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चुनावी वेला में कच्चाथिवु के किंतु-परंतु

07:54 AM Apr 06, 2024 IST
चुनावी वेला में कच्चाथिवु के किंतु परंतु
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पुष्परंजन
रामेश्वरम से कच्चाथिवु द्वीप की दूरी मात्र 25.9 किलोमीटर है। श्रीलंका के बहुचर्चित ज़ाफना ज़िले का हिस्सा है यह द्वीप। 1.6 किलोमीटर लंबे और 300 मीटर चौड़े इस द्वीप पर दस साल बाद अचानक से प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान गया है, वो भी सूचना के अधिकार की वजह से। तमिलनाडु के बीजेपी प्रेसिडेंट के. अन्नामलाई ने आरटीआई के ज़रिये यह जानकारी नहीं ली होती, तो क्या ‘द्वीपहरण’ का यह सनसनीखेज़ मामला दबा रह जाता? डीएमके ने जब केंद्र पर दोषारोपण शुरू किया, जवाब में विदेशमंत्री एस. जयशंकर बोले, ‘मैंने मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन को 21 बार कच्चाथिवु द्वीप के बारे में जानकारी दी थी।’ मगर, सवाल यह है कि पीएम मोदी को यह जानकारी आरटीआई से मिलती है, संबंधित मंत्रालय से क्यों नहीं मिली? इस प्रश्न का बेहतर उत्तर विदेशमंत्री एस. जयशंकर ही दे सकते हैं।
कच्चाथिवु पर विवाद का नवीनतम दौर 31 मार्च, 2024 को प्रधानमंत्री मोदी के एक ट्वीट के साथ शुरू हुआ, जिसमें तमिलनाडु के भाजपा अध्यक्ष को मिली आरटीआई रिपोर्ट के हवाले से दावा किया गया था कि कांग्रेस पार्टी ने कच्चाथिवु द्वीप को जून, 1974 में ‘बेवकूफी से श्रीलंका को दे दिया।’ इसके प्रकारांतर पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, ‘आंखें खोलने वाली और चौंका देने वाली! नए तथ्यों से पता चलता है कि कैसे कांग्रेस ने बेरहमी से कच्चाथिवु द्वीप को छोड़ दिया। इससे हर भारतीय नाराज है।’
सबसे दिलचस्प इस राजनीतिक युद्ध में तथ्यों का छिपाना और उसे तोड़-मरोड़ कर पेश करना भी रहा है। अशोक के. कंठ 2009 से 2013 के बीच कोलंबो में भारत के उच्चायुक्त तैनात थे। उनका मानना है कि भारत ने जितना श्रीलंका को दिया, उससे कहीं अधिक बड़ा और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाक़ा 1976 में हासिल कर लिया था।
23 मार्च, 1976 को भारत-श्रीलंका समझौते ने वाड्ज बैंक को भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र के हिस्से के रूप में मान्यता दी, जिससे भारत को वहां के विपुल प्राकृतिक संसाधनों पर सार्वभौम अधिकार मिल गया था। अब सोचा जा सकता है कि यह डील मूर्खतापूर्ण थी, या कि दूरगामी रणनीतिक समझदारी वाली। भारत ने 2024 की शुरुआत में ही वाड्ज बैंक इलाके में तेल की खोज के वास्ते टेंडर निकाला था, उस वजह से श्रीलंका ने स्वयं अपने मछुआरों को वहां जाने पर रोक लगा दी।
दरअसल, बीजेपी के लक्ष्य में तमिलनाडु का मछुआरा वोट बैंक है, उन्हें अपने आईने में उतारने को लेकर यह सारी कहानी बुनी गई है। गुजरात के बाद तमिलनाडु वो राज्य है, जहां समुद्री तटरेखा 1076 किलोमीटर लंबी है। तमिलनाडु के 38 में से 15 ज़िले तटीय हैं, जो पुदूचेरी समेत 40 लोकसभा सीटों में से आधे को प्रभावित करते हैं। मछुआरा समुदाय आये दिन श्रीलंकाई तटरक्षकों के हत्थे चढ़ता है। इनकी गिरफ्तारियां बीच समंदर होती हैं। इनके बोट जब्त होते हैं। कुछ हफ्तों बाद ये छूटते हैं, लेकिन इस बीच जमकर राजनीति होती है। तमिलनाडु फिशिंग रेगुलेशन एक्ट-1983 के अनुसार, ‘राज्य के मछुआरे केवल तीन नाॅटिकल माइल्स तक जाकर मछली का शिकार कर सकते हैं।’ यों अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा नौ नाॅटिकल माइल्स तक है, मगर बाज़ दफ़ा मछुआरे उसे भी पार कर जाते हैं, परिणामस्वरूप वो पकड़े जाते हैं, फिर एक बड़ा इश्यू बनता है।
