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नजीर का न्याय

07:50 AM Apr 10, 2024 IST
नजीर का न्याय
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दशकों से निरंतर बहस का विषय रहा है कि हमारी प्राथमिकता विकास हो या पर्यावरण। जिन समाजों को विकास के चलते विस्थापन झेलना पड़ता है, वे विकास को विनाश की संज्ञा देते रहे हैं। आदिवासी क्षेत्रों व पर्वतीय इलाको में बांध व अन्य बड़ी विकास परियोजनाओं के अस्तित्व में आने पर विरोध के सुर गाहे-बगाहे उभरते रहे हैं। ऐसे में न्यायिक फैसले सरकारों की मनमानी पर अंकुश लगाने का काम करते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का एक ऐसा निर्णय आया है जिसे विकास तथा पर्यावरण संरक्षण व पारिस्थितिकीय संतुलन की दृष्टि से नजीर का फैसला कहा जा रहा है। यह फैसला एक सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट और दुर्लभ प्रजाति के पक्षी सोन चिड़िया को लेकर है। दरअसल, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड यानी सोन चिड़िया के अस्तित्व के लिये राजस्थान और गुजरात के इलाके में घातक माने जा रहे सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट की ट्रांसमिशन लाइनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा अनुकरणीय फैसला दिया है कि जो आने वाली पढ़ियों के लिये मार्गदर्शक साबित हो सकता है। जो न्यायिक दृष्टि में भी बदलाव का पर्याय है। दरअसल, अब तक अधिकांश अदालत के फैसले पर्यावरण के पक्ष में या फिर विकास के पक्ष में जाते रहे हैं। लेकिन अदालत ने यह बताने का प्रयास किया है कि मनुष्य के लिये विकास जरूरी है तो पारिस्थितिकीय संतुलन भी जरूरी है। अदालत के फैसले के आलोक में मौजूदा ग्लोबल वार्मिंग संकट और उसके दूरगामी प्रभाव भी रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालत ने जलवायु परिवर्तन तथा पारिस्थितिकीय असंतुलन को देश के संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों की दृष्टि से जोड़कर देखा है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कोर्ट ने अपना पुराना फैसला भी इस संकट को दूर करने के लिये बदला है। दरअसल, गुजरात व राजस्थान के करीब नब्बे हजार वर्ग किमी के क्षेत्र में विस्तृत ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइन प्रोजेक्ट दुर्लभ पक्षी सोन चिड़िया के अस्तित्व पर खतरा बन रहा था। जिस पर शीर्ष अदालत ने एक फैसले में रोक लगा दी थी।
दरअसल,अदालत को तब बताया गया था कि विद्युत तारों के संपर्क में आने से इन पक्षियों की बड़ी संख्या में मृत्यु हो रही है। ये बिजली की तारें उस क्षेत्र में लगायी गई हैं जहां इन पक्षियों का आना-जाना होता है,जिनसे ये पक्षी बड़ी संख्या में टकराकर दम तोड़ देते हैं। अदालत के फैसले के चलते सौर ऊर्जा की महत्वाकांक्षी योजना पर प्रतिकूल असर पड़ रहा था। दरअसल, यह इलाका सौर ऊर्जा उत्पादन की दृष्टि से खासा उर्वरा माना जाता है। ऐसे में अदालत ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया कि जहां एक ओर सौर ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य भी पूरे हों, वहीं पक्षियों के अधिवास व जीवन की भी रक्षा हो सके। बीच का रास्ता निकालते हुए अदालत ने फैसला दिया कि 77 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में बिजली की ट्रांसमिशन लाइन प्रभावी रहेंगी। वहीं दूसरी ओर तेरह हजार वर्ग किमी के क्षेत्र को इन दुर्लभ पक्षियों के अधिवास के रूप में सुरक्षित करने को कहा है। अदालत का मानना था कि सरकारें ग्लोबल वार्मिंग के संकट के चलते अपनी रीति-नीतियों में जो परिवर्तन कर रही हैं, उन्हें संविधान के मूल अधिकारों से जोड़ने की जरूरत है। ऐसा इसलिये जरूरी है कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से आम लोगों का जीवन गहरे तक प्रभावित हो रहा है। वहीं जीवन यापन के लिये पर्याप्त ऊर्जा की लोगों के लिये उपलब्धता सुनिश्चित करना भी सराकारों का प्राथमिक दायित्व है। यह मामला लोगों के जीवन के अधिकार से जुड़ा भी है। आने वाले सालों में देश की ऊर्जा जरूरतों में व्यापक वृद्धि का आकलन किया जा रहा है। जिसे वैकल्पिक ऊर्जा के जरिये ही पूरा किया जा सकता है। जिसमें सौर ऊर्जा की बड़ी भूमिका होगी। जो देश के पर्यावरण प्रदूषण को घटाने में भी सहायक हो सकती है। साथ ही भारत को वैश्विक संस्थाओं को जीवाश्म ईंधन का उपभोग घटाने के वायदे को भी पूरा करना है। इसके लिये जरूरी है कि हम स्वच्छ ऊर्जा के अधिक से अधिक उत्पादन को अपनी प्राथमिकता बनाएं। यह हमारे नीति-नियंताओं के लिये भी मार्गदर्शक फैसला है कि हम अपने पारिस्थितिकीय तंत्र को संरक्षित करते हुए विकास की राह पर आगे बढ़ें।

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