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अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र की बढ़ती ताकत

06:30 AM Jun 11, 2024 IST
डॉ. शशांक द्विवेदी

पिछले दिनों भारत के स्पेसटेक स्टार्टअप ‘अग्निकुल कॉसमॉस’ ने बड़ी सफलता हासिल करते हुए पहली बार अपने ‘अग्निबाण’ रॉकेट को लॉन्च किया है। ये भारत का इकलौता ऐसा रॉकेट इंजन है, जो गैस और लिक्विड दोनों ही तरह के ईंधन का इस्तेमाल करता है। अग्निकुल ने जिस रॉकेट को लॉन्च किया है, उस मिशन को ‘अग्निबाण सबऑर्बिटल टेक डेमोंस्ट्रेटर सॉर्टेड-01’ के तौर पर जाना जाता है।
अग्निकुल कॉसमॉस भारत का एक स्टार्टअप है, जो रॉकेट्स बना रहा है। इसने श्रीहरिकोटा में अपना प्राइवेट लॉन्च पैड भी बनाया है, जहां से रॉकेट लॉन्च किया गया है। अग्निबाण एक सिंगल-स्टेज वाला रॉकेट है, जो सेमी-क्रायोजेनिक इंजन पर काम करता है। इसे भारत में तैयार किया गया है और इसकी असेंबलिंग आईआईटी मद्रास में अग्निकुल की फैसिलिटी में हुई है। अग्निबाण रॉकेट की सफल लॉन्चिंग के लिए ‘इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो)’ ने अग्निकुल कॉसमॉस को बधाई देते हुए कहा कि एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के माध्यम से सेमी-क्रायोजेनिक लिक्विड इंजन की पहली कंट्रोल फ्लाइट के रूप में बड़ी कामयाबी हासिल की गई है।
अग्निबाण रॉकेट का आसमान तक पहुंचना भारत के लिए बेहद ही खास है। जहां अभी तक इसरो के कंधे पर रॉकेट लॉन्चिंग की जिम्मेदारी होती थी। मगर अब प्राइवेट प्लेयर भी इस दिशा में कदम बढ़ाने लगे हैं। अग्निकुल कॉसमॉस एक ऐसी ही कंपनी है। रॉकेट लॉन्चिंग इसलिए भी खास है, क्योंकि इसके लिए अग्निकुल ने अपने डाटा एक्यूजिशन सिस्टम और फ्लाइट कंप्यूटर्स का इस्तेमाल किया, जिन्हें 100 फीसदी खुद कंपनी ने ही तैयार किया है।
सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि ये टेस्ट व्हीकल के प्रपल्शन सिस्टम को कंट्रोल करने के लिए सॉर्टेड व्हीकल के पूरे एवियोनिक्स चेन की काबिलियत भी दिखाता है। अग्निबाण रॉकेट ऑर्बिट में 100 किलोग्राम का पेलोड 700 किमी की ऊंचाई तक ले जा सकता है। अग्निबाण रॉकेट की लॉन्चिंग सिंगल पीस 3डी प्रिंटेड रॉकेट इंजन के साथ दुनिया की पहली उड़ान है। ये भारत की स्पेस सेक्टर में बढ़ रही ताकत को भी दिखा रहा है। अग्निकुल देश की दूसरी निजी रॉकेट भेजने वाली कंपनी है। इसके पहले स्काई रूट एयरोस्पेस ने अपना रॉकेट भेजा था।
अग्निबाण एक अनुकूलन प्रक्षेपण यान है जिसे एक चरण में लॉन्च किया जा सकता है। रॉकेट करीब 18 मीटर लंबा है और इसका द्रव्यमान 14,000 किलोग्राम है। ‘अग्निबाण’ पांच अलग-अलग कॉन्फिगरेशन में 100 से 300 किलोग्राम तक के पेलोड को 700 किमी की ऊंचाई तक ले जाने में सक्षम है। यह निम्न और उच्च झुकाव वाली दोनों कक्षाओं तक पहुंच सकता है। अग्निबाण सब ऑर्बिटल टेक्नोलॉजिकल डेमोंस्ट्रेटर ‘अग्निकुल’ के पेंटेटेड अग्निलेड इंजन द्वारा संचालित एक एकल चरण लॉन्च वाहन है। अग्निबाण रॉकेट को 10 से अधिक विभिन्न लॉन्च पोर्ट से लॉन्च करने के लिए डिजाइन किया गया है। कई लॉन्च पोर्ट के साथ इसकी अनुकूलता सुनिश्चित करने के लिए, अग्निकुल ने ‘धनुष’ नामक एक लॉन्च पैड स्टेशन बनाया है, जो रॉकेट की सभी कॉन्फिगरेशन में इसकी गतिशीलता को सपोर्ट करेगा।
