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‘राजा सपेरा बनकर आता है, बीन बजाता है..सांप छोड़ कर चला जाता है’

07:19 AM Jan 01, 2025 IST
‘राजा सपेरा बनकर आता है  बीन बजाता है  सांप छोड़ कर चला जाता है’
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कुरुक्षेत्र, 31 दिसंबर (हप्र)
गांव ईसरगढ़ स्थित सत्यभूमि में देस हरियाणा की तरफ से कविता पाठ का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता देस हरियाणा के संपादक प्रो. सुभाष सैनी ने की और संचालन शोधार्थी योगेश शर्मा ने किया। कार्यक्रम में कवि जयपाल, कपिल भारद्वाज, कर्मचंद केसर, विनोद चैहान, बलदेव सिंह मेहरोक, दयाल चंद जास्ट, सौरभ ने अपनी कविताओं का पाठ किया। कविता पाठ के दौरान लोक इतिहासकार सुरेन्द्रपाल सिंह के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
प्रो. सुभाष सैनी ने समकालीन कविता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 2024 के समापन पर काव्य गोष्ठी में पढ़ी गई कविताएं अपने समय के साथ संवाद करने वाली हैं। कविताएं दायित्वबोध के साथ लिखी जाती हैं। कविता लिखने का मकसद केवल मनोरंजन नहीं होना चाहिए। कविताएं शब्दों के जादूगरी से आगे की चीज हैं। उन्होंने कहा कि मनोरंजन के बोझ में कविताएं कहीं पीछे नहीं छूट जानी चाहिए।
कविता पाठ करते हुए अंबाला से आए कवि जयपाल ने अपनी कविता राजा और सपेरा में कहा-एक समय था जब राजा भेष बदलकर निकलता था, प्रजा के दु:ख दर्द का पता करता था, लेकिन आज राजा सपेरा बनकर आता है, बीन बजाता है, शहर में सांप छोड़कर चला जाता है। कपिल भारद्वाज ने अपनी कविता में कहा-तुम नहीं हो तो जीवन एक षडयंत्र है, चारों तरफ मारामारी है, आपाधापी है, आधी नहीं सारी दुनिया पापी है। तुम नहीं हो तो एक सीरियल है जीवन।
कैथल से आए हरियाणवी शायर कर्मचंद केसर ने कहा- यैं जो सिर पै ताज सजाए बैठे सैं, थारे हक की रोटी खाए बैठे हैं। जात धर्म और ऊंच-नीच के दाने इब, बस्ती कान्हीं मुंह नै माए बैठे सैं। एक अन्य हरियाणवी गजल में उन्होंने कहा- इक डिक्के के दो नी करदा छोरा न्यूं, ऊं देखै से खाब निराले बड़े-बड़े। खेचल करकै बी जे रोटी नहीं मिलै, फेर तेरे के लागैं साले बड़े-बड़े।
कवि बलदेव सिंह मेहरोक ने कहा- हे सलमान तू चुप रह, और अपने होठों को बंद रख, तू सच मत बोल, तू मत बोल कि कलाकार आंतकवादी नहीं होते। विनोद चैहान ने दलित चेतना से लबरेज कविताएं सुनाकर खूब वाहवाही लूटी। कवि दयाल चंद जास्ट ने अपनी रचना के माध्यम से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम के संयोजक योगेश शर्मा ने धूमिल की कविता सुनाई और सभी साहित्यकारों के एकजुट होने की जरूरत जताई। इस मौके पर साहित्यकार कमलेश चैधरी, अरुण कुमार कैहरबा, विकास साल्याण, नरेश सैनी, नरेश दहिया, मंजीत भावडिया, गौरव, मोहन, अभिषेक, देवाराम, विशाल, बिंदर सहित प्रदेशभर के अनेक साहित्यकार मौजूद रहे।

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