जल संकट का जलजला और सड़क पर नजला
केदार शर्मा ‘निरीह’
नत्थू ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गया था। उसने पत्नी से कहा, ‘क्या बात है भाग्यवान? क्या नहीं है तुम्हें नाश्ता तैयार करने का ध्यान? टिफिन का भी नहीं अता-पता है, आखिर हुई क्या हमसे खता है?’ वो बोली, ‘परिंडे में पानी नहीं है, आपसे कोई बात अनजानी नहीं है। पिछले दो दिन से नल नहीं आ रहा है। परिंडे में सूखा छा रहा है। आज चूल्हा नहीं जलेगा, जाहिर है खाना नहीं बनेगा। आज सड़क पर जाम लगाएंगे, जलदाय विभाग वालों को नाकों चने चबवाएंगे। आज ट्रैफिक जाम होगा, तभी हमारा काम होगा।’
आखिर नत्थू को भी ऑफिस के लिए रवाना होना पड़ा, पेट में कूदते चूहों का बोझ ढोना पड़ा। अपनी गली से निकलकर जब सड़क पर गया तो देखा अद्भुत नजारा, ‘नलों में पानी दो, पानी दो,’ लोगों की ज़ुबान पर था बस यही नारा। बीच सड़क पर भारी पत्थर रखे थे। कमर कसकर महिलाएं मोर्चे पर खड़ी थीं। उनकी नजर बीच सड़क पर गड़ी थीं। सड़क के दोनों ओर भीड़ बढ़ती जा रही थी। हॉर्न की आवाजें कानों में चढ़ती जा रही थीं। नत्थू गिड़गिड़ाया, ‘भगवान के लिए मुझे ऑफिस जाने दो। कसूर पानी का हो सकता है पर सजा सड़क को मत पाने दो।’
तभी एक मोहतरमा आगे आई, बोली, ‘आप पानी वाले अफसरों को बुलाओ और सूखते नलों को पानी से नहलाओ। हम सड़क को छोड़ देंगे, अपना रुख मोड़ लेंगे।’ तभी भीड़ में से किसी बंदे ने अफसर को फोन लगाया, ‘हेलो सर, मैं फलां कॉलोनी के सामने की सड़क से बोल रहा हूं, यहां सड़क काे बंधक बना लिया है, दोनों ओर वाहनों की रेलमपेल है, वाहन चालक मचा रहे ठेलम-ठेल है। दो पाटों के बीच में फंसी सड़क चुपचाप सहमी-सी पड़ी है। जल्दी आओ, इसको बचाओ। नलों में पानी नहीं आने के पीछे इस जाम में फंसी भीड़ का कोई हाथ नहीं है। वाहनों के हॉर्न अलग-अलग आवाज में चिंचिया रहे हैं। कोई कह रहा है मेरे मालिक की परीक्षा छूट जाएगी, कोई कहता है मेरे मरीज की सांस टूट जाएगी। हमारी सड़क को पानी की फिरौती देकर शीघ्र छुड़वा लो।’
तभी अफसरों की गाडि़यां आईं। महिलाओं ने उनको खूब खरी-खोटी सुनाई। उनको लाल-लाल आंखें दिखाईं तभी माइक से आवाज आई, ‘आपके घरों में पानी आ गया है और आपका इंतजार कर रहा है।’ देखते-देखते सड़क खाली हो गई। बंधक में फंसी सड़क की बहाली हो गई। नलों से नीर निकलने लगा और फिर से चूल्हा जलने लगा।