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विदेशी ताकतों का हस्तक्षेप गंभीर चिंता का विषय

06:40 AM Aug 25, 2023 IST
केएस तोमर

मणिपुर बीते तीन माह से गृहयुद्ध जैसी स्थिति से जूझ रहा है। यह स्थिति तब और भयावह हो सकती है, यदि पूर्व सेनाध्यक्ष एमएम नरवाणे के इस बयान पर ध्यान दिया जाए कि विभिन्न आतंकी गुटों को ‘विदेशी ताकतें’ सहायता प्रदान कर रही हैं जिस कारण मणिपुर हिंसा बढ़ी है।
मणिपुर और म्यांमार की 400 किलोमीटर की साझी सीमा है और म्यांमार में इस समय राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है। इसका फायदा उठाकर चीन के अलगाववादी गुटों को हथियार और धन उपलब्ध करवाने के आरोप हैं। दरअसल कुछ गुट म्यांमार से ही अपनी गतिविधियां चलाते हैं। इतिहास गवाह है कि चीन पहले भी आतंकी संगठनों को हथियार मुहैया करवाता रहा है। विशेषज्ञ एकमत हैं कि इस विस्फोटक स्थिति से निपटने के लिए केंद्र हस्तक्षेप करे।
अब मणिपुर में विदेशी हस्तक्षेप की खबर के बीच केंद्र का हस्तक्षेप अपरिहार्य है। मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया ने भी सीमा पार से शरारती तत्वों की घुसपैठ पर चिन्ता व्यक्त की है। विशेषज्ञ मानते हैं कि पूर्व सेनाध्यक्ष के पास अवश्य ही कोई ठोस जानकारी है जिसके आधार पर उन्होंने अलगाववादी गुटों को चीन से मिल रही सहायता का आरोप लगाया है। यह मदद म्यांमार में सक्रिय आतंकी गुट के माध्यम से मिल रही है क्योंकि चीन मणिपुर, अरुणाचल जैसे शान्त राज्यों में अपने हित तलाशने के लिये अस्थिरता पैदा करना चाहेगा।
म्यांमार के सर्वोच्च सैन्य जनरल हलिंग और अन्य उच्च सैन्य अधिकारियों ने भी आरोप लगाए हैं कि चीन म्यांमार के अराकान आर्मी और अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी जैसे आतंकी संगठनों को सहायता प्रदान कर रहा है, जो चीन की सीमा के साथ लगते पश्चिम क्षेत्र में सक्रिय हैं। सैन्य अधिकारियों ने आरोप लगाए हैं कि चीन निर्मित शस्त्र 2019 में सेना पर किए हमले में प्रयोग किए गए थे और सेना ने इन अवैध हथियारों का बड़ा जखीरा पकड़ा था। जिसकी कीमत करीब 90 हजार अमेरिकी डॉलर के बीच लगाई गई थी। ये हथियार चार वर्ष पूर्व प्रतिबंधित तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी के लड़ाकों से पकड़े गए थे और इससे साफ हो गया था कि चीन आतंकी संगठनों को मदद पहुंचा रहा है।
अनुमान है कि चीन म्यांमार के सीमांत क्षेत्र का लाभ उठाकर उन आतंकी संगठनों की भरपूर मदद करेगा, जिन पर हाल के दिनों में बर्मा की सैनिक सरकार ने दबाव बढ़ाया है। क्योंकि इस समय विश्व का ध्यान रूस व यूक्रेन युद्ध पर केंद्रित है जिसका लाभ उठाकर म्यांमार के सैनिक शासक अंाग सांग सू की के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक ताकतों को कुचलने के लिए बर्बरता दिखा रहे हैं। भारत तटस्थ है जिसके कारण सेना व आमजन में संघर्ष निरन्तर चल रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि म्यांमार के सैन्य शासक सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं हैं और इस कारण मणिपुर के अलगाववादी गुटों को उनके सीमान्त क्षेत्रों से मिल रही सैन्य सहायता को अनदेखा कर रहे हैं।
इस वर्ष के अंत तक राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव हैं और भाजपा के लिए अत्यंत अहम है क्योंकि पार्टी 2024 में सत्ता पर कब्जा बरकरार रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इस कारण मणिपुर में शांति बहाल करना पार्टी के लिए जरूरी है क्योंकि यहां डबल इंजन की सरकार है। यही मुद्दा आगामी विधानसभा चुनावों में भी अहम होगा। यदि केन्द्र विपक्ष से यह मुद्दा छीनना चाहता है तो मणिपुर में शांति बहाल करनी होगी।
मणिपुर के बिगड़े हालात अब केन्द्र की एनडीए सरकार और नवगठित विपक्षी गठबंधन में सीधे टकराव का मुद्दा बन गया है। गठबंधन ने हाल ही में 21 सांसदों का दल मणिपुर के हिंसाग्रस्त हालात का जायजा लेने के लिए भेजा था। विपक्ष ने प्रधानमंत्री से जवाब को लेकर संसद में गतिरोध बनाए रखा। प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाया। उन्होंने कांग्रेस शासित राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिलाओं पर हिंसा रोकने की मांग उठा दी। खेदजनक है कि जहां राजनीतिक दल अपने फायदे की सोच रहे हैं वहीं मणिपुर में हो रही निरन्तर हिंसा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक है।
आम भारतीय की इस आशा को झुठलाया नहीं जा सकता है कि मणिपुर में जल्द हालात सामान्य हों। जानकारों का सुझाव है कि केन्द्र सरकार प्राथमिकता के आधार पर 163 किलोमीटर लम्बी भारत-म्यांमार सीमा पर तुरंत बाड़ लगाए ताकि आतंकवादियों के आने-जाने पर अंकुश लग सके। वहीं आतंकी इस बाड़ का विरोध कर रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि आम मणिपुर के नागरिक शांति के पक्षधर हैं क्योंकि हिंसा के कारण इन समुदायों का सामाजिक और आर्थिक भाईचारा छिन्न-भिन्न हो गया है। समय की मांग है कि सत्तापक्ष और विपक्ष अपने तुच्छ राजनीतिक लक्ष्य से ऊपर उठकर देश हित के लिए इस समस्या के समाधान के लिए एकजुट हों।

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लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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