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लोकतंत्र की संवैधानिकता को संबल देता जनादेश

06:34 AM Jun 11, 2024 IST
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डॉ. अश्विनी कुमार

सही मायनों में 2024 का जनादेश लोकतंत्र, गरिमा और न्याय के पक्ष में विपक्ष की नैतिक विजय है। चुनाव परिणाम केंद्रीकृत शक्ति के प्रति अविश्वास और बुनियादी संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति देशवासियों की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। चुनावी नतीजे स्वतंत्रता और न्याय को बरकरार रखने की हमारे संविधान निर्माताओं की शपथ व बुद्धिमत्ता को सलाम है। चुनावी परिणाम राष्ट्र की आत्मा की अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। यह जनादेश इतिहास के उस स्थायी सबक की पुष्टि करता है कि अपमानित और कमजोर लोगों की तीव्र पीड़ा को कठोर सरकारें भी लंबे समय तक कुचल नहीं सकतीं और सरकारों के झूठ को अंततः उजागर किया जा सकता है।
जनादेश का सबक है कि समय की जनभावना लोकतांत्रिक राजनीति को गढ़ती है। विपक्ष की आवाज ने एक बार फिर जनता की सामूहिक शक्ति को दर्शाया है। संघीय राजनीति में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की प्रासंगिकता और राष्ट्रीय राजनीति का पुनर्गठन भी जनादेश का अचूक संदेश है, जिसने देश की सबसे पुरानी पार्टी काँग्रेस मे गांधी परिवार के नेतृत्व को भी मान्यता दी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 2024 का जनादेश हमारी चुनावी प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता और भारतीय लोकतंत्र की अखंडता की पुष्टि करता है।
प्रधानमंत्री बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने बीजेपी की ओर से चुनाव को अपने कंधों पर उठाते हुए कठिन अभियान के दौरान उल्लेखनीय दृढ़ता दिखाई। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तीसरी बार उनका शपथ लेना भारत के समकालीन राजनैतिक इतिहास में एक असाधारण घटना है। चुनावी झटके के बावजूद, प्रधानमंत्री अपनी पार्टी को एक अखिल भारतीय राजनीतिक संगठन के रूप में स्थापित करने का दावा कर सकते हैं, क्योंकि दक्षिण भारतीय राज्यों में भाजपा ने अपने वोट शेयर में इजाफा किया है। इसलिये इस ऊर्जावान दौर में, विपक्ष को प्रधानमंत्री की राजनैतिक जीवनी को इतनी जल्द नकारने की गलती नहीं करनी चाहिए।
निश्चित रूप से, यह नतीजे प्रधानमंत्री के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। एक थकाने वाले और विभाजनकारी चुनाव अभियान के बाद राष्ट्र की आहत आत्मा को सद्भाव के मलहम की आवश्यकता है। अल्पसंख्यकों का अलगाव, असहज चुनावी संवाद, राजनीतिक उद्देश्यों के लिए कानूनी और न्यायिक प्रक्रियाओं का विकृतीकरण, देश भर में सत्ताधारी दलों द्वारा संवैधानिक संस्थानों और नौकरशाही का दुरुपयोग व सभी स्तरों पर व्याप्त भ्रष्टाचार एक कमजोर लोकतंत्र के निराशाजनक संकेत हैं। स्वाभाविक तौर पर शपथग्रहण के बाद प्रधानमंत्री की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह है कि वे जनादेश के प्रभाव को पहचानते हुए देश में संवैधानिक लोकतंत्र की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने के लिए कार्यशील हों। प्रधानमंत्री के सर्वोच्च पद के धारक के रूप में, देश के प्रथम सेवक को समस्त राष्ट्र के अहसास का प्रतिनिधित्व करना होगा। उन्हें अपने प्रभावी व्यक्तित्व द्वारा अपने राष्ट्रीय दृष्टिकोण को सामूहिक भाईचारे और सभी नागरिकों की गरिमा के प्रति प्रतिबद्धता के साथ जोड़ना होगा । उनसे अपेक्षा है कि वह जनादेश के संदेश को ध्यान में रखकर, उदार भाव रखते हुए अपने राजनीतिक विरोधियों के विचारों को भी मान्यता दें। उन्हें एक बहुलवादी समाज में समान नागरिकता के सिद्धांतों को अंजाम देना होगा।
सही मायनों में यह जनादेश राष्ट्रीय नवीनीकरण के लिए मेल-मिलाप की राजनीति पर आधारित एक सहयोगात्मक उद्यम का संकेत देता है। राष्ट्र के नेता के रूप में, इसके लिए प्रमुख जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की है। इस प्रयास में, उन्हें अनिवार्य रूप से विपक्ष के रचनात्मक सहयोग की जरूरत होगी, क्योंकि इस समय विपक्ष राष्ट्र के बड़े हिस्से की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही विपक्ष, हर सरकारी कार्रवाई के प्रति निरंतर निंदात्मक और आलोचनात्मक नहीं हो सकता। उसे जनादेश के परिणाम का सम्मान करना होगा ताकि उसकी सार्वजनिक विश्वसनीयता बनी रहे। विपक्ष को डॉ. अंबेडकर की उस बुद्धिमत्ता को भी ध्यान में रखना होगा, कि संवैधानिक लोकतंत्र में अराजकतावादी राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है।
2024 के जनादेश ने भारतीय लोकतंत्र और संवैधानिकता को संबल दिया है। इससे व्यापक स्वीकार्यता वाली नीतियों और शासन की अपेक्षा की जा सकती है। इससे हमारे युग की चुनौतीपूर्ण समस्याओं का समाधान होने के साथ राष्ट्र की एकजुटता बढ़ेगी। ऐसी व्यवस्था मे मनमाने ढंग से शक्ति के प्रयोग के माध्यम से नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर व्यापक हमलों की कोई गुंजाइश नहीं होगी। नई सरकार की कार्ययोजना के हिस्से के रूप में, प्रधानमंत्री को उन कठोर दंड कानूनों को निरस्त या संशोधित करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए, जिनका नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन में नियमित रूप से दुरुपयोग किया जाता है। उन्हें मानवीय कानूनों को अधिनियमित करना चाहिए, जिसमें बहुप्रतीक्षित व व्यापक कानून शामिल है, जिससे हिरासत में यातना को गैरकानूनी एवं दंडनीय ठहराया जा सके जिसको देश के सर्वोच्च न्यायालय ने, राष्ट्र की आत्मा पर एक घाव ठहराया है।
सबसे बढ़कर, इस कठिन क्षण में प्रधानमंत्री को इतिहास के इस सबक पर विचार करना होगा, कि राजनीतिक शक्ति एक विश्वास है जिसे इस शर्त पर धारण किया जाता है कि उसका प्रयोग न्यायपूर्ण होगा जिससे नागरिकों की नैतिक शक्ति बढ़े और वे अपनी स्वतंत्रता को स्थापित रख सकें। हम जानते हैं कि स्वतंत्रता मानवता की ‘अनिवार्य नियमावली’ है और मानवीय गरिमा लोगों की चेतना में संवरती है। अंततः मानवीय गरिमा ही मानवता के अस्तित्व की विशिष्टता को परिभाषित करती है।

लेखक क़ानून व न्याय मंत्री रहे हैं।

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