दीवानगी के छिपे सवाल
भरत एस तिवारी
पिछले दिनों एक खबर पढ़ी। मुर्शिदाबाद की दो लड़कियां बिना किसी साधन-संसाधन के घर से भाग गईं। इनके भागने के पीछे का कारण हैरान करने वाला था। इन दोनों लड़कियों की उम्र तेरह और पंद्रह साल बताई गई। इनके साथ इनका हमउम्र भाई भी था। ये बच्चे दुनिया के अधिकांश देशों के इस उम्र के किशोरों की तरह ही के-पॉप (कोरियाई संगीत और गाने) के फैन हैं। वे ख़ुद को बीटीएस आर्मी का सदस्य मानते हैं। दरअसल, बीटीएस सात दक्षिण कोरियाई लड़कों का एक म्यूजिक बैंड है और इसने दुनियाभर में लोगों को अपना दीवाना बनाया हुआ है। इसी ग्रुप के दीवाने मुर्शिदाबाद के वे तीनों बच्चे भी थे, जिन्होंने मुर्शिदाबाद वाया मुंबई से सियोल पहुंचने का सपना संजो रखा था। एक दिन इसी सपने को पूरा करने के लिए बिना कुछ सोचे-समझे जेब में चंद रुपये लेकर निकल पड़े। घर-परिवार के लोगों ने उन्हें ढूंढ़ने के लिए दिन-रात एक कर दिया। वे बच्चों को मुंबई पहुंचने से पहले ही वापस ले आए।
कोरियाई भाषा को पढ़ने-पढ़ाने के क्षेत्र से जुड़े होने के कारण मन में सवाल परेशान करता है कि क्या के-पॉप, के-ड्रामा या दूसरे शब्दों में कहें तो हाल्यू के बैनर तले दक्षिण कोरियाई समाज का इतिहास, महज़ लगभग दो दशकों में विकसित देश की सूची में शामिल होने के पीछे के उसके संघर्ष, उसके आधुनिक समाज की स्थिति कहीं छुप तो नहीं जा रही है?
हाल्यू की बदौलत दुनियाभर में अपनी सभ्यता-संस्कृति, खान-पान, गीत-संगीत को पहुंचाने वाले और दुनियाभर के किशोरों के दिलों में अपनी जगह बनाने वाले दक्षिण कोरियाई लोग क्या ख़ुद की यही पहचान चाहते हैं? क्या वे उस संघर्ष को भूल जाना चाहते हैं जो उनके पूर्वजों ने जापान से अपने देश को आज़ाद करवाने के लिए किया था? क्या दक्षिणी कोरियाई आधुनिक समाज ‘कोरियाई युद्ध’ और विभाजन के दर्द को याद नहीं करना चाहता और उसके बारे में अपनी युवा पीढ़ी को बताना नहीं चाहता? हाल्यू को इस कदर दुनियाभर में पहुंचाने का कारण अपने संघर्षों से भरे इतिहास को ढकने-छुपाने या फिर भुला देने का प्रयास है? मुर्शिदाबाद की उन लड़कियों की तरह दुनियाभर में आर्मी के फैन को जंगकुक के बारे में जानना चाहिए।
साभार : शब्दांकन डॉट कॉम