श्रीराधा जी की भक्ति और पूजा का पवित्र पर्व
चेतनादित्य आलोक
भाद्रपद या भादो महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और शुक्ल पक्ष की इसी तिथि को देवी श्रीराधा जी का जन्म हुआ था। इसलिए प्रत्येक वर्ष भादो महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को दुनियाभर में सनातन धर्मावलंबियों द्वारा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व और इसी महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीराधाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। श्रीराधाष्टमी का यह परम पवित्र पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 11 सितंबर को मनाया जाएगा।
देवी श्रीराधा जी का जन्म बरसाने में हुआ था। वह बरसाने के गोप वृषभानु जी और गोपिका माता कीर्ति जी की सुपुत्री थीं। श्रीराधाष्टमी का यह पर्व भारतवर्ष के विभिन्न भागों में तो मनाया ही जाता है, श्रीराधा जी की जन्म स्थली बरसाना, मथुरा और वृंदावन में यह पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। सनातन धर्म के साधु, संत, प्रवचनकर्ता, धार्मिक एवं आध्यात्मिक गुरु आदि विशेष रूप से श्रीराधा जी की जयंती यानी श्रीराधाष्टमी का पर्व पूरी श्रद्धा तथा पवित्र मन और लगन के साथ मनाते हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान श्रीहरि विष्णु के परमभक्त और अवतारी पुरुष देवर्षि नारद ने भगवान भोलेनाथ सदाशिव से पूछा था कि श्रीराधा देवी की वास्तविक पहचान क्या है। क्या वह माता लक्ष्मी की ही अवतार हैं या स्वयं महालक्ष्मी ही राधा रूप में प्रकट हुई हैं अथवा वह देवपत्नी, सरस्वती, अंतरंग विद्या, वैष्णवी प्रकृति, वेदकन्या, मुनिकन्या आदि में से कोई हैं? देवर्षि नारद के इस प्रश्न के उत्तर में भगवान भोलेनाथ शिवशंकर ने कहा कि किसी एक की बात क्या कहें, कोई भी उनकी शोभा के सामने नहीं ठहर सकतीं। इसलिए श्रीराधा जी के रूप, गुण और सुन्दरता का वर्णन किसी एक मुख से करने में तीनों लोकों में भी कोई समर्थ नहीं है। उनका रूप-माधुर्य जगत को मोहने वाले श्रीकृष्ण को भी मोहित करने वाली है।
शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार भी श्रीराधा जी के बिना भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-आराधना अधूरी ही रहती है। यहां तक कि श्रीराधा जी की पूजा-आराधना के बिना श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का भी पूरा फल प्राप्त नहीं होता है। इसलिए जो लोग श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं, उन्हें श्रीराधा रानी के जन्मोत्सव यानी श्रीराधाष्टमी का व्रत भी अवश्य करना चाहिए। बता दें कि श्रीराधाष्टमी का व्रत करने से श्रीराधा जी के साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण की कृपा भी प्राप्त होती है। इस दिन व्रत रखकर विधिवत पूजा-आराधना करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि श्रीराधा जी सर्वतीर्थमयी एवं ऐश्वर्यमयी हैं। इनके भक्तों के घर में सदा ही लक्ष्मीजी का वास रहता है। जो भक्त श्रीराधाष्टमी का व्रत करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। जो मनुष्य श्रीराधा जी के नाम अथवा मंत्र का स्मरण एवं जाप करता है, वह धर्मार्थी बनता है। गौरतलब है कि इस वर्ष श्रीराधा रानी जी की पूजा-आराधना का शुभ मुहूर्त सुबह 11ः03 बजे से दोपहर 01ः32 बजे यानी कुल दो घंटे 29 मिनट तक है। चित्र लेखक