For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

इंसानी अज्ञानता से मुरझाती छिपकलियों की छिपी कलियां

08:18 AM Sep 22, 2024 IST
इंसानी अज्ञानता से मुरझाती छिपकलियों की छिपी कलियां
Advertisement

इंसान के उद्भव से करोड़ों साल पहले वे धरती पर मौजूद थंीं। दुनिया में पायी जाने वाली सरीसृपीय परिवार की 3500 प्रजातियों में से 98 प्रजातियां भारत में मौजूद हैं। छतों पर चलती, हवा में उड़ती, पानी पर चलती छिपकलियां सदियों से इंसान में भय, विस्मय, क्रोध, घृणा, उत्तेजना व आनंद का भाव जगाती रही हैं। लेकिन इनके बारे में कम जानकारी व इंसानी अंधविश्वास इन पर सदियों से कहर बरपाते रहे हैं।

Advertisement

मेजर जनरल अरविंद यादव
वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए दो दशक से सक्रिय हैं।

एक प्राणी जिसके किसी न किसी रूप से शायद हम सब परिचित हैं। शायद यह दुनिया का इकलौता प्राणी है जो पलभर में सभी छह बुनियादी इन्सानी भावनाओं को  जगाने की क्षमता रखता है, यानी भय, क्रोध, विस्मय, घृणा, उत्तेजना और आनन्द इसकी एक झलक में सक्रिय हो जाते हैं। यह अनूठा जीव आर्कटिक के बर्फीले पहाड़ों को छोड़कर पूरे विश्व में सभी जगह पाया जाता है। लगभग रोज हम इसे अपने घरों में देखते हैं। जिससे दुनिया के लगभग हर बच्चे को उसकी मां डराती है और जिस को मारने-भगाने के लिए हर पिता तत्पर  रहता है। एक ऐसा निराला जीव जो जहरीले रसायनों और यंत्रों के इस्तेमाल के बावजूद अपना अस्तित्व कायम रखे हुए है। यहां हम बात कर रहे हैं छिपकली की।  कहते हैं कि धरती पर हर इंसान के 10 फुट के दायरे में एक न एक छिपकली हमेशा होती है।
इतनी नजदीकियों के बावजूद इन  निराले प्राणियों के बारे में हमारी जानकारी लगभग न के बराबर है। हम कितनी ही भ्रांतियों और गलत धारणाओं के शिकार हो कर इन मासूमों को मौत के घाट उतार देते हैं। टेलीविजन और फ़िल्मों में भी इन्हें गोडजिला जैसे भयंकर दैत्य, और ड्रैगन के रूप में दर्शाया जाता है जो वास्तविकता से परे है। हर वर्ष 'विश्व छिपकली दिवस' भी मनाया जाता है। दुनिया भर के सरीसृप प्रेमी इस दिन स्वयं को छिपकलियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए  समर्पित करते  हैं।
आइए आज छिपकलियों की आश्चर्यजनक दुनिया में ले चलते हैं जहां हम जानेंगे कि हमारे अज्ञान की कितनी बड़ी कीमत इन अद्भुत प्राणियों को अपनी जान से चुकानी पड़ रही है।

