प्रकृति के नियम अटल और सत्य : मनीषी संत
मनीमाजरा (चंडीगढ,) 21 अक्तूबर( हप्र)
प्रकृति ने हमें अपने जीवन को शांतिपूर्ण तरीके से व्यतीत करने के लिए पृथ्वी के रूप में बहुत ही सुंदर निवास दिया लेकिन हम आज भी इसकी कद्र करना नहीं सीख पाए हैं। प्रकृति के नियम अटल और सत्य हैं।
अत: प्रकृति हमें सत्यता पूर्वक उसके अनुकूल चलने के लिए प्रेरित करती है। उसके नियमों के विरुद्ध चलने पर ही हम कष्ट भोगते हैं। ये शब्द मनीषी संत मुनि श्री विनय कुमार आलोक ने अणुव्रत भवन तुलसीसभागार में कहे। उन्होंने कहा कि सरल, सहज जीवन की राह है। मनीषी संत ने अंत में फरमाया कि व्यक्ति और समाज के जीवन का महत्व साधारण नहीं बल्कि व्यापक और गहरा है। मनुष्य जब पैदा होता है तब न तो उसमें कोई मानवीय गुण होते हैं और न ही कोई सामाजिक गुण। औरों के सान्निध्य और संपर्क में रह कर ही वह इन गुणों को सीखता है। पहली बार बालक का परिचय अपने समाज में प्रचलित विभिन्न धारणाओं से होता है।
परिवार ही एकमात्र संगठन है जो उसे सुसंस्कारित बनाने की दिशा में सबसे पहले प्रवृत्त होता है और उसे यह बताना प्रारंभ करता है कि समाज में रहते हुए उसे किन आचरणों को करना है और किन आचरणों को नहीं।