जून, 2011 में, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के नेतृत्व वाली सरकार ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर 1974 और 1976 के समझौतों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी। हालांकि, केंद्र सरकार ने जयललिता के तर्कों पर आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया था, ‘भारत से संबंधित कोई भी क्षेत्र नहीं दिया गया था, न ही संप्रभुता छोड़ी गई थी, क्योंकि इसका कभी सीमांकन नहीं किया गया था।’ दोनों समझौतों की वैधता की पुष्टि अगस्त, 2014 में भारतीय अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने की थी। उन्होंने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा के नेतृत्व वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ से कहा था, ‘यदि आप कच्चाथिवु की वापसी चाहते हैं, तो आपको इसे पाने के लिए युद्ध में जाना होगा।’
श्रीलंका ने मुकुल रोहतगी के बयान के हवाले से सवाल करना शुरू किया है, कि क्या भारत, यूक्रेन युद्ध को इस इलाके में दोहराना चाहता है? श्रीलंका में भारत के तीन अत्यधिक सम्मानित पूर्व भारतीय उच्चायुक्त, शिवशंकर मेनन, निरूपमा राव और अशोक के. कंठ, जिनमें से दो ने बाद में विदेश सचिव के रूप में पद संभाला था, कच्चाथिवु पर पीएम मोदी के कमेंट्स से इत्तेफाक़ नहीं रखते। पीएम मोदी जिसे बेवकूफाना हरकत बताते हैं, वह समझौता 1974 में भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान दो श्रीलंकाई प्रधानमंत्रियों, डडले सेनानायके (1965-1970) और श्रीमती सिरिमाओ भंडारनायके (1970-1977) के अथक बातचीत के बाद संपन्न हुआ था।
तीन हज़ार वर्गमील के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन ‘वाड्ज बैंक’ को भारत ने हासिल करने के बदले यदि 1.9 वर्ग किलोमीटर का कच्चाथिवु श्रीलंका को दे भी दिया, तो इसे मूर्खतापूर्ण कैसे कह सकते हैं? फिशरी सर्वे ऑफ इंडिया का कहना है कि वाड्ज बैंक में 4,000 वर्ग मील का क्षेत्र शामिल है। इसके विपरीत कच्चाथीवु केवल 285 एकड़ का एक निर्जन द्वीप है। कोलंबो से प्रकाशित अखबार, ‘द आइलैंड’ ने मन्नार की खाड़ी में अवस्थित वाड्ज बैंक के बारे में अपने संपादकीय में लिखा, ‘श्रीलंका को अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि उसने मन्नार में अपने सदियों पुराने मोती मत्स्य पालन प्रजनन स्थल और प्रचुर तेल भंडार वाले इलाके को खो कैसे दिया, जिसके लिए यह द्वीप कई शताब्दियों से जाना जाता था।’
मोदी के बयानों के बरअक्स श्रीलंका के मंत्रियों ने मोर्चा खोल रखा है। पहले वहां के विदेशमंत्री और अब श्रीलंका के मत्स्य मंत्री डगलस देवानंद ने गुरुवार को जाफना में कहा, ‘यह भारत में चुनाव का समय है, कच्चाथिवु के बारे में दावों और प्रतिदावे का ऐसा शोर सुनना असामान्य नहीं है। मुझे लगता है कि भारत इस जगह को सुरक्षित करने के लिए अपने हितों पर काम कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि श्रीलंकाई मछुआरों की उस क्षेत्र तक कोई पहुंच न हो और श्रीलंका को उस संसाधनपूर्ण क्षेत्र पर किसी भी अधिकार का दावा नहीं करना चाहिए।’
इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहेंगे कि चुनावी फायदे के लिए हम गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं। दूसरी ओर श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणावर्द्धन चीन से नौ समझौतों पर बुधवार को हस्ताक्षर कर आये हैं। चीन चुनाव तक श्रीलंका में सक्रिय रहेगा, इसे नई दिल्ली न ही भूले!

ये लेखक के अपने विचार हैं।

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