अग्निबाण रॉकेट सिंगल स्टेज रॉकेट है। जिसके इंजन का नाम अग्निलेट इंजन है और यह इंजन पूरी तरह से थ्रीडी प्रिंटेड है। यह 6 किलोन्यूटन की जबरदस्त ताकत पैदा करने वाला सेमी-क्रायोजेनिक इंजन है। अग्निबाण रॉकेट को पारंपरिक गाइड रेल से लॉन्च नहीं किया जाएगा। यह वर्टिकल लिफ्ट ऑफ करेगा। पहले से तय मार्ग पर जाएगा। रास्ते में ही तय मैन्यूवर करेगा। अग्निकुल के सह-संस्थापक और सीईओ श्रीनाथ रविचंद्रन ने बताया कि यह एक सबऑर्बिटल मिशन है। अगर यह सफल होता है, तो हम यह पता कर पाएंगे कि हमारा ऑटोपॉयलट, नेविगेशन और गाइडेंस सिस्टम सहीं से काम कर रहे हैं या नहीं।
देश के जाने-माने उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने अग्निकुल कॉसमॉस पर पैसा लगाया है। अग्निकुल एक स्पेस स्टार्टअप है। आनंद महिंद्रा ने करीब 80.43 करोड़ रुपये की फंडिंग की है। इस प्रोजेक्ट में आनंद महिंद्रा के अलावा पाई वेंचर्स, स्पेशल इन्वेस्ट और अर्थ वेंचर्स ने भी निवेश किया है। अग्निकुल कॉसमॉस की शुरुआत साल 2017 में हुई थी। इसे चेन्नई में स्थापित किया गया। इसे श्रीनाथ रविचंद्रन, मोइन एसपीएम और आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर एसआर चक्रवर्ती ने मिलकर शुरू किया था। अग्निबाण 100 किलोग्राम तक के सैटेलाइट्स को धरती की निचली कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है।
आज हमारे पास अंतरिक्ष अवशेष प्रबंधन, नैनो उपग्रह, प्रक्षेपण यान, ग्राउंड सिस्टम, अनुसंधान जैसे नवीनतम क्षेत्रों में काम करने वाले 102 स्टार्टअप मौजूद हैं। पिछले साल से अब तक भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल सॉफ्ट लैंडिंग और भारत के पहले सौर मिशन आदित्य-एल1 के सफल प्रक्षेपण के साथ नई ऊंचाइयों को छुआ। भारत का लक्ष्य अब 2035 तक ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ स्थापित करने और 2040 तक पहले भारतीय को चंद्रमा पर भेजने का है।
नि:संदेह, अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ने से देश को बड़ा फायदा होगा। असल में, इसरो के मुताबिक वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य करीब तीन सौ साठ अरब डालर है, लेकिन भारत की इसमें सिर्फ दो प्रतिशत की हिस्सेदारी है। इसरो का अनुमान है कि देश 2030 तक इस हिस्सेदारी को बढ़ा कर नौ प्रतिशत तक ले जा सकता है।

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लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर हैं।

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