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राजनीति की जंत्री, कुछ दिनों के मुख्यमंत्री

07:07 AM Sep 21, 2024 IST
राजनीति की जंत्री  कुछ दिनों के मुख्यमंत्री
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सहीराम

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आतिशी दिल्ली की नयी मुख्यमंत्री बन गयी हैं जी। लेकिन वे साल, दो साल या पांच साल के लिए नहीं बनी हैं। वे तो कुछ दिनों के लिए ही बनी हैं। कुछ दिनों का मेहमान या चार दिन की चांदनी कोई बहुत अच्छे मुहावरे नहीं हैं, पर क्या करें उनका मुख्यमंत्री का कार्यकाल कुछ इसी तरह का रहेगा। अच्छी बात यह है कि वे घोषित रूप से कुछ दिनों की मुख्यमंत्री होंगी। चंपई चाचा की तरह अघोषित रूप से कुछ दिनों की मुख्यमंत्री नहीं होंगी। आजकल यह घोषित-अघोषित वाला बड़ा लफड़ा हो गया है जी। यह इमरजेंसी से शुरू हुआ था कि इंदिराजी वाली इमरजेंसी तो घोषित थी, लेकिन अब वाली अघोषित है।
अब मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल भी घोषित-अघोषित होने लगा। वैसे घोषित हो तो समस्या नहीं होती, कन्फ्यूजन पैदा नहीं होता। अघोषित से कन्फ्यूजन पैदा होता है। अब जैसे अघोषित इमरजेंसी को ही ले लो। कुछ हैं, जो इसे इमरजेंसी मानने के लिए ही तैयार नहीं हैं, जबकि दूसरे कुछ हैं, जो इसे पहले वाली से खतरनाक घोषित करने पर आमादा हैं। चंपई चाचा को भी अगर घोषित रूप से यह बता दिया जाता कि चाचा आप तभी तक मुख्यमंत्री हैं, जब तक कि हम जेल से वापस नहीं आ जाते, तो शायद वे इतने आहत नहीं होते और पार्टी छोड़कर नहीं जाते।
खैरजी, जीतनराम मांझी तो न घोषित थे और न अघोषित थे। नीतीशजी ने जब उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था तो ऐसा कोई भी संकेत नहीं दिया था। नीतीशजी न जेल गए थे, न जमानत पर थे। फिर भी उन्होंने मांझीजी को मुख्यमंत्री बना दिया था। मांझीजी इससे इतने उत्साहित हुए कि अपने को स्थायी मुख्यमंत्री मानने लगे और उसी तरह से बोलने भी लगे। खैर जी, लोग इस मामले में लालूजी की इसलिए तारीफ कर रहे हैं कि अच्छा किया कि उन्होंने किसी मांझी या चंपई चाचा को मुख्यमंत्री नहीं बनाया, वरना हटाने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ती। कोई रूठता, कोई बुरा-भला कहता और अंत में अपना अलग चूल्हा धर लेता। लालूजी इस मामले में राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं। वे जनता की नब्ज को पहचानते हैं, और नेताओं के मनोविज्ञान को भी समझते हैं।
अरविंद केजरीवालजी भी राजनीति के इतने ही धुरंधर खिलाड़ी बन चुके हैं। लेकिन उन्होंने उस तरह से लालूजी का अनुसरण नहीं किया कि किसी पर भरोसा न कर अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बना देते। लेकिन केजरीवाल ने मांझीजी तथा चंपई चाचा के प्रकरणों से सीख लेते हुए पहले ही यह घोषित कर दिया कि नयी मुख्यमंत्री तभी तक मुख्यमंत्री रहेंगी, जब तक कि मैं चुनकर वापस नहीं आ जाता और फिर से मुख्यमंत्री नहीं बन जाता। इससे बनने वाले और बनाने वाले किसी को भी कन्फ्यूजन नहीं होता।

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