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नवाज के पीएम पद की दौड़ से हटने की तार्किकता

07:17 AM Feb 20, 2024 IST

के.एस. तोमर

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विश्व राजनीतिक पटल पर और विशेषकर पाकिस्तान के प्रबुद्ध वर्ग में यह बहस जोर पर है कि किन कारणों के चलते तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके वरिष्ठ नेता नवाज़ शरीफ ने इस बार स्वयं को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अलग कर छोटे भाई शहबाज शरीफ का नाम आगे किया जबकि सेना की वे पहली पसंद थे। माना जाता है कि सेना प्रमुख असीम मुनीर द्वारा सारा प्लान ही इस दृष्टि से गढ़ा गया था कि नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनाया जा सके।
विदेशी नीति विशेषज्ञों का मत है कि यह योजना उसी प्रकार थी जिस प्रकार पूर्व सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा ने इमरान खान को प्रधानमंत्री की गद्दी पर बिठाया था। हालांकि बाद में दोनों में मतभेद पैदा हो गए क्योंकि दोनों ही वर्चस्व चाहते थे। ऐसा हो गया था,जैसे नौकर ने मालिक के अधिकार को चुनौती दे दी हो और अब भी इसी प्रकार की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। नवाज शरीफ संभवत: इस स्थिति के लिए तैयार न थे क्योंकि उन्हें 2018 का तल्ख अनुभव था जब सेना द्वारा उन्हें पदच्युत किया गया था।
विशेषज्ञों का मानना है कि नवाज शरीफ ने अपने पत्ते कुशलता से खेलते हुए ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि सेना के पास शहबाज को प्रधानमंत्री बनाने के सिवा कोई चारा ही नहीं है। इससे जहां स्वयं को बाहर रखा वहीं यह भी सुनिश्चित कर दिया कि सत्ता की चाबी उनके ही परिवार के पास रहे। इस कड़ी का दूसरा महत्वपूर्ण परिणाम है, पाकिस्तान के सबसे महत्वपूर्ण सूबे पंजाब के मुख्यमंत्री का ताज मरियम शरीफ के सिर सजेगा। दरअसल सेना ने चक्रव्यूह ऐसा रचा है कि हर हाल में इमरान खान को इस दौड़ से बाहर रखा जाए और पूर्व प्रधानमंत्री करीब 150 मुकदमों का सामना कर रहे हैं। न्यायालयों द्वारा तीन मामलाें में उन्हें दोषी करार देते हुए लगभग 24 वर्ष की सजा भी सुना दी गयी है। इमरान खान ने सेना के विरुद्ध आवाज उठाई थी उसी कारण नवाज शरीफ को इंग्लैंड से वापस लाया गया। बता दें कि उच्चतम न्यायालय द्वारा पनामा पेपर्स में हुए भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद उन्हें 10 साल की सजा हुई थी और जुर्माना लगाया था। नवाज को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया था और वे इंग्लैंड चले गए थे।
जब नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बने तो 25 जून 2023 को संसद ने कानून पास कर दिया जिसके अन्तर्गत आजीवन प्रतिबंध को घटाकर 5 वर्ष कर दिया। इसका मकसद अपने बड़े भाई नवाज शरीफ के पाकिस्तान लौटने और राजनीति में भाग लेने का मार्ग प्रशस्त करना था। इन चुनावों में यह आरोप भी लगा कि भारी धांधली की गई ताकि नवाज शरीफ की पार्टी की जीत सुनिश्चित की जा सके लेकिन यह योजना असफल हो गई क्योंकि अधिकांश निर्दलीय विजयी सांसदों ने इमरान खान का समर्थन किया। जेल में होने के बावजूद इमरान खान की पार्टी को सर्वाधिक सीटों पर जीत मिली। नवाज शरीफ के दल को बहुमत नहीं मिला जिस कारण योजना सिरे नहीं चढ़ पायी और नतीजा यह कि नवाज़ शरीफ ने स्वयं को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अलग कर लिया। लेकिन नवाज शरीफ ने शहबाज़ को आगे किया जिन्हें अनुभव भी है और संभवत: उन्हें सहयोगियों के साथ परेशानी नहीं होगी। जाहिर है, नवाज शरीफ और सेना प्रमुख में समझौता है जिसके कारण सरकार चलाना और लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरना सरल होगा।
शहबाज शरीफ की नयी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से उसके द्वारा जारी किये ऋण की सख्त शर्तों को लागू करना होगा जिसके अन्तर्गत सरकार को कर्ज में डूबी अर्थव्यवस्था को स्थिर करना होगा। वहीं इस समय देश में कीमतें आसमान छू रही हैं । उधर हाल की बाढ़ ने देश को अरबों डॉलर का नुकसान पहुंचाया था और हजारों लोग मारे गए थे। अब ये नयी सरकार की जिम्मेदारी है कि जहां पुनर्वास का काम सुचारू चलाया जाए ।
हाल के चुनावों में धांधली के आरोपों को लेकर जहां अमेरिका और यूरोपीय देशों ने आवाज उठाते हुए जांच की मांग की है वहीं चीन इस मामले पर चुप है। यद्यपि चीन ने कई मौकों पर पाकिस्तान को वित्तीय संकट से उबारा लेकिन अब हालात काबू से बाहर प्रतीत होते हैं। चीन की नीति के कारण पाकिस्तान कर्ज के दलदल में फंस गया है और इस समय पाकिस्तान में चीन का निवेश 65 अरब डॉलर से अधिक जा पहुंचा है। चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की शर्तों के अनुसार ग्वादर बंदरगाह पर नियंत्रण कर लिया है। अमेरिका और भारत दोनों ने ही चीन-पाकिस्तान के इस समझौते का विरोध किया है। वहीं शरीफ सरकार को सावधानी बरतनी होगी ताकि पाकिस्तान चीन के कर्ज के बोझ के नीचे न दब जाए। उधर चीन अपने वित्तीय हितों की रक्षा के लिए शरीफ सरकार से अच्छे संबंध बनाए रखना चाहेगा। वहीं अमेरिका इमरान खान के विरुद्ध है जबकि अमेरिका और पाकिस्तानी सेना में सदा ही अच्छे संबंध रहे हैं । अमेरिका के लिए नयी सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते बनाना आसान होगा।
भारत की अपेक्षा रहेगी कि नवाज शरीफ नयी सरकार पर दबाव बनायें और भारत-पाकिस्तान के मध्य बातचीत दोबारा शुरू हो सके। विश्लेषकों का मानना है कि आपसी अंतर्विरोध की संभावना के चलते पाक की नयी गठबंधन सरकार कमजोर होगी जिस कारण अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय स्तर पर चुनौतियों से निपट पाना सरल न होगा।

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लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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