विविधता पूर्ण सरीसृप

मानवता के उद्भव से करोड़ों साल पहले से ही छिपकलियां धरती पर विद्यमान हैं। तकरीबन 6000 सरीसृपों के एक बड़े परिवार में छिपकलियों की 3500 से अधिक प्रजातियां विविध आकार, रंग-रूप और संख्या में पूरे विश्व में फैली हुई हैं।  कुदरत ने इतनी विविधता शायद ही किसी और प्राणी को बख्शी है। 10 मिमी से ले कर 10 फुट लम्बी छिपकली, उड़ने वाली छिपकली, पानी पर दौड़ने वाली, छतों पर चिपकने वाली, बिना नर के बच्चे पैदा करने वाली, लाल पीले चटक रंगों से ले कर धूसर आवरण वाली, विषैली और विषहीन छिपकली, मांसभक्षी और शाकाहारी, रंग बदलने वाली, दानव रूप से ले कर मासूम चेहरे वाली छिपकली, चार पैरों वाली, दो पैरों वाली, बिना पैरों वाली, लम्बी भारी पूंछ वाली, बिना पूंछ वाली, बिना पैरों वाली, कांटों वाली, सींगों वाली, शल्कों वाली, आंखों से खून फेंकने वाली और पूंछ गिराने वाली छिपकली - इनकी विविधताओं का कोई अंत नहीं और यह अद्भुत विविधता ही इनकी दुश्मन बन गई।
231 तरह की छिपकलियों का आवास
राजस्थान के शुष्क रेगिस्तान से लेकर पश्चिमी घाट के हरे-भरे वर्षा वनों और गंगा जमुना के मैदानों से लेकर हिमालय पर्वत तक अलग-अलग कुदरती आवासों के कारण भारत हर तरह की छिपकलियों को उपयुक्त आवास प्रदान करता है। भारत में अब तक छिपकलियों की 231 प्रजातियों के पाए जाने का प्रमाण है जिन में 98 केवल यहीं पाई जाती हैं। ये छिपकलियां सरीसृपों के पांच परिवारों से हैं - गेक्को (Gecko), भित्तिका (Agama) , लोटन (Skinks), गिरगिट (Chameleon) और गोह (Monitor)।

Advertisement

गेक्को 

गेक्को

मनुष्यों के सबसे करीब घरों, खेतों और जंगलों में पाई जाने वाली सबसे आम छिपकली है गेक्को। इसकी करीब 85 प्रजातियां शहरों, गांवों, खेतों और जंगलों में पाई जाती हैं। दीवारों और छत पर चढ़ने में माहिर यह काली,पीली और भूरी छिपकली अधिकतर रात को सक्रिय होती है और मक्खी- मच्छर एवं कीड़े-मकोड़े खाती है। इसकी आंखें इन्सानों से 350 गुना अधिक दृष्टि प्रदान करती हैं। एक वयस्क टोके गेक्को के गद्दीदार पैर छत पर तकरीबन 300 पाउंड भार सहने की क्षमता पैदा करते हैं। ये जहरीली नहीं हैं। यह निरीह डरपोक  प्राणी तो किसी भी तरह मनुष्यों के लिए हानिकारक नहीं है।

अगामा

मनुष्यों के दूसरी सबसे नजदीकी छिपकली है अगामा। इस परिवार की 48 प्रजातियां संपूर्ण भारत में हमारे घरों और खेतों के आसपास पाई जाती हैं। 14 मिमी से ले कर 145 सेमी तक लम्बी, चमकीले रंगों वाली इन छिपकलियों को सुबह पत्थरों, झाड़ियों और खंबों पर लेट कर  धूप से गर्मी लेते देखा जा सकता है। बड़े सिर, लम्बी पूंछ और लाल-काले मुंह वाली छिपकली जिसे गिरगिट कहते हैं, वास्तव में अगामा है। ये माहौल और तापमान के अनुसार  रंग बदलते हैं। ये आपस में बातचीत भी रंग बदल कर करते हैं। अगामा भी जहरीले नहीं होते और न ही इन्सानों पर हमला करते हैं।
अगामा समूह में रहते हैं जिनमें मुखिया नर , कुछ जवान नर और बड़ी संख्या में मादाएं होती हैं। समूह का नेतृत्व लड़ाई जीत कर हासिल किया जाता है। अगामा का रंग उसके लिंग और समूह में उसके पद पर निर्भर करता है। मुखिया नर चमकीले लाल, काले व नीले रंग का होता है। मादाएं हरे या भूरे रंग की होती हैं। युवा नर भूरे, लाल, नीले या पीले होते हैं।

लोटनी (Skink)

सांप और छिपकली के मिश्रण जैसा दिखने वाला रंग बिरंगा, पतला, लम्बा, चिकना और छोटे-छोटे पैरों वाला अति चपल प्राणी जिसे 'सांप की मौसी' कहते हैं वह स्किंक अथवा लोटनी प्रजाति की छिपकली है। इन की 66 प्रजातियां घरों के आसपास, खेतों में और जंगलों की नम अंधेरी जमीन पर पत्तों और पत्थरों के बीच पाई जाती हैं। पूर्णतया हानिरहित ये सुंदर जीव भी सांपों जैसी बनावट के कारण और जानकारी के अभाव में अनावश्यक मार दिए जाते हैं।

