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आज भी पाकिस्तान में मौजूद है 1971 में बनी भारतीय पोस्ट!

07:40 AM Aug 15, 2023 IST
आज भी पाकिस्तान में मौजूद है 1971 में बनी भारतीय पोस्ट
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ललित शर्मा

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चारों ओर से गोलियों की आवाजें आ रही थी। मौत मानो सर पर मंडरा रही थी, लेकिन सभी सैनिकों का जोश और जज्ब ऐसा था कि मानो मौत भी इनके सामने घुटने टेक दे। दिल और दिमाग पर एक ही बात हावी थी, ‘पाकिस्तान को हराना है।’ जीत के इसी जज्बे में पाकिस्तान जाकर पोस्ट बना ली। धूम पोस्ट, जो आज भी जस की तस है। ऐसे ही अनेक किस्से सुनाते हुए सूबेदार मेजर (ऑनरेरी कैप्टन) केहर सिंह वर्ष 1971 की लड़ाई के बारे में बताते हैं। उस पार जाकर पोस्ट बनाने की घटना को याद करते हुए सूबेदार मेजर केहर सिंह कहते हैं कि इस 71 की लड़ाई में उन्होंने विजय पताका फराया। उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान के गांवों में कई जगहों पर अपनी पोस्ट भी बनाई, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने के लिए अधिकारियों के निर्देश नहीं मिले अन्यथा वे पाकिस्तान के कुछ हिस्से पर और भी कब्जा कर सकते थे। उन्होंने कई स्थानों पर रुककर काफी इंतजार किया कि उन्हें आदेश मिले और वे आगे बढ़ें और पाकिस्तान के कुछ हिस्से पर और कब्जा कर लें।
कैथल जिले के गुहना गांव के 71 वर्षीय केहर सिंह को आज भी वह मंजर याद है। उस वक्त को याद करते हुए उनके कानों में आज भी गोलियों की आवाज गूंजने लगती है। केहर सिंह जब नौवीं कक्षा में पढ़ते तो तभी फौज में भर्ती हो गए थे। फौज में रहते रहते ही उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की। केहर सिंह बताते हैं कि उन्हें अच्छी तरह से याद है कि वे फोर राजपूताना राइफल में सिपाही के पद पर तैनात रहते हुए उस वक्त उन्होंने अपनी ड्यूटी को बखूबी अंजाम दिया। उनकी पोस्टिंग उड़ी सेक्टर में थी। एक सप्ताह के लिए उनकी ड्यूटी बार्डर पर गश्त की थी। 16 दिसंबर, 1971 को उनके पास रात आठ बजे संदेश आता है कि वे गश्त छोड़कर अपने मोर्चें पर आ जाएं, लड़ाई शुरू हो चुकी है। उन्होंने कुछ दूरी तय की तो पाकिस्तान की ओर से बमबारी शुरू हो गई। उन्होंने बताया, ‘हमारी टीम के एक जवान सवाई राम शेखावत जख्मी हो गए। बमबारी के दौरान उका संपर्क भी टूट गया। वे कैप्टन कमांडर टटवादी के नेतृत्व में वायरलेंस, रेडियों टेलिफोन ठीक करने की ड्यूटी पर थे। साथियों से संपर्क जोड़ने के लिए उनकी ड्यूटी भी लाइन को ठीक करने की थी।’ उन्होंने बताया कि अपने जख्मी साथी को लेकर वे बड़ी मुश्किलों से मोर्चे पर पहुंचे। बमबारी के बीच वे लाइनें जोड़ते रहे ताकि आपस में किसी साथी से संपर्क न टूटे। केहर सिंह बताते थे कि उन्हें अंदाजा हो गया था कि बम कहां गिरेगा। आखिरकार सभी साथियों की मेहनत, जज्बा और बलिदान काम आया और 3 दिसंबर से शुरू हुई यह लड़ाई उनकी विजय के साथ 16 दिसंबर की रात को खत्म हुई।
उन्होंने बताया कि मेजर जगजीत सिंह की टीम में देशसेवा व जीत का जज्बा इस कदर सवार था कि वे लड़ते-लड़ते पाकिस्तान के गांव में घुस गए। वहां जाकर देखा कि पूरे गांव में मात्र सात-आठ महिलाएं ही थी। इनमें अधिकतर बुजुर्ग मलिाएं थीं। सैनिकों ने महिलाओं को पूरा सम्मान दिया। पाकिस्तान के लोग डर के मारे गांव छोड़कर भाग चुके थे। मेजर जगजीत सिंह की टीम ने वहां अपनी पोस्ट बनाई। इसके आगे भी वे पाकिस्तान जाना चाहते थे, लेकिन उन्हें उच्च अधिकारियों के आदेश नहीं मिले।

प्रशंसा पत्र भी मिला

उस वक्त नायब सूबेदार केहर सिंह को लेफ्टनेंट जनरल अफसर कमांडिंग इन चीफ द्वारा 1991-192 उग्रवाद के दौरान हुए दंगों के बाद एक प्रशंसा पत्र भी दिया गया। उनकी सेवा, सार्थक कर्त्तव्य, निष्ठा एवं कार्य की दक्षता को लेकर उन्हें यह सम्मान मिला। उन्हें यह सम्मान इसलिए भी दिया गया कि उन्होंने और लोगों के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया।

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उस पार से उठाकर लाए सैनिकों के शव

केहर सिंह कहते हैं कि उन्हें बड़े अच्छे से याद है कि मेजर बनर्जी के नेतृत्व में वे गोली बारी के बीच पाकिस्तान में गए और करीब 10-11 सैनिकों के शव उठाकर अपनी सीमा में लेकर आए। यह बात 13-14 दिसंबर की है जब दूसरी गार्ड के सैनिकों के शव लेकर सेक्टर कमांडर जनरल वर्मा के नेतृत्व में वह सीमा पर पहुंचे।

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