हैं। पहले इसका मुख्य काम सऊदी अरब में महिलाओं के लिए ड्रेस कोड लागू करके, इबादत के समय को तय करना और घर से बाहर औरत-मर्द की आवाजाही को अलहदा करके इस्लामी मानदंडों को लागू कराना होता था। ये नियम, आमतौर पर सऊदी अरब की महिलाओं पर कहीं अधिक कठोरता से आयद किए गए थे। साल 1960 और 1980 के बीच, सऊदी अरब में धीरे-धीरे साहा (जागृति) आंदोलन का उदय हुआ, जिसे इस्लामिक जागृति आंदोलन भी कहा जाता है। इसने सुन्नी इस्लाम के एक कठोर, शुद्धतावादी रूप को आगे बढ़ाया जिसे वहाबिज्म कहा जाता है। साल 1979 तक मक्का में ग्रैंड मस्जिद पर कब्ज़ा करने के बाद, सीपीवीपीवी की शक्तियां और अराजक हो गई थीं। तब कुछ पुस्तकों को जलाया गया, संगीत वाद्ययंत्रों को नष्ट किया गया, विरोध करनेवालों की मार-पिटाई हुई। दहशत फ़ैलाने के वास्ते सर्वाधिक महिलाएं दण्डित की गयीं।
पोशाक प्रतिबंधों पर उठा सवाल
मार्च 2002 में मक्का के एक गर्ल्स स्कूल में आग लगने से 15 स्कूली छात्राओं की मौत हो गई थी। कथित तौर पर यह मुतव्वीन द्वारा उचित पोशाक न पहनने के कारण छात्राओं को इमारत से बाहर जाने से रोकने के कारण हुआ था। इस कांड ने धार्मिक पुलिस पर कई सवाल खड़े किये। इसके बाद के दशक में, सीपीवीपीवी की शक्तियां धीरे-धीरे कम होती गईं, 2016 आते-आते क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने आधुनिक सऊदी समाज में धार्मिक पुलिस की भूमिका को प्रभावी रूप से समाप्त कर दिया। सऊदी अरब में सीपीवीपीवी अभी भी मौजूद है, लेकिन उसके पास अब पुलिस जैसी शक्तियां नहीं हैं, वह दंड देने में भी असमर्थ है, और केवल कानून प्रवर्तन को उल्लंघन की रिपोर्ट कर सकता है। उल्लंघन के लिए दंड कम कर दिए गए हैं, कोड़े मारने जैसी सज़ाओं की जगह जुर्माने ने ले ली है।
ड्रेस कोड
फिर भी, आप ये न समझें कि सऊदी समाज में एकदम खुलापन आ गया। अब भी सऊदी फैशन शो के ड्रेस कोड संस्कृति मंत्रालय ने निर्धारित कर रखे हैं। जैसे, अभद्र भाषा वाले कपड़े या सामान्य शिष्टाचार का उल्लंघन करने वाली तस्वीरों, आकृतियों, संकेत वाले परिधान न पहने जाएं, पारदर्शी कपड़े नहीं। केवल घुटने और कोहनी के नीचे शालीन कपड़े, सार्वजनिक रूप से नाइटवियर या टू पीस नहीं। तंग, त्वचा से चिपके हुए या पारदर्शी कपड़े नहीं। वहीं कोई भी धार्मिक प्रतीकात्मक आभूषण नहीं, जो इस्लामी न हो।
अरब देशों की नामचीन सुपरमॉडल
फैशन मॉडलिंग की दुनिया में दर्जनों अरब और मुस्लिम महिलाएं दरपेश हैं, जो अपनी विरासत को गर्व के साथ पहनती हैं। वो इतिहास बनाती हैं, और वर्जनाओं को तोड़ती हैं। पेरिस और मिलान के प्रतिष्ठित फैशन शोज़ में लग्जरी ब्रांडों को प्रोमोट करती हैं। ये मुस्लिम मॉडल रैम्प पर बोल्ड हैं, और बोलने में बेबाक। अमीरा अल ज़ुहैर, औआतिफ सादी, अस्मा अल्तुर्क, अज़ा स्लीमीन, बेला हदीद, फरीदा खेलफा, गिगी हदीद, हबीबा एल-कोब्रोसी, हलीमा अदन, हाना बेन अब्देसलेम, हिंद साहली, इमान मोहम्मद अब्दुलमाजिद, इमान हम्माम, नोरा अट्टल, शाहद सलमान, शनीना शेख, सोनिया अम्मार, तलीदाह तामर, उगबाद आब्दी आज की तारीख में वैसे इस्लाम की तस्वीर रैंप के ज़रिये पेश कर रही हैं, जो खुले में सांस ले रहा है।
अमीरा अल ज़ुहैर एक सऊदी अरब की मॉडल हैं जो अपनी खूबसूरती और बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने पेरिस फैशन वीक और मिलान फैशन वीक के रनवे पर वॉक किया है, और बरबेरी, प्रादा से लेकर डोल्से एंड गब्बाना और ब्रुनेलो कुचिनेली जैसे विश्व प्रसिद्ध ब्रांड के साथ काम किया है।
मोरक्को की मॉडल औआतिफ सादी ने पेरिस फैशन वीक और न्यूयॉर्क फैशन वीक के रनवे पर वॉक किया है और गुच्ची, एडिडास, गैलरीज लाफायेट, बर्शका और एटनिया बार्सिलोना के अभियानों में शामिल रही हैं। अस्मा अल्तुर्क एक सऊदी मॉडल हैं जो एटलियर हेकायत, नफ़्सिका स्कोर्टी और मोजामाजका जैसे क्षेत्रीय डिजाइनरों की पसंदीदा हैं।
अज़ा स्लीमीन एक ट्यूनीशियाई मॉडल हैं, जिन्हें एज़ेडीन अलाया ने ढूंढा और प्रशिक्षित किया। स्लीमीन मानवतावादी भी हैं, और इंटरनेशनल फेडरेशन फॉर ह्यूमन राइट्स और ‘नो मोर प्लास्टिक’ कंपनी के लिए ब्रांड अम्बेसडर के रूप में काम करती हैं।
फैशन की दुनिया में फ़िलिस्तीनी-डच मॉडल बेला हदीद को शायद ही किसी परिचय की ज़रूरत है, लेकिन इतना कहना ही काफी है कि बेला हदीद दुनिया की सबसे बड़ी सुपरमॉडल में से एक है। हदीद फिलिस्तीनी अधिकारों की मुखर समर्थक भी हैं। ऐसे ही अल्जीरियाई मॉडल और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता फरीदा खेलफा फैशन उद्योग में एक किंवदंती हैं। वह अल्जीरिया की पहली मॉडल के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका कैरियर 1980 के दशक में शुरू हुआ, जब उन्होंने प्रसिद्ध फोटोग्राफर जीन-पॉल गौडे का ध्यान आकर्षित किया। फिलिस्तीनी-डच मॉडल गिगी हदीद ने विक्टोरिया सीक्रेट फैशन शो और दुनिया भर के प्रमुख फैशन वीक के रनवे की शोभा बढ़ाई है।
मिस्र की मॉडल हबीबा एल-कोब्रोसी ने मिस्र में माइकल सिन्को के शानदार फैशन शो की शुरुआत करते हुए एक शानदार ‘क्लियोपेट्रा’ ड्रेस पहनी थी। रनवे और कैंपेन में मॉडलिंग करने के अलावा, वह ताइक्वांडो ट्रेंड हैं, और 2023 में मिस्र की फिल्म, ‘मिस्टर एक्स’ में अभिनय कर चुकी हैं। सोमाली-अमेरिकी मॉडल हलीमा अदन ने इतिहास रच दिया जब वह मिस मिनेसोटा का खिताब जीतने वाली पहली हजीबी बनीं। ट्यूनीशियाई मॉडल हाना बेन अब्देसलेम लैंकोमे के अंतर्राष्ट्रीय अभियान में दिखाई देने वाली पहली अरब महिला थीं, और बाद में ब्यूटी ब्रांड की पहली मुस्लिम प्रवक्ता बनीं। मोरक्कन मॉडल हिंद साहली जितनी खूबसूरत हैं, उतनी ही फैशन उद्योग में मुसलमानों के बारे में रूढ़िवादिता को बदलने के लिए भी जुनूनी हैं। उन्होंने लोवे, केंज़ो, मार्क जैकब्स और अन्य प्रमुख ब्रांड के लिए कैट वॉक किया है।