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दीपों की सात्विक तरंगों में जीवन का उजाला

06:00 AM Oct 31, 2024 IST
दीपों की सात्विक तरंगों में जीवन का उजाला
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डॉ. पवन शर्मा
दीपोत्सव मनाने की परंपरा सनातन है। दीपावली का उल्लेख पुराणों में भी मिलता हैं जिसमें दीपों को सूर्य का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतीक के रूप माना जाता हैं। सूर्य का प्रकाश जीवनदाता है। जो ऊर्जा प्रदान करता है। जिसे प्रतीकात्मक रूप से दियों से प्रदर्शित किया जाता हैं। जब भी हम किसी देवता का पूजन करते हैं तो सामान्यतः दीपक जलाते हैं। सनातन संस्कृति में दीपक किसी भी पूजा का महत्त्वपूर्ण अंग है। हमारे मस्तिष्क में सामान्यतया घी अथवा तेल का दीपक जलाने की बात आती है और हम जलाते हैं। जब हम हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी-देवताओं की साधना अथवा सिद्धि के मार्ग पर चलते हैं तो दीपक का महत्व विशिष्ट हो जाता है। दीपक कैसा हो, उसमे कितनी बत्तियां हों, इसका भी एक विशेष महत्त्व है। उसमें जलने वाला तेल व घी किस-किस प्रकार का हो, इसका भी विशेष महत्व है।

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पूजा में दीपक जलाने के खास नियम

शास्त्रों के अनुसार आज भी पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा करने को महत्व दिया जाता है। सही पूजा सामग्री, मंत्रों का उच्चारण एवं रीति अनुसार पूजा में बैठना- हर प्रकार से पूजा को विधिपूर्वक बनाने की कोशिश की जाती है। पूजा में ध्यान देने योग्य बातों में से ही एक है दीपक जलाते समय नियमों का पालन करना। दीपक जलाने के बिना पूजा का आगे बढ़ना कठिन है। पूजा के दौरान और उसके बाद भी कई घंटों तक दीपक जलते रहना शुभ माना जाता है।

घी के दीये को प्राथमिकता

यह दीपक रोशनी प्रदान करता है। रोशनी से संबंधित बृहदारण्यक उपनिषद् (1.3.28) में एक पंक्ति उल्लेखनीय है– ‘असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमया। मृत्योर्मामृतं गमय। ॐ शान्ति:शान्ति:शान्ति:।’ अर्थ है अंधकार से उजाले की ओर प्रस्थान करना। हिन्दू धर्म शास्त्रों में दीपक जलाने के लिए घी का उपयोग करने को ही प्राथमिकता दी जाती है। जिसका एक कारण है घी का पवित्रता से संबंध। घी को बनाने के लिए ही गाय के दूध की आवश्यकता होती है। घी के अलावा तिलों के तेल से दीपक जलाया जाता है। किन्तु मोमबत्ती का इस्तेमाल ठीक नहीं माना जाता है।

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दीपक की लौ में सात्विक तरंगें

पूजा के समय घी का दीपक उपयोग करने का एक और आध्यात्मिक कारण यह माना गया है कि पूजन में पंचामृत का बहुत महत्व है और घी उन्हीं पंचामृत में से एक माना गया है। इसीलिए घी का दीपक जलाया जाता है। अग्नि पुराण के अनुसार, दीपक को केवल घी या फिर तिल का तेल से ही जलाना चाहिए। दोनों ही पदार्थों से दीपक को जलाने के बाद वातावरण में सात्विक तरंगों की उत्पत्ति होती है। यदि तेल के इस्तेमाल से दीपक जलाया गया है तो वह अपनी पवित्र तरंगों को अपने स्थान से कम से कम एक मीटर तक फैलाने में सफल होता है। किन्तु यदि घी के उपयोग से दीपक जल रहा हो तो उसकी पवित्रता लोक-लोकांतर तक पहुंचने में सक्षम होती है। कहते हैं कि यदि तिल का तेल के उपयोग से दीपक जलाया जाए तो उससे उत्पन्न होने वाली तरंगे दीपक के बुझने के आधे घंटे बाद तक वातावरण को पवित्र बनाए रखती हैं। लेकिन घी वाला दीपक बुझने के बाद भी करीब चार घंटे से भी ज्यादा समय तक अपनी सात्विक ऊर्जा को बनाए रखता है।

सकारात्मकता का प्रतीक

वास्तु शास्त्र विज्ञान के अनुसार घी से प्रज्वलित किया हुआ दीपक अनेक फायदों से पूरित होता है। ज्योतिष के अनुसार दीपक को सकारात्मकता का प्रतीक व दरिद्रता को दूर करने वाला माना जाता है। मान्यता है कि घर में घी का दीपक जलाने से वास्तुदोष भी दूर होते हैं। यह घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा को लाने की काम करता है। पूजा की थाली या आरती के समय एक साथ कई प्रकार के दीपक जलाये जा सकते हैं। संकल्प लेकर किये गये अनुष्ठान या साधना में अखण्ड ज्योति जलाने का प्रावधान है।

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