पंखा गेक्को

गिरगिट

छिपकलियों की सबसे अनूठी और अद्भुत प्रजाति है गिरगिट। 'गिरगिट की तरह रंग बदलना' मुहावरे ने इसे सबसे परिचित छिपकली बना दिया। लेकिन असली गिरगिट को शायद ही कभी किसी ने देखा होगा। सब अगामा को ही गिरगिट मान रहे हैं।
अंगूठे जितने छोटे  आकार से लेकर एक बिल्ली जितनी बड़ी इस छिपकली की  विश्व में करीब 150 और भारत में  केवल एक ही प्रजाति पाई जाती है। यह अद्भुत प्राणी मध्य भारत और पूर्वी पश्चिमी घाटों के हरे-भरे जंगलों के ऊंचे वृक्षों और झाड़ियों में बसता है। इसकी खूबी है रंग बदलने की क्षमता। गिरगिट छिपने के लिए नहीं बल्कि वातावरण के तापमान, हवा की नमी और अपने मूड के हिसाब से रंग बदलता है। गिरगिट आपस में बातचीत भी रंग बदल कर करते हैं। दूसरा चमत्कार है इनकी आंखें जो अलग-अलग 180 डिग्री घूम कर इसे पूरे 360 डिग्री का दृश्य दिखाती हैं। तीसरा कमाल है जीभ। अपनी लम्बाई से डेढ़ गुना लम्बी चिपचिपी जीभ हारपून की तरह काम करती है। सिर्फ 0.07 सेकंड में शिकार को पकड़ कर मुंह तक पहुंचा देती है। गिरगिट की चाल इसकी चौथी खासियत है। दो-दो पंजों और लम्बी पूंछ  से डालियों को पकड़ कर एक बार में एक पैर आगे बढ़ाते हुए स्थिरता से की गई हरकत देखते ही बनती है। नर का शरीर छोटा और कांटों एवं सींगों से सुसज्जित होता है। बच्चे निकलने तक अण्डे मां के पेट में ही सेये जाते हैं। कुछ प्रजातियां मिट्टी में बिल बना कर अंडे देती हैं। अंडों से निकलते ही बच्चे चलना और शिकार शुरू कर देते हैं।

गोह

गोह का नाम आते ही शरीर में एक सिहरन सी दौड़ जाती है और मन में भयानक जहरीली छिपकली की तस्वीर कौंध जाती है। गोहेरा, गोह, विषखोपड़ी आदि नामों से जाना जाने वाली मोनिटर छिपकली है। विश्व में इनकी करीब 70 और भारत में  चार प्रजातियां मिलती हैं - बंगाल गोह, पीली गोह, जल गोह और रेगिस्तानी गोह। पीली गोह पूर्वी राज्यों और पश्चिम बंगाल की आर्द्रभूमि में पाई जाती है। जल गोह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी छिपकली है जो आसाम, पश्चिम बंगाल एवं अंडमान के जलीय इलाकों में पाई जाती है। रेगिस्तानी गोह राजस्थान के रेतीले इलाकों में रहती है। अधिकतर नजर आने वाली नस्ल 'बंगाल गोह' है जो समस्त भारत में मिलती है।  एक पूर्ण वयस्क को 'गोह' और उसके छोटे बच्चों को 'गोहेरा' कहते हैं।  ये शर्मीले होते हैं और इंसानों से बचते हैं। गोह कभी इन्सानों को नहीं काटती। सभी काटने के मामले तभी होते हैं जब लोग इसे पकड़ने-मारने का प्रयास करते हैं।

पंखा गेक्को

भ्रांतियां और अंधविश्वास 

मनुष्यों और छिपकलियों का रिश्ता तो सदियों पुराना है परन्तु हम शायद इन को कभी ठीक से समझ ही नहीं पाए। एक तो शक्ल डायनासोर और ड्रैगन जैसी और दूसरा इन्सानों से दूर भागती हैं। ये रात को सक्रिय होती हैं और सांप जैसी भी दिखती हैं। कोई पूंछ फेंकती हैं तो कोई आंख से खून की धार। कुदरत की दी हुई शक्ल का सबसे बड़ा खमियाजा शायद इन छिपकलियों को ही भुगतना पड़ता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि विश्व में केवल दो प्रजाति ही जहरीली हैं - गिला मोन्स्टर एवं मनकेदार छिपकली और दोनों  अमेरिका में मिलती हैं। भारत में पाई जाने वाली छिपकली की एक भी प्रजाति जहरीली नहीं है। इनमें आधी से ज्यादा प्रजातियों के तो दांत ही नहीं होते और शिकार को साबुत निगलते हैं।

