ट्रंप के नगीने विवेक रामास्वामी के मंसूबे
अरुण नैथानी
वैसे तो यह ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ जैसी हकीकत है। फिर भी हम खुश हो सकते हैं कि केरल से गए एक भारतवंशी की दूसरी पीढ़ी के एक शख्स को, अमेरिका में बड़े बदलावों की जिम्मेदारी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दी है। उन्हें दुनिया में क्रांतिकारी औद्योगिक बदलावों के लिये चर्चित स्पेसएक्स,एक्स और टेस्ला के मालिक एलन मस्क के समकक्ष यह जिम्मेदारी दी गई है। वही एलन मस्क जो चुनाव के अंतिम चरण में हर रोज एक लाख डॉलर ट्रंप के पक्ष में हवा बनाने के लिये खर्च कर रहे थे। सरकार गठन से पहले विवेक रामास्वामी को मस्क के साथ डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएन्सी यानी डीओजीई का मुखिया बनाया है। निश्चित रूप से यह महत्वपूर्ण जगह इस भारतवंशी विवेक रामास्वामी ने कड़ी मेहनत और अपनी योग्यता के आधार पर बनायी है। लेकिन इस खुशी के साथ एक विडंबना यह भी है कि वे प्रवासियों के अमेरिका में आने के खिलाफ हैं। विवेक उस एच-1बी वीजा प्रोग्राम को खत्म करना चाहते हैं, जिसके बूते तमाम भारतीय प्रतिभाएं अपनी योग्यता से अमेरिका को सारी दुनिया में महका रही हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने रामास्वामी की नियुक्ति की घोषणा करते हुए उन्हें देशभक्त अमेरिकी की संज्ञा दी। हकीकत में वे कट्टर अमेरिकी राष्ट्रवादी हैं। जिसके लिये उन्हें भारत का नुकसान करने में कोई परहेज नहीं होगा। यही वजह है कि इस बड़ी भूमिका मिलने के बाद उन्होंने तत्काल टिप्पणी भी की, कि हम नरमी से पेश नहीं आने वाले। वे ट्रंप की मंशा को आक्रामकता के साथ लागू करने के लिये प्रतिबद्ध हैं। दरअसल, डीओजीई की भूमिका उन विभागों को खत्म करने या उनमें आमूल-चूल बदलाव करने की है, जो समय के साथ अप्रासंगिक हो चुके हैं। विडंबना यह है कि इन विभागों में शिक्षा के साथ-साथ एफबीआई भी शामिल है। रिपब्लिकन में यह धारणा बन चुकी है कि विगत पांच सालों में एफबीआई डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ काम करती रही है। रिपब्लिकनों का पांचवां हिस्सा भी ऐसा ही मानता है। ऐसी ही कई सरकारी विभागों तथा एजेंसियों को खत्म करने की दलील रामास्वामी देते रहे हैं। जिसका लक्ष्य है नौकरशाही के अनावश्यक खर्चों पर रोक लगाकर अर्थव्यवस्था को संबल देना । साथ ही वे कई अन्य संघीय विभागों को भी मौजूदा समय में अनुपयोगी मानते हैं। वे परमाणु नियामक, घरेलू राजस्व सेवा, शिक्षा विभाग व एफबीआई को बंद करने की वकालत करते रहे हैं।
निस्संदेह, अरबपति रामास्वामी की उपलब्धियां चौंकाने वाली हैं। सात अरब डॉलर की बायोटेक कंपनी रोयवेंट साइंसेज के संस्थापक रामास्वामी ने बायो टेक्नॉलाजी के जरिये अरबों रुपये कमाये। उनका परिवार कभी केरल से अमेरिका गया था। उनके इंजीनियर पिता वी गणपति रामास्वामी ने नेशनल इंस्टीट्यूट, कालीकट से इंजीनियरिंग में स्नातक डिग्री हासिल की थी। पिता ने अमेरिका में इंजीनियर के तौर पर और मां ने मनोचिकित्सक के तौर पर कार्य किया। विवेक का जन्म केरल मूल के भारतीय माता-पिता के घर ओहायो में हुआ। वे ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में सर्जन और असिस्टेंट प्रोफेसर पत्नी अपूर्वा व दो बेटों के साथ कोलंबस में रहते हैं।
रामास्वामी के व्यक्तित्व के कई आयाम हैं। वे राजनीति में आने से पहले बहुचर्चित पुस्तकों के लेखक भी रहे। वे अपने को प्रबल अमेरिकी राष्ट्रवादी बताते हैं और अपने सपने पूरे करने के लिये एक सांस्कृतिक आंदोलन की जरूरत भी बताते हैं। जिसके लिये वे ‘सेव अमेरिका’ अभियान की अगुवाई करते हैं जो डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी नारे से मेल भी खाता है। पहले रामास्वामी ने राजनीति में सीधी एंट्री चाही, लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली। वे बाकायदा रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद की रेस में कूदे, लेकिन शुरुआती नाकामी के बाद अपना इरादा बदल दिया।
दरअसल, रामास्वामी अपने जिस एजेंडे को लेकर सुर्खियों में रहते हैं, वो कहीं न कहीं डोनाल्ड ट्रंप की सोच के करीब भी है। मसलन वे नहीं चाहते कि अमेरिका रूस-यूक्रेन संघर्ष को लंबा खींचे। उनका मानना है कि इससे रूस और चीन करीब आकर अमेरिका के लिये बड़ी चुनौती बन सकते हैं। वे रूस के प्रति लचीला रुख अपनाना चाहते हैं। उनका मकसद है कि यह युद्ध समाप्त हो और युद्ध के बाद की भौगोलिक स्थिति को यथास्थिति के रूप में स्वीकार कर लिया जाए। यानी अपने नियंत्रण वाले इलाकों में दोनों पक्षों को मान्यता दे दी जाए।
इसके अलावा रामास्वामी अमेरिकी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कई बदलावकारी कदम उठाने के पक्षधर हैं। वे कई मंचों से कह चुके हैं कि मतदाता की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर पच्चीस वर्ष कर दी जाए। साथ ही आपातकाल में, राष्ट्रीय सेवा की जरूरतों तथा सेना में छह महीने की सेवा देने वालों को ही 18 साल की उम्र में वोट देने का अधिकार मिले। हालांकि, उनका यह अतिराष्ट्रवादी एजेंडा संविधान बदलाव की लंबी प्रक्रिया के बाद ही संभव है, क्योंकि इसके लिये कांग्रेस में दो-तिहाई बहुमत से ही संविधान संशोधन संभव है।
एक महत्वपूर्ण मुद्दा जिसको लेकर वे लगातार आग्रह करते हैं, वह सोशल मीडिया से बच्चों को दूर रखना। वे इसे लत लगाने वाला नशा बताते हैं। वे मानते हैं कि किशोरों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। वे चुनाव अभियान के दौरान बच्चों के सोशल मीडिया प्रयोग पर रोक लगाने की मांग लगातार करते रहे। इसे वे देश के सेहत के लिये अपरिहार्य मानते हैं। बहरहाल, आगामी वर्षों में अमेरिकी शासन-प्रशासन में विवेक रामास्वामी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं।