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एआई की बढ़ती क्षमता से इंसानी विवेक को चुनौती

04:00 AM Mar 13, 2025 IST
एआई की बढ़ती क्षमता से इंसानी विवेक को चुनौती
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लोकतंत्र और मुक्त व्यापार का समर्थक अमेरिका व समाजवाद-संरक्षण का पैरोकार चीन एआई के क्षेत्र में अग्रणी देश हैं। दुनिया को इनके बीच चुनाव करना है। सवाल यह भी कि इनमें कौन एआई को नियंत्रित करेगा। विज्ञान-प्रौद्योगिकी उपयोगी हैं लेकिन नैतिकता का प्रश्न महत्वपूर्ण है। चिंता इस बात की भ्ाी है कि इंसानी नौकरियां कहीं रोबोट न हथिया लें।

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अरुण मायरा

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के विकास ने तेजी पकड़ ली है। सट्टा बाज़ार में अरबों-खरबों का सवाल यह है कि इसे नियंत्रित कौन करेगा? अमेरिका और चीन के पास सबसे उन्नत एआई है। यही दोनों दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भी हैं, हालांकि ‘बढ़िया समाज’ को लेकर उनके विचार भिन्न हैं। इस सिद्धांत में एक पक्ष इस सोच से संचालित है कि उदार बाजार वाला लोकतंत्र सबसे बढ़िया होता है और एक बढ़िया समाज के लिए अर्थव्यवस्था का विशाल होना आवश्यक है। वहीं दूसरा पक्ष स्थिर शासन को महत्व देता है और मानता है कि एक अच्छी अर्थव्यवस्था के लिए सामाजिक सद्भाव मूलभूत अवयव है।
अमेरिका को चिंता है कि एआई की दौड़ में चीन आ चुका है और शायद आगे निकल जाए। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, लोकतंत्र और मुक्त व्यापार के चैंपियन के रूप में, अमेरिका ने समाजवाद और घरेलू उद्योगों का संरक्षण करने वाली व्यवस्था के खिलाफ (जिसका प्रतिनिधित्व चीन करता है) दुनिया को अपने पीछे लामबंद किया। मखमली दस्ताने में लिपटी अमेरिका की ‘सॉफ्ट पॉवर’ रूपी लोहे की मुट्ठी ढकी-छिपी हुई थी- महाशक्तिशाली सैन्य ताकत और वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर नियंत्रण-जिसके बूते उसका वैश्विक आधिपत्य रहा। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यह दस्ताना उतार सच्चाई सामने ला दी। वे अमेरिका को फिर से ‘महान’ बनाना चाहते हैं और चीन का आगे निकलना गवारा नहीं करेंगे। सवाल यह कि बाकी दुनिया क्या बनना चाहती है : ट्रंप के अमेरिका जैसी या शी जिनपिंग के चीन की तरह? या फिर दुनिया पर एआई का नियंत्रण बनने देना?
मानवता के भविष्य के लिए दो बड़ी चिंताएं हैं : नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा कौन जीतेगा -मनुष्य या रोबोट? देशों के अंदरूनी और उनके आपसी वैचारिक टकरावों में कौन जीतेगा- उदार लोकतंत्रवादी या राष्ट्रीय रूढ़िवादी? वैश्वीकरणकर्ता या राष्ट्रवादी?
इन अस्तित्वगत प्रश्नों के नीचे गहरे दार्शनिक सवाल छिपे हैं : क्या एआई मनुष्यों की जगह ले सकती है? ‘तर्कसंगत’ उदारवादी ‘वैकल्पिक’ सत्यों के समुद्र में क्यों डूबते जा रहे हैं? क्या जटिल घटनाओं को गणितीय विश्लेषण द्वारा समझा जा सकता है? एलन मस्क की संगत में ट्रंप का सत्ता में लौटना और मानव नियंत्रण से बाहर होती जा रही एआई के साथ, यह दार्शनिक प्रश्न पूछना अनिवार्य हो गया है। मैं असल में कौन हूं? हमारे अस्तित्व का उद्देश्य क्या है? ये ऐसे चिरस्थायी प्रश्न हैं, जो हर जगह मनुष्य सदियों से पूछते रहे हैं। इस लेखक ने ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान लिखे एक निबंध में रोबोट की मानसिकता के बारे में अनुमान लगाया था, ‘रोबोट और हाथी वाले (रिपब्लिकन) किसे वोट देंगे : डोनाल्ड ट्रम्प या शी जिनपिंग?’
जब तक हम यह नहीं जान लेते कि असलियत क्या है, तब तक यह पता नहीं चलेगा कि कृत्रिमता क्या है। जवाबों की तलाश में, लेखक ने कई किताबें पढ़ीं -एआई, गणित, सामाजिक विज्ञान, नैतिक विज्ञान और दर्शन शास्त्र की। कर्ट गोडेल और जॉर्डन एलेनबर्ग, इन दोनों प्रख्यात गणितज्ञों ने गणित की सीमाओं को साबित किया है। एलेनबर्ग ‘हाउ नॉट टू बी रोंग : द पावर ऑफ़ मैथमेटिकल थिंकिंग’ में कहते हैं : ‘एक वास्तविक खतरा यह कि गणितीय विश्लेषण करने की अपनी क्षमताएं मजबूत करके, कुछ सवालों का हल पा जाने के बाद, हम अपनी धारणाओं पर अडिग आत्मविश्वास बना बैठते हैं, जो कि अनुचित रूप से उन चीजों तक भी विस्तारित हो जाता है, जिनके बारे में हम अभी तक गलत हैं।’ विज्ञान और प्रौद्योगिकी चीज़ों की प्राप्ति का साधन मुहैया करवाते हैं। क्या किया जाना चाहिए –काम करने का सही ढंग– यह नैतिकता और दर्शन का मामला है, वे विषय जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के पाठ्यक्रम से इतर हैं।
मात्रात्मक और गणितीय क्षमता में गुणात्मक विस्तार करके प्राप्त ‘वैज्ञानिक’ होने की चाहत, अध्ययन के तमाम क्षेत्रों पर भी काफी हावी हो गई है। समाज को आकार देने वाली कई शक्तियां, जैसे कि सामाजिक सद्भाव और संस्थाओं में नागरिकों का भरोसा, इनको आसानी से मापा नहीं जा सकता। इसके अलावा, आधुनिक विज्ञान में आस्था के लिए कोई जगह नहीं। जोनाथन हैडट की ‘द राइटियस माइंड : व्हाई गुड पीपल आर डिवाइडेड बाय पॉलिटिक्स एंड रिलीजन’ नामक पुस्तक ज्ञान और विश्वास के दायरे के बीच विरोधाभास की गहन जांच करती है। हैडट ने भारत में शोध किया है। उन्होंने हाथी और महावत के उदाहरण का उपयोग मस्तिष्क के ‘तर्कसंगत’ हिस्से और आस्थाओं, विश्वासों और भावना वाले मानवीय व्यवहार को निर्देशित करने वाले ‘गैर-तर्कसंगत’ भाग के बीच संबंध समझाने के लिए किया है। हाथी बहुत बड़ा जानवर है। महावत (दिमाग का तर्कसंगत हिस्सा) चाहेगा कि गैर-तर्कसंगत हाथी उसके आदेशों का पालन करे। यह आसान नहीं। महावत को स्वीकार करना होगा कि हाथी के मिज़ाज का ख्याल रखकर चलना है, वरना वह उसे नीचे पटक देगा।
हमारा विश्वास उन तथ्यों को तय करता है, जिसे हम स्वीकार करना चाहते हैं। तथ्य-जांचकर्ताओं के पास भी विश्वास होता है। यहां तक कि वैकल्पिक तथ्यों की जांच करने के लिए एआई एजेंट के पास भी कुछ मूलभूल विश्वास होता है। एआई एजेंट अरबों इंसानी फैसलों की तुलना करके खुद को प्रशिक्षित करते हैं। उन निर्णयों को लेने वाले मनुष्यों की मान्यताएं एआई एजेंटों की मान्यताओं को आकार देती हैं। चूंकि अमेरिका एक जीवंत लोकतंत्र है, जाहिर है लोग अपने हकों के लिए और नेताओं के खिलाफ़ बोलने का अधिकार चाहेंगे। जबकि चीनी प्रणाली में व्यवस्था का महत्व है : इसमें, लोगों की बजाय हुकूमत के अधिमान को तरजीह है। बेहतर एआई तकनीक विकसित करने को अमेरिका और चीन के बीच दौड़ जारी है। शायद चीन में सीखा एआई एजेंट शी जिनपिंग को वोट देना चाहेगा और अमेरिका में ट्रेंड रोबोट किसी और मुद्दे पर, परंतु एक चीज़ स्पष्ट है : एआई हमें एक-दूसरे के पास नहीं लाएगा।
सोशल मीडिया ने हमें पहले से ही वैचारिक रूप से बांटकर, अपने-अपने खोल में बंद उन समुदायों में गहराई तक विभाजित कर दिया है, जो एक-दूजे से नफरत करते हैं और एक-दूसरे की बात सुनने को राजी नहीं हैं। एआई ऐसे डिजिटल मंचों को और मजबूती दे रहा है। एआई एजेंट हमारे जीवन को पूरी तरह काबू कर लेंगे : हमारे शरीर को चलाएंगे, हमारे लिए निबंध लिखेंगे और हमारे दोस्त बन जाएंगे। तब जो लोग हमें पसंद नहीं, उनके साथ मानवीय संबंधों की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी। एआई-संचालित ड्रोन और रोबोट हमारे दुश्मनों को खोजकर, जो कोई उन्हें ऐसा प्रतीत होगा, हमारे प्रयासों के बिना ही उसका खात्मा कर देंगे। जल्द ही, एआई को मनुष्यों की भी जरूरत नहीं होगी।
व्यस्त लोग शिकायत करते हैं कि उनके पास सोचने तक का समय नहीं। एआई इसकी जरूरत ही खत्म कर देगा। इस लेखक का निबंध उन टवीट्स और लघु ब्लॉग्स से बहुत लंबा है, जिनके बारे में व्यस्त लोग कहेंगे कि उनके पास तो बस उन्हें पढ़ने जितना ही समय है। शायद एक एआई एजेंट उन किताबों को भी पढ़ और शोध कर सकता था जो इस लेखक ने पढ़ीं। अपनी अलग संवेदनशीलता और अलग ‘दिमाग’ के साथ, एक अलग निबंध तैयार कर सकता था, हो सकता है लेखक वाले से बेहतर या फिर दोयम, यह मूल्यांकनकर्ता के दृष्टिकोण पर निर्भर है। सर्वाधिक संभावना इसकी है कि एआई एक सार तैयार कर सकता था, जिससे पाठक का काफी समय बचता। यह उस तरह है कि 1,000 शब्दों का यह लेख पढ़ने में आपको पांच मिनट लग सकते हैं जबकि लेखक का पूरा निबंध पढ़ने में शायद एक घंटा लगता।
यह लेख इस सवाल का जवाब नहीं देता कि एक एआई एजेंट किसे वोट देगा। हालांकि, यह यह सोचने में मदद कर सकता है कि आपके लिए मोल किसका हो, और आप अपने बच्चों को किस किस्म की दुनिया में बड़ा करना चाहते हैं।

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लेखक योजना आयोग के पूर्व सदस्य हैं।

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