लेपर्ड गेक्को

छिपकलियों का महत्व 

खाद्य शृंखला के मध्य में होने से छिपकलियां शिकार और शिकारी दोनों की भूमिका निभाते हैं। कीट-पतंगों, कीड़े-मकोड़ों, मक्खी मच्छर, चूहे, मछली-मेंढक, सांप और मृत प्राणियों को खा कर जहां एक तरफ  वातावरण की सफाई करती हैं वहीं दूसरी तरफ शिकारी पशु पक्षियों का भोजन बन कर पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में सहायक सिद्ध होती हैं।
किसी आवास में छिपकलियों की संख्या व विविधता में कमी पर्यावरण में अवनति का आभास कराते हैं। वहीं शाकाहारी छिपकलियां बीजों के विसर्जन व परागण में भी भूमिका निभाती हैं।
जरा सोचिए अगर हम छिपकली की पूंछ के दुबारा उगने को समझ सकें तो विकलांगों के लिए कितनी बड़ी मदद होगी। अगर हम इसके छत पर सरलता से दौड़ने और सैकड़ों किलो वजन नियंत्रित करने का विज्ञान समझ लें तो कमाल हो जाएगा। कैसे कुछ प्रजातियां हरे खून में जहरीले रसायनों की भारी मात्रा सहन कर लेती हैं यह अगर समझ में आ जाए तो जहर से पीड़ित बीमारों के लिए नये आयाम खुल सकते हैं।

विलुप्त होने के खतरे

आज भारत में पाई जाने वाली छिपकलियों की बहुत सी दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर खड़ी हैं। कारण हैं... मनुष्य का लालच, अंधविश्वास, अज्ञानता और बढ़ती खेती के लिए कुदरती निवास का हनन। छिपकलियां शीत-रक्त प्राणी हैं और जीने के लिए सौर ऊर्जा पर ही निर्भर हैं। शरीर को गर्म रखना,  शिकारी पशु पक्षियों से चौकन्ना रहना, भोजन की तलाश और प्रजनन की सफलता का बोझ इन पर अन्य जानवरों से कहीं अधिक है। वैश्विक तापमान में वृद्धि से मौसम और भौगोलिक स्थितियां इतनी तेजी से बदल रही हैं कि ये निरीह प्राणी इसका मुकाबला नहीं कर पा रहे।
कृषि विस्तार, जल की कमी, सिकुड़ते निवास स्थान, रासायनिक जहर और बढ़ते प्रदूषण, सभी ने छिपकलियों के अस्तित्व पर भारी दबाव डाला है। शायद इस दबाव का भी समाधान निकल आता परन्तु वास्तविक कुठाराघात किया मानवीय लालसा ने। खाल से बहूमूल्य चमड़ा, मांस से भूख मिटाना एवं दवाइयां, खून और हड्डियों से कामोत्तेजक औषधि और पालतू बनाने की होड़ मारक सिद्ध हुई। लाखों नर गोह के जननांग को जिंदा रहते निकाल कर और सुखा कर  ‘हथा जोड़ी’ नाम से बेचा जाता है जिसे लोग लक्ष्मी का प्रतीक मानते हैं। साण्डा नामक रेगिस्तानी छिपकली को मारकर भूख मिटाते हैं व कथित कामोत्तेजक तेल प्राप्त करते हैं।

शिकार, तस्करी और निर्दयता

शिकारी बिल में धुआं भर कर इन्हें आसानी से पकड़ लेते हैं। फिर रीढ़ की हड्डी तोड़ दी जाती है ताकि वह भाग न सके। 10-20 छिपकलियों को बोरे में भर कर सड़क किनारे फड़ी लगा लेते हैं। ग्राहक के आने पर इस अधमरे प्राणी को जिंदा ही सूखी और गर्म कड़ाही में डाल दिया जाता है जहां ये तड़प-तड़प कर मर जाते हैं। पूंछ में जमा 5-10 ग्राम चर्बी पिघल जाती है जो शीशी में डाल कर बेची जाती है गुप्त रोगों की औषधि के नाम पर, जबकि असल में यह दवाई है ही नहीं- इसमें होता है पॉली अन्सेच्युरेटेड फैट। बचे हुए मांस को या तो शिकारी खुद खा लेते हैं या बेच देते हैं। 'टोके जेको' तो केवल इसलिए मारी जाती हैं कि कुछ ज़ाहिल इसकी जीभ से एड्स की दवा बनाने का झूठा दावा करते हैं।
हर वर्ष हजारों 'लेपर्ड गेक्को', 'उड़न गेक्को', 'अंडमान गेक्को' और भारतीय गिरगिटों की अवैध रूप से तस्करी होती है ताकि अमीर लोग इन्हें पालतू बनाकर मनोरंजन कर सकें। कीट नियंत्रण के नाम पर लाखों घरेलू छिपकलियों को जहरीले रसायनों द्वारा मार दिया जाता है। वहीं 4000 करोड़ डालर का वार्षिक फैशन उद्योग केवल सरीसृपों के भरोसे चल रहा है। लाखों सांप, मगरमच्छ और छिपकलियों को कुछ अमीरों के शौक के लिए अपनी जान गंवानी पड़ती है।

संरक्षण के लिए जरूरी जागरूकता

छिपकलियों के संरक्षण के लिए सबसे पहले जरूरत है आम लोगों में जागरूकता पैदा करने की। पहले हम स्वयं को शिक्षित करें और फिर औरों को। सबसे पहले दो तरह की आवश्यक जानकारी हासिल करें। एक तो पहले से फैली भ्रांतियों और अंधविश्वासों को मिटाने के लिए और दूसरा पर्यावरण के लिए छिपकलियों के महत्व को उजागर करने के लिए। अपने स्कूल, कालेज, दफ्तर, मोहल्ले, गांव और शहर में सोशल मीडिया पर ग्रुप बनाएं और ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल करें। फोटो, कार्टून और विडियो की मदद से सभी जानकारी साझा करें। हर तिमाही में प्रतियोगिताओं और अन्य कार्यक्रमों के द्वारा अधिक से अधिक लोगों को प्रोत्साहित करें। गैर सरकारी संस्थाएं और पर्यावरण के प्रति सजग संस्थान सरीसृपों के संरक्षण के प्रति समर्पित हैं। इन के साथ जुड़ कर आगे बढ़ें। जागरूक करने के लिए कुछ बिंदु :
* छिपकलियां हमारे पर्यावरण के रक्षक और सूचक दोनों हैं।
* छिपकलियों के बिना पारिस्थितिक संतुलन संभव नहीं, और अगर यह संतुलन बिगड़ा तो मानव जीवन भी समाप्त हो जाएगा।
* छिपकलियां मनुष्यों को नुक्सान नहीं पहुंचा सकती। न तो ये जहरीली हैं और न ही इनके विषदंत हैं।
* छिपकलियां डरपोक होती हैं। मारने की बजाय इन्हें भगा दें।
* छिपकलियां कीड़े-मकोड़ों और मक्खी-मच्छरों की बड़ी शिकारी हैं।
* छिपकलियों की पूंछ में ताकतवर तेल नहीं होता बल्कि सर्दियों में जिंदा रहने को वसा एकत्रित होती है।
* छिपकली के मांस में कोई औषधि नहीं है अपितु इसके बैक्टीरिया से आदमी बीमार हो सकता है।
* सांडे के तेल में कोई पुरुषत्व नहीं। यह सिर्फ लूटने का धंधा है।
* गोहेरा गोह का बच्चा है और इसमें जहर नहीं होता।
* अगर आप के बगीचे में गिरगिट और छिपकली होंगे तो फूल अधिक खिलेंगे।
* छिपकलियां जंगली जानवर हैं, पालतू नहीं। मात्र दिखावे और पश्चिमी देशों की होड़ में इन मासूमों को प्रताड़ित करना सही नहीं। हो सकता है जूनोटिक बीमारियों से पालने वालों की जान ही खतरे में पड़ जाए।

Advertisement
